शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

राजस्थानी भाषा की मान्यता का अधिकार छीनने का वक़्त आ गया बारहट


राजस्थानी भाषा की मान्यता का अधिकार छीनने का वक़्त आ गया बारहट

बाडमेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश
महामंत्री राजेंद्र सिंह बारहट ने कहा की युवा वर्ग को राजस्थानी भाषा को
मान्यता के मुद्दे पर आगे आना होगा क्योंकि यह मुद्दा युवाओ के सुनहरे
भविष्य से जुड़ा हें ,युवा राजस्थानी भाषा के अभियान को आन्दोलन का रूप
देकर राजस्थान की लोक संस्कृति और इतिहास के सरंक्ष की पहल करे ऐसा नहीं
हुआ तो आने वाले दस सालो में राजस्थानी संस्कृति ख़त्म हो जाएगी ,बारहट
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर द्वारा डाक
बंगलो में आयोजित राजस्थानी कार्यकर्ता सम्मलेन को संबोधित कर रहे थे

इस अवसर पर जोधपुर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ,जिला पाटवी रिड़मल
सिंह दांता ,महेश दादानी ,नरेश देव सारण ,लक्षमण गोदारा ,डॉ
लक्ष्मीनारायण जोशी ,इन्दर प्रकाश पुरोहित ,अशरफ अली ,अशोक सिंह
राजपुरोहित ,भीख दान चरण ,बाबु शेख ,मुबारक खान ,रघुवीर सिंह तामलोर ,भोम
सिंह बलाई , हिन्दू सिंह तामलोर ,रमेश सिंह इन्दा ,दिग्विजय सिंह चुली ,
अवार सिंह सोढा ,सहित कई पदाधिकारी और कार्यकर्ता उपस्थित थे ,

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए डॉ राजेंद्र बारहट ने
कहा की राजस्थानी भाषा का साहित्य और इतिहास उच्च कोटि का हें ,राजस्थानी
भाषा का शब्द ग्रन्थ सबसे विशाल हें ,उन्होंने कहा की राजस्थान के बारह
करोड़ राजस्थानियों की मायड भाषा हे जिसे अब हर सूरत में मान्यता मिलनी
चाहिए ,इसके लिए राजनितिक दलों को उनके चुनावी गणित बिगाड़ कर दिखाना होगा
,उन्होंने कहा की अब हमें येन केन प्रकरण मान्यता लेनी हें ,शाम दाम दंड
,भेद किसी भी तरह .उन्होंने कहा की राजस्थानी को मान्यता मिलाने पर
राजस्थान के छात्रो को तृतीय भाषा का बेहतरविकल्प मिलेगा ,

इस अवसर पर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने कहा की राजस्थानी भाषा और
हमारी माँ में कोई अंतर नहीं हे ,मायड भाषा का अपमान अब सहन नहीं होगा
.जब छोटी छोटी भाषाओ को केंद्र सरकार मान्यता दे रही हे तो राजस्थानी
भाषा को मान्यता नहीं देकर राजस्थानियों के हितो के साथ कुठाराघात क्यों
कर रही हें सरकार ।,कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला पाटवी रिडमल सिंह
दांता ने कहा की क्षेत्रीय सांसद हरीश चौधरी ने राजस्थानी भाषा को
मान्यता देने की मांग सांसद में उठा कर सराहनीय कार्य किया हें .पूरा
राजस्थान उनका आभार प्रकट करता हें .राजस्थानी भाषा चिंतन परिषद के जिला
सरंक्षक महेश दादानी ने कहा की राजस्थान की पहचान राजस्थानी भाषा से हे
,माँ का दूसरा रूप मायड भाषा में निहित हे ,इस अभियान को महिलाओ के बीच
ले जाया जा रहा हे मातृशक्ति राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने का पूरा
दबाव केंद्र सर्कार पर बनाएगी।अन्होने कार्यकर्ताओ से आहवान किया कि
बाडमेर राजस्थानी भाशा को मान्यता दिलाने में अहम भूमिका निभाने जा रहा
हैं ।आओ अपनी मायड भाशा को मिलकर मान दिलाऐं।,इस अवसर पर समिति के वरिष्ठ
उपाध्यक्ष इन्द्र प्रकाश पुरोहित ने कहा की राजस्थानी को मान्यता देकर ही
राजस्थान का स्वाभिमान, राजस्थान की पहचान, अस्मिता, राजस्थानी भाषा,
साहित्य और उसकी संस्कृति, राजस्थान का रोजगार तथा उसके बालकों का भविष्य
बचाया जा सकता है। समिति के जिला सह संयोजक नरेश देव सारण ने कहा की
राजस्थान की विधानसभा में 25 अगस्त 2003 को जो सर्वसम्मत संकल्प प्रस्ताव
पास करके केन्द्र सरकार को भेजा गया वह सम्पूर्ण राजस्थान का जनमत है और
उसी को आधार मानकर राजस्थानी भाषा को तत्काल मान्यता दी जानी चाहिए थी,
मगर उसके आठ वर्षों बाद तक भी उस पर अमल नहीं किया जाना जनमत का अपमान
है। अशरफ अली ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि प्रत्येक राजस्थानी
उम्मीद लगाए बैठा था कि संसद के इस सत्र में उनकी मातृभाषा को उसका
वाजिब हक मिल जाएगा, मगर हाल ही में केन्द्र की ओर से यूपीएसी की समिति
की बात सामने आने से उन्हें ठेस पहुंची है और 68 वर्षों से शांतिपूर्ण
आंदोलन कर रहे राजस्थानियों की सब्र का बांध टूट चुका है। उन्होंने सवाल
उठाया कि जब अन्य 22 भारतीय भाषाओं को संवैधानिक मान्यता देने में
यूपीएससी की समिति की जरूरत नहीं पड़ी तो अब राजस्थानी के मामले में ही
ऐसा क्यों? राजस्थानी जनता अपने इस हक के लिए आखिर कितना इंतजार करे। यह
देश की बहुत बड़ी जनसंख्या जो राजस्थानी भाषी है और राजस्थान, देश तथा
विदेश में बसती है उसकी भावनाओं और आत्मसम्मान पर कुठाराघात है ।समिति के
भोम सिंह बलाई ने कहा की आम जुबान की भाषा राजस्थानी हे जिसका अपना
महत्त्व हे ,राजस्थान के लोग सहज और सरल हे शांतिपूर्वक तरीके से 68 सालो
से अपना अधिकार मांग रहे हें ,उन्होंने कहा की राजस्थानी भाषा की मान्यता
का मुद्दा प्रदेश के युवाओं के भविष्य का प्रश्न बन गया हें ,भाषा को अब
संविधान की आठवी सूचि में शामिल कर मान्यता देनी ही पड़ेगी .
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