जहरीली गैस दु:खान्तिका में मृतकों की संख्या बढ़कर तीन
बालोतरा। कारखाने में टंाके से निकली जहरीली गैस ने तीन चिराग बुझा दिए। मृतकों में दो सगे भाई थे। तीसरा मृतक युवक भी उनका पड़ौसी था। इस दु:खान्तिका ने पचपदरा निवासी नरपत और धर्माराम हरिजन के परिवार पर वज्रपात सा किया है। दोनों ही परिवार सदमे में है। जवान और कमाऊ बेटों को खोने का गम इस कदर गहरे बैठ गया है कि शोक संतप्त परिवारजनों के आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे हैं। दर्द नश्तर की तरह गहरे तक धंस गया है।
सन्नाटे भरे माहौल को अगर तोड़ती है तो सिर्फ सिसकियंा। जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उनके होठों पर एक ही दुआ है कि ऎसा कोई हादसा किसी और के साथ नहीं हो। इन गमजदा परिवारों की ये संवेदनाएं निश्चित तौर पर सराहनीय है,लेकिन प्रशासन की बात करें तो आज भी गफलत बदस्तूर है। कारखानों में टांके और कच्चे गड्डे तेजाबी पानी से तरबतर है। यह बात भी तय है कि कुछ दिन बाद जब ये टांके लबालब हो जाएंगे तो पम्पिंग कर पानी को तो टैंकरों में भरवाकर बाहर भिजवा दिया जाएगा, लेकिन टांके के पैंदे में जमा रसायनिक स्लज को बाहर निकलवाने के लिए उन गरीब मजदूरों को ही अंदर धकेला जाएगा, जो पेट की आग बुझाने के खातिर खतरे को भी गले लगाने से परहेज नहीं रखते।
माना कि उनकी तो यह मजबूरी है लेकिन उद्यमियों और प्रशासन को भी यह व्यवस्था तय करनी पड़ेगी कि जो लोग रसायनिक स्लज से भरे कुओं अथवा गड्डों में सफाई के लिए उतर रहे हैं, उन्हें सुरक्षा के लिहाज से माकूल बंदोबस्त उपलब्ध करवाए जाएं ताकि दुर्घटनाओं से बचा जा सके। औद्योगिक क्षेत्र के किसी कारखाने में गफलत के चलते फिर कोई दु:खांतिका का दोहरान नहीं हों, इसके लिए कारगर प्रयास और निगरानी की जरूरत है।
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