ग्वार की दूसरी फसल में गुजरात अव्वल
अहमदाबाद।कृषि के क्षेत्र में दस वर्ष से दो अंकों की वृद्धि दर हांसिल कर रहा गुजरात इस वर्ष ग्वार की दूसरी फसल लेने में सफल होने जा रहा है। ऎसा करने वाला ये देश का पहला राज्य होगा। वैसे राजस्थान और हरियाणा भी ऎसी ही कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उन्हें खास सफलता हाथ नहीं लगी। गुजरात के सौराष्ट्र, उत्तर व मध्य गुजरात के करीब तीन लाख हैक्टेयर इलाके में ग्वार की दूसरी फसल की बुवाई हुई है, फसल में फलियां अच्छी आ रही हैं, जिसमें करीब 25 लाख बोरी (ढाई लाख टन) उत्पादन होने का अनुमान है।
ऎसा होने की स्थिति में दूसरी फसल के साथ गुजरात ग्वार उत्पादन में राजस्थान की बराबरी करने के साथ उसे पीछे भी छोड़ सकता है, क्योंकि इससे पहले गुजरात मुख्य खरीफ के सीजन में करीब 25 लाख बोरी ग्वार का उत्पादन कर चुका है। देश में ग्वार उत्पादन में राजस्थान ही वषोंü से अव्वल रहा है।
गत वर्ष मुख्य सीजन में राजस्थान में 50 लाख बोरी, हरियाणा में 35 लाख बोरी ग्वार का उत्पादन हुआ था और गुजरात 25 लाख बोरियों के साथ तीसरे स्थान पर था। अब मई में दोबारा आ रही ग्वार की सफल फसल में भी 25 लाख बोरी ग्वार उत्पादन का अनुमान है। ऎसे में ये राजस्थान की बराबरी कर लेगा या आगे हो जाएगा। विश्व का 80 प्रतिशत ग्वार उत्पादन भारत में होता है।
25 लाख बोरी उत्पादन का अनुमान- ग्वार के बड़े कमीशन एजेंट दलाल राजेन्द्रकुमार एंड कंपनी के शंभूभाई ने बताया कि गत वर्ष 2012 में ग्वार तीन सौ रूपए किलो (30 हजार रूपए क्विटल)तक के भाव पर बिका। जो अमूमन आठ से 15 रूपए प्रति किलो ही बिकता था। अभी अप्रेल में भी ग्वार का भाव 8 0 रूपए किलो (आठ हजार रूपए क्विटल) पर है। जून-जुलाई-12 की मुख्य फसल आई थी तो इसका 25 लाख बोरी उत्पादन हुआ था। कंपनी के ही राजूभाई ने बताया कि अब फरवरी-13 में बोई गई फसल आने वाली है, जिसमें भी 25 लाख बोरी उत्पादन का अनुमान है। देश में अन्य कहीं भी दोबारा इसकी बुवाई नहीं हुई है। सिर्फ गुजरात ही मई में ग्वार की फसल देगा, जिससे यहां के किसानों को इसके बेहतर भाव मिलेंगे। देश से ज्यादा विदेशों में इसकी मांग ज्यादा रहती है।
कम लगता है पानी
जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के सब्जी अनुसंधान केन्द्र के अध्यक्ष डॉ.ए.वी.बारड का कहना है कि जून 2012 में कम बरसात होने व बाजार में इसके ऊंचे दाम मिलने से फरवरी-13 में अहमदाबाद से लेकर जूनागढ़ तक हाइवे के दोनों किनारों के खेतों में व पूरे सौराष्ट्र इलाके में इसकी दूसरी बार इसकी बुवाई की गई है। ये पहली बार हो रहा है। गत वर्ष कुछ क्षेत्र में प्रायोगिक स्तर पर दोबारा ग्वार की बुवाई की गई थी। इस बार इसका रकबा काफी बढ़ा है और आगामी वर्ष इसमें और वृद्धि होने की प्रबल संभावना है। अन्य फसलों में जहां 7-8 दिन में पानी देने की जरूरत होती है वहीं ग्वार में 15 से 20 दिन में पानी देना होता है।
इन क्षेत्रों में आता है काम
ग्वार में 70 फीसदी पशु का चारा और 30 फीसदी गम निकलता है। गम का उपयोग सबसे ज्यादा तेल उत्पादन क्षेत्र में, विस्फोटक निर्माण में, पेपर उद्योग, कपड़ा उद्योग, मेडिसिन, खाद्य पदार्थ (आइस्क्रीम, केक, ब्रेड निर्माण) सहित पचासों वस्तुओं के निर्माण में होता है। विदेशों में इसकी मांग बहुत है।
मौसम की मार, भाव की तेजी का असर
जूनागढ़ के किसान मावजीभाई करसनभाई का कहना है मौसम की मार से गत वर्ष बाजरी, ज्वार और मूंगफली की फसल तो नष्ट हो गई। अब इसी का सहारा है, क्योंकि इसमें ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। डीसा के एक अन्य किसान शंकरभाई पटेल का कहना ग्वार की पैदावार लागत को देखते हुए अन्य फसलों की तुलना में अच्छी है। फिर इसके दाम भी गत वर्ष अच्छे मिले थे, इस वर्ष भी ठीक हैं, लिहाजा इसकी दोबारा बुवाई की है।
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