गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

गोपा के बलिदान ने जनता के आक्रोश को नई दिशा दी थी




गोपा के बलिदान ने जनता के आक्रोश को नई दिशा दी थी


अमर शहीद सागरमल गोपा की पुण्यतिथि आज


 जैसलमेर
धरती के सपूत वीर अमर शहीद सागरमल गोपा ने 4 अप्रेल को अपनी अंतिम सांस ली थी। गोपा की मृत्यु पर 27 अप्रेल 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि जैसलमेर के मशहूर राजनीतिक कार्यकर्ता गोपा की वहां की जेल में मृत्यु के संबंध में समाचार मिला है।

उनके बारे में बताया गया है कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। हमने इस मामले की जांच की है और इस जांच से जो बातें प्रकट हुई है वे दर्दनाक है। किसी भी व्यक्ति के साथ विशेषकर राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा व्यवहार करना वीभत्स और गुण्डागर्दी वाला है। गोपा के बलिदान से जैसलमेर तथा निकटवर्ती क्षेत्र की जनता को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरणा मिली। उनकी शहादत ने जनता के आक्रोश को नई दिशा दी। सभी प्रकार की गुलामी के बंधनों को तोड़ फेंकने के संकल्प को मजबूत किया।

स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा का जन्म 3 नवम्बर 1900 में एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज जैसलमेर राज्य के राजगुरु रहे थे। और राज्य की सेवा में अच्छे पदों पर नियुक्त थे। गोपा के पिता का नाम अखयराज था। स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनके रवैये को देखते हुए पद से हटाया गया तथा सागरमल गोपा अपने परिवार के साथ नागपुर में बस गए।

उन्होंने 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था। वे देशी राज्यों से संबंधित मामलों में विशेष रुचि लेते थे उनकी जनसेवा तथा स्वतंत्रता संबंध गतिविधियों को देखते हुए उनके जैसलमेर और हैदराबाद में प्रवेश पर शासन ने प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंधों के बावजूद गोपा ने अपनी गतिविधियां जारी रखी और अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद के अधिवेशनों में भाग लेते रहे। समाचार पत्रों तथा पुस्तकों के माध्यम से जनता को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनकी पुस्तकों में जैसलमेर राज्य का गुंडा राज तथा रघुनाथसिंह का मुकदमा उल्लेखनीय है।

अक्टूबर 1938 में पिता के देहावसान के लगभग डेढ़ साल बाद उन्होंने फिर से जैसलमेर जाने का कार्यक्रम बनाया। जैसलमेर राज्य के तत्कालीन रेजिडेंट ने उन्हें मौखिक आश्वासन दिया तथा कि उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। आश्वासनों के विपरीत 25 मई 1941 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा कई वर्षों तक जेल में रखकर यातनाएं दी। उनकी गिरफ्तारी उस समय की गई जब वह जैसलमेर छोड़कर बाहर जाने वाले थे तथा इसका कारण किसी को नहीं बताया गया।जेल के अत्याचारों के कारण 4 अप्रेल 1946 को गोपा की मृत्यु हो गई।

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