आइए, धरती को लंबी आयु प्रदान करें
बाड़मेर कृष्णा संस्था द्वारा पृथ्वी दिवस पर सोमवार शाम को विचार गोष्ठी
का आयोजन किया गया .कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए शिक्षाविद
महेश दादानी ने कहा कि यों तो हमारा हर दिन, हर तारीख पृथ्वी और पर्यावरण
के प्रति समर्पित हो, तो इससे अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती। लेकिन हर
दिवस का अपना एक विशेष महत्व होता है और इस लिहाज से ‘अर्थ डे’ का भी
अपना महत्व है। 1969 में जब जॉन मैक्कोनेल ने इसके नाम व अवधारणा के बारे
में सोचा था, 1970 में जब इसे पहली बार मनाया गया और 1990 में जब 141 देश
इस दिवस से सीधे तौर पर जुड़े, तो कहीं-न-कहीं यह खयाल जेहन में रहा कि
मानव समुदाय जिस तथाकथित विकास की राह पर है, वह विकास वास्तव में विनाश
की ओर ले जाता है। इस विकास से हुए परिवर्तनों से पृथ्वी पर बोझ बढ़ता जा
रहा है, जिसे समझने-जानने और उस बोझ को कम करने की जरूरत है। अब इधर आकर
हमें यह पता चला है कि इसमें जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या है, जो न
केवल मानव समुदाय, बल्कि समस्त जीवों के लिए गंभीर खतरा है। इसे हल करने
के लिए मानव जाति को अपने विकास के संपूर्ण ढांचे में थोड़े-बहुत
परिवर्तन करने होंगे।
संस्था निदेशक चन्दन सिंह भाटी ने कहा की जैव-विविधता को बढ़ाना व
अक्षुण्ण रखना भी एक अहम मुद्दा है। जहां तक नदियों के प्रदूषण का प्रश्न
है, तो इस विषय पर इन दिनों देश में काफी कुछ कहा-सुना जा रहा है। यह भी
लोग जान रहे हैं कि गंगा-यमुना जैसी नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के
नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन ऐसी क्या वजहें हैं, जिनके
चलते आज भी देश की प्रमुख नदियां संकट में हैं? इनमें व इनके आसपास
स्वस्थ जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह बेहद लज्ज की बात है कि जिस
गंगा को हम पूजते हैं, उसकी बेहद खराब हालत है। वन व नदी से जुड़े
प्रश्नों का हल सम्मिलित रूप से ही निकलेगा। इन दो मसलों पर केंद्र व
राज्य सरकारें, बिजनेस क्लास, सिविल सोसायटी, एनजीओ, विश्वविद्यालय-
विद्यालय और स्थानीय लोगों की सहभागिता बेहद जरूरी है। इन सबके बीच
जागरूकता की एक लहर तो उठनी ही चाहिए, जिसके बूते दिन-ब-दिन गहराती इन दो
समस्याओं पर हम काबू पा सकेंगे।विचार गोष्ठी में प्रकाश जोशी ,असरफ अली
,रमेश सिंह इन्दा ,सवाई चवदा ,दिग्विजय सिंह चुली सहित कई जानो ने अपने
विचार व्यक्त किये .
बाड़मेर कृष्णा संस्था द्वारा पृथ्वी दिवस पर सोमवार शाम को विचार गोष्ठी
का आयोजन किया गया .कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए शिक्षाविद
महेश दादानी ने कहा कि यों तो हमारा हर दिन, हर तारीख पृथ्वी और पर्यावरण
के प्रति समर्पित हो, तो इससे अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती। लेकिन हर
दिवस का अपना एक विशेष महत्व होता है और इस लिहाज से ‘अर्थ डे’ का भी
अपना महत्व है। 1969 में जब जॉन मैक्कोनेल ने इसके नाम व अवधारणा के बारे
में सोचा था, 1970 में जब इसे पहली बार मनाया गया और 1990 में जब 141 देश
इस दिवस से सीधे तौर पर जुड़े, तो कहीं-न-कहीं यह खयाल जेहन में रहा कि
मानव समुदाय जिस तथाकथित विकास की राह पर है, वह विकास वास्तव में विनाश
की ओर ले जाता है। इस विकास से हुए परिवर्तनों से पृथ्वी पर बोझ बढ़ता जा
रहा है, जिसे समझने-जानने और उस बोझ को कम करने की जरूरत है। अब इधर आकर
हमें यह पता चला है कि इसमें जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या है, जो न
केवल मानव समुदाय, बल्कि समस्त जीवों के लिए गंभीर खतरा है। इसे हल करने
के लिए मानव जाति को अपने विकास के संपूर्ण ढांचे में थोड़े-बहुत
परिवर्तन करने होंगे।
संस्था निदेशक चन्दन सिंह भाटी ने कहा की जैव-विविधता को बढ़ाना व
अक्षुण्ण रखना भी एक अहम मुद्दा है। जहां तक नदियों के प्रदूषण का प्रश्न
है, तो इस विषय पर इन दिनों देश में काफी कुछ कहा-सुना जा रहा है। यह भी
लोग जान रहे हैं कि गंगा-यमुना जैसी नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के
नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन ऐसी क्या वजहें हैं, जिनके
चलते आज भी देश की प्रमुख नदियां संकट में हैं? इनमें व इनके आसपास
स्वस्थ जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह बेहद लज्ज की बात है कि जिस
गंगा को हम पूजते हैं, उसकी बेहद खराब हालत है। वन व नदी से जुड़े
प्रश्नों का हल सम्मिलित रूप से ही निकलेगा। इन दो मसलों पर केंद्र व
राज्य सरकारें, बिजनेस क्लास, सिविल सोसायटी, एनजीओ, विश्वविद्यालय-
विद्यालय और स्थानीय लोगों की सहभागिता बेहद जरूरी है। इन सबके बीच
जागरूकता की एक लहर तो उठनी ही चाहिए, जिसके बूते दिन-ब-दिन गहराती इन दो
समस्याओं पर हम काबू पा सकेंगे।विचार गोष्ठी में प्रकाश जोशी ,असरफ अली
,रमेश सिंह इन्दा ,सवाई चवदा ,दिग्विजय सिंह चुली सहित कई जानो ने अपने
विचार व्यक्त किये .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें