'कोरा भाषणां सूं कीं नीं हुय सकै, पैरवास और बोली अपणाणी पड़सी'
नागौर टाउन हॉल के सभागार में रविवार को पवन पहाडिय़ा की काव्यकृति 'नीतर्यो नीर' का विमोचन किया गया। राजस्थानी भाषा के नामचीन रचनाकार, राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के सचिव, अकादमी की पत्रिका जागती जोत के संपादक सहित राजस्थानी के शुभेच्छु अनेक जनप्रतिनिधि मंच पर मौजूद थे। कुछ रचनाकारों ने काव्यमय पंक्तियों में भी अपनी बात कही। खास कर राजस्थानी भाषा की मान्यता के संदर्भ में विस्तृत विचार विमर्श किया गया। अतिथियों ने मां सरस्वती की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्जवलित किया। बाद में अतिथियों का स्वागत किया गया। इस मौके पर पवन पहाडिय़ा को बीमा अभिकर्ता के रूप में 25 वर्ष पूरे करने पर बीमा निगम की ओर से अभिनंदन पत्र भेंट किया गया।
कार्यक्रम संयोजक लक्ष्मण दान कविया ने स्वागत भाषण में राजस्थानी भाषा की मान्यता के प्रयासों की जानकारी देने के साथ ही मंच पर आसीन रचनाकारों के साहित्य में योगदान के बारे में बताया। लोक कलाकार सतपाल सांधु ने राजस्थानी के विख्यात कवि और नागौर जिले में जन्मे कानदान कल्पित की कविता 'आजादी रा रुखवाळा थे सुता ई मत रैयजो रै' सुनाई तो समूचा सभागार तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। पेंशनर समाज नागौर के अध्यक्ष शिवदत्त शर्मा ने पवन पहाडिय़ा की कविताओं के अंश पढ़े और उनका विवेचन किया। रचनाकार पवन पहाडिय़ा ने चुनिंदा कविताओं का पठन किया। पुस्तक में संकलित गीत 'मायड़ भासा मान री' सुनाया तो श्रोताओं ने जम कर दाद दी। जागती जोत के संपादक रवि पुरोहित ने अपनी बात कही। भारतीय जीवन बीमा निगम के मुख्य प्रबंधक रामदेव दैय्या ने रचनाकार पहाडिय़ा के व्यक्तित्व के बारे में चर्चा की और पहाडिय़ा को दिए गए अभिनंदन पत्र का पठन किया।
मुख्य अतिथि बीकानेर सांसद अर्जुनराम मेघवाल अपने संक्षिप्त और सारगर्भित उद्बोधन से उपस्थित लोगों में नई चेतना कर संचार किया। उन्होंने राजस्थानी भाषा को मान्यता संबंधी फाइल कहां और क्यों अटकी हुई है, इसकी करंट अपडेट स्थिति की जानकारी दी। राजस्थानी भाषा के कवि और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बीकानेर सुखदेव सिंह ने उद्बोधन दिया। डॉ. राजेंद्र बारहठ ने राजस्थानी की महत्ता को रेखांकित करते हुए अपनी बात कही। राजस्थानी भाषा साहित्य और संस्कृति अकादमी के सचिव पृथ्वीराज रत्नू और नगर परिषद नागौर के सभापति बिरदीचंद सांखला ने उद्बोधन दिया।राजस्थानी के सशक्त हस्ताक्षर चंपाखेड़ी से आए देवकिशन राजपुरोहित ने कहा कि तालाबों का पानी यूं तो गंदा हो जाता है लेकिन जब वह नीतर जाता है तो सभी उसे पीने के काम में लेते हैं। इसी तरह राजस्थानी को मान्यता के लिए एकजुट होकर समन्वित प्रयास करने होंगे, राजस्थान के आम आदमी को सुर में सुर मिलाना होगा तब कहीं जाकर इस समृद्ध भाषा को मान्यता मिल सकेगी। समारोह का संचालन डीडवाना से आए डॉ. गजादान चारण ने किया।
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