मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

वर्तमान में भी जरूरी है महावीर की शिक्षा



नाणा दियाणा नांदिया, जीवत स्वामी वांदिया


ऐसे समझें जैन धर्म को...


वर्तमान में भी जरूरी है महावीर की शिक्षा


महावीर स्वामी के चौंतीस भव निम्नानुसार हैं


चौबीसवें तीर्थंकर हैं भगवान महावीर


कुंडलपुर में होगा महाअभिषेक


खुशी में दमक रही जन्मस्थली


...और यहां नवलखा मंदिर में भी विशेष पूजा



  
तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने वाले भगवान महावीर की जयंती मंगलवार को जिलेभर में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। इस दौरान अहिंसा का संदेश देने वाले भगवान महावीर के जयकारों से पूरा माहौल महावीरमय हो जाएगा। जैन युवा संगठन के बैनर तले शोभायात्रा भी निकाली जाएगी। अध्यक्ष विकास बुबकिया ने बताया कि यह शोभायात्रा सुबह 7 बजे बागर मोहल्ला स्थित श्री संघ सभा भवन से प्रारंभ होगी तथा जैन मार्केट, गजानंद मार्ग, बादशाह का झंडा, सर्राफा बाजार, रूई कटला, पुराना बस स्टैंड, नेहरू नगर होते हुए अणुव्रत नगर पहुंच संपन्न होगी। समारोह की तैयारी को अंतिम रूप देने के लिए कार्यकर्ता देर रात तक जुटे रहे। तैयारियों में योगेश कांकरिया, विकास ओस्तवाल, दमन भंडारी, उत्तम लूकड़, शुभम चौपड़ा, पुनीत ओस्तवाल, नवरतन सालेचा, अरविंद धारीवाल आदि जुटे हुए हैं।
झांकियां रहेंगी आकर्षण
इस बार शोभायात्रा में झांकियों को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए पूरी मेहनत की गई है। अध्यक्ष बुबकिया ने बताया कि शोभायात्रा में शामिल भिन्न-भिन्न झांकियां भगवान महावीर के जीवन दर्शन के साक्षात दर्शन कराएंगी। शोभायात्रा में घोड़े, विभिन्न भजन मंडली, विरमगांव की शहनाई, डीसा का काठियावाड़ी नृत्य, भटिंडा के फौजी बैंड, बीजापुर बैंड व नासिक ढोल, पूना की रंगोली, अहिंसा रैली, जैन परेड भी शामिल होगी। समापन पर जुगराज कवाड़ परिवार द्वारा प्रसादी वितरण भी होगा। शोभायात्रा में
क्या है तीर्थंकर का अर्थ 
जो देवों और मनुष्य द्वारा पूज्य होते हैं, जो स्वयं तरते हैं तथा औरों को तरने का मार्ग बताते हैं, उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थंकर जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त होते हैं। जैन धर्म के इन्हीं तीर्थंकरों ने क्रमिक रूप से जैन धर्म की आधारशिला रखी। वैसे तेईसवें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ को एतिहासिक लोग जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं और चौबीसवें अंतिम तीर्थंकर महावीर को जैन धर्म का संशोधक माना जाता है। 


पाली में जैन समाज 


नमो अरिहंताणं से गूंजा वातावरण 
भगवान महावीर जयंती जन्म कल्याणक महोत्सव को लेकर सोमवार को अणुव्रत नगर मैदान में सामूहिक नवकार मंत्र जाप का आयोजन किया गया। जिसमें जैन समाज के कई श्रावक श्राविकाओं ने हिस्सा लिया। इस दौरान नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं के स्वरों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। जाप के लाभार्थी रमेशकुमार ललितकुमार मरलेचा द्वारा संघ पूजा व प्रभावना दी गई। सचिव हितेष कर्णावट ने बताया कि इस दौरान जैन परिवार परिचय वेबसाइट तथा महावीर वाणी का विमोचन श्रीसंघ सभा अध्यक्ष अगरचंद मेहता, विधायक ज्ञानचंद पारख, नगर परिषद चेयरमैन केवलचंद गुलेच्छा व सिटी सीओ सरिता शत्रुधन राकेश मेहता द्वारा किया गया। इस मौके पर जुगराज कवाड़, सुरेश कोठारी , रमेश मरलेचा, कांतीलाल छाजेड़, हुक्मीचंद सालेचा, मीठालाल बांठिया, मगराज नाहर, अमित मेहता, जवरीलाल कवाड़, लाभचंद गोलेच्छा, नेमीचंद चौपड़ा, उगमराज चौपड़ा आदि मौजूद थे। इससे पूर्व हुई चित्र से जैन संदेश प्रतियोगिता में चारू बंब प्रथम, ललित तलेसरा द्वितीय व रितेश मेहता तृतीय तथा महावीर फोन क्विज में पुखराज जैन, प्रकाश बलोटा व शिवलाल गुलेच्छा को पुरस्कृत किया गया। 


माता त्रिशला के सपनों का अर्थ 


जैन धर्म के अनुसार सभी तीर्थंकरों ने साधारण मनुष्य के रूप में जन्म लिया और अपनी इंद्रिय और आत्मा पर विजय प्राप्त कर वे तीर्थंकर बने। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर अर्हंतों में से ही होते हैं। संसार के प्राचीनतम धर्मों में से एक जैन धर्म है। इस धर्म का उल्लेख 'योगवशिष्ठ', 'श्रीमद्भागवत', 'विष्णु पुराण', 'शाकटायन व्याकरण', पद्म पुराण', 'मत्स्य पुराण' आदि प्राचीन ग्रंथों में भी जिन, जैन और श्रमण आदि नामों से मिलता है। जैनाचार्यों को जिन, जिनदेव या जिनेन्द्र आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। 'जिन' शब्द से ही 'जैन' शब्द की उत्पत्ति हुई है। 'जिन' किसी व्यक्ति-विशेष का नाम नहीं है, वरन जो लोग आत्म-विकारों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, जो अपनी इंद्रियों को वशीभूत कर लेते हैं, ऐसे आत्मजयी व्यक्ति 'जिन' कहलाते हैं। इन्हीं को पूज्य अर्थ में अर्हत, अरिहंत अथवा अरहन्त भी कहा जाता है। 


चार दांत वाला हाथी : चार प्रकार के धर्म को कहने वाला होगा 
वृषभ दर्शन : भारत भर में बोध बीज का वपन करेगा 
सिंह : जीव रूप, वन का संरक्षण करेगा 
लक्ष्मी : वार्षिक दान देकर तीर्थंकर के ऐश्वर्य का उपभोग करेगा 
माला : तीनों लोको के प्राणियों से पूजनीय होगा 
चंद्र : शांतिदायी क्षमा धर्म का उपदेश देगा 
सूर्य : अज्ञान का नाश करके ज्ञान का प्रकाश फैलाएगा 
ध्वजा : धर्म की ध्वजा धरती पर लहराएगा 
कलश : धर्म रूपी भवन शिखर पर कलश रूप होगा 
पद्म सरोवर : देव निर्मित स्वर्ण कमल पर बैठेगा
क्षीर सागर : अनंत ज्ञान दर्शन रूप का धारक होगा 
विमान : वैमानिक देवों द्वारा पूजनीय होगा 
रत्न राशि : ज्ञान रत्नों से विभूषित होगा 
अग्नि : धर्म रूपी स्वर्ण को निर्मल करने वाला होगा। 


1. पुरुरवा भील 
2. पहले स्वर्ग में देव 
3. भरत पुत्र मारीचि 
4. पांचवें स्वर्ग में देव 
5. जटिल ब्राह्मण 
6. पहले स्वर्ग में देव 
7. पुष्यमित्र ब्राह्मण 
8. पहले स्वर्ग-देव 
9. अग्नि सम-ब्राह्मण 
10. तीसरे स्वर्ग-देव 
11. अग्नि मित्र-ब्राह्मण 
12. चौथे स्वर्ग में देव 
13. भारद्वाज ब्राह्मण 
14. चौथे स्वर्ग-देव 
15. मनुष्य 
16. स्थावर ब्राह्मण 
17. चौथे स्वर्ग में देव 
18. विश्वनंदी 
19. दसवें स्वर्ग-देव 
20. त्रिपृष्ठ अर्धचक्री 
21. सातवें नरक में 
22. सिंह 
23. पहले नरक में, 24. सिंह 
25. पहले स्वर्ग-देव 
26. विद्याधर 
27. सातवें स्वर्ग में देव 
28. हरिषेण राजा 
29. दसवें स्वर्ग में देव 
30. चक्रवर्ती प्रियमित्र 
31. 12वें स्वर्ग-देव 
32. राजा नंदन 
33. सोलहवें स्वर्ग में इंद्र 
34. तीर्थंकर महावीर। 


शोभायात्रा में होंगे महावीर दर्शन 


 प्रचलित नाम : वद्र्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर, महावीर 
 जन्मस्थान : क्षत्रिय कुंड ग्राम (कुंडलपुर-वैशाली) बिहार 
 जन्मतिथि : चैत्र शुक्ल 13 ई.पू. 599 
 जन्म नक्षत्र : उत्तरा फाल्गुनी 
 माता का नाम : त्रिशला 
 पिता का नाम : सिद्धार्थ 
 वंश का नाम : ज्ञातृ वंशीय क्षत्रिय 
 गोत्र का नाम : काश्यप 
 चिह्न : सिंह। 
 शरीर वर्ण : सुवर्ण 
 दीक्षा : मार्गशीर्ष बदी 10 ई.पू. 570 
 दीक्षा स्थान : क्षत्रिय कुंड 
 प्रथम पारणा (दीक्षा) : 2 दिन बाद 
 तप काल : 12 वर्ष, 5 मास, 15 दिन 
 कैवल्य ज्ञान : वैशाख शुक्ल 10 ई.पू. 557 
 कैवल्य ज्ञान प्राप्ति का स्थान : साल वृक्ष 
 ज्ञान प्राप्ति स्थान : बिहार में जंभक गांव के पास ऋजुकूला नदी-तट। 
 गणधरों की संख्या : 11 
 प्रथम गणधर : गौतम स्वामी 
 प्रथम आर्य : चंदनबाला 
 यक्ष का नाम : ब्रह्मशांति 
 यक्षिणी का नाम : सिद्धायिका देवी 
 उपदेश काल : 29 वर्ष 5 मास, 20 दिन 
 निर्वाण तिथि : कार्तिक कृष्ण 30 (कार्तिक अमावस्या) ई.पू. 527 
 निर्वाण भूमि : पावापुरी (बिहार) 
 आयु : लगभग 72 वर्ष 


अर्थात- नाणा (पाली जिला एवं सिरोही जिले की सीमा के पास) दियाणा (सरूपगंज के पास), नांदिया (बामनवाड़ के पास) भगवान महावीर ने जीवितावस्था में विचरण किया था। (जैन साहित्य में उपलब्ध कहावत के अनुसार)। 

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