शीतला माता को लगाया ठंडे का भोग
जैसलमेरवासियों ने उत्साह से मनाई शीतला सप्तमी, मंदिरों में माता की पूजा-अर्चना की
स्वच्छता एवं आरोग्यता की अधिष्ठात्री है शीतला माता
ऐसा माना जाता है कि भगवती शीतला के इस आधि दैविक स्वरूप के चित्रण में स्वच्छता एवं आरोग्यता की अधिष्ठात्री का दर्शन होता है। देवी अपने दाहिने हाथ में झाड़ू लिए हुए हैं। जो कि स्वच्छता का प्रेरक है। देवी के हाथ में कलश स्वच्छ एवं शीतल जल के सेवन की बात सिखाता है। शीतला माता गर्दभ पर आरूढ़ बताई जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि इनके पूजन पर समाज के सभी वर्गों का अधिकार है तथा इनकी आराधना में किसी प्रकार के आंडबर की आवश्यकता नहीं है।
जैसलमेर जैसलमेर में मंगलवार को शीतला सप्तमी का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया गया। संक्रामक रोगों से मुक्ति दिलाने वाली और चेचक रोग से बचाने वाली शीतला माता को बुधवार को ठंडे का भोजन और पकवानों का भोग लगाया गया। गृहिणियों ने सोमवार को ही पकवान बना लिए थे। मंगलवार को जल्दी उठकर घर के सदस्यों ने सज-धजकर दुर्ग स्थित शीतला माता मंदिर में पूजा-अर्चना की और शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया। गर्दभ पर आरूढ़ तथा दिगंबरावस्था में अपने एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में कलश धारण किए मां शीतला की प्रतिमा की भक्तों ने मनोयोग से आराधना की। जो श्रद्धालु मंदिर नहीं जा सके उन्होंने अपने-अपने घरों में पेयजल स्थल 'परींडे' पर मटकी की पूजा-अर्चना की। मटकी पर स्वास्तिक बनाया गया और ठंडे भोजन और भांति-भांति के पकवान माता को प्रसन्न करने के लिए चढाएं गए।
शीतला सप्तमी यानी पुराना भोजन
शीतला सप्तमी पर बासी भोजन का महत्त्व है। जैसलमेर में मंगलवार को शीतला सप्तमी के दिन अधिकांश घरों में चूल्हा नहीं जलाया गया। भगवती को बासी भोजन का ही भोग लगाया जाता है। एक दिन पूर्व गृहिणियों ने खाना बनाकर रख दिया था। भोजन में दही, छाछ और घी के भांति-भांति के पकवान बनाए गए। नमकीन पूड़ी, मीठी पूड़ी, दाल की पूड़ी, दही, रायता, करबा, हलुवा, लापसी, पुलाव, दही बड़े और कई प्रकार की मिठाइयां छठ के दिन ही बना ली गई थी। शीतला सप्तमी के दिन माता को भोग चढ़ाकर प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण किया गया।
कहीं सप्तमी, कहीं अष्टमी
रोग विनाशिनी शीतला की पूजा का लोक पर्व पारंपरिक रूप से कहीं सप्तमी तो कहीं अष्टमी को मनाया जाता है। जैसलमेर के मूल निवासी शीतला सप्तमी को ही शीतला की पूजा करते हैं। जबकि जैसलमेर को छोड़ कर मारवाड़ और देश भर के अन्य भागों से आए गृहस्थ अष्टमी को भी इस पर्व को पारंपरिक रूप से मनाते हैं।
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