सोमवार, 18 मार्च 2013

और चिपक गई पेड़ से

और चिपक गई पेड़ से

कोरबा।ग्राम भुलसीडीह की दो बुजुर्ग महिलाओं ने चिपको आंदोलन की याद ताजा कर दी है। इंडियन ऑयल की पाइपलाइन परियोजना के दायरे में आ रहे पेड़ को बचाने के लिए दोनों ने मौके पर डेरा डाल रखा है। बीते 48 घंटे से वे पेड़ से चिपकी हुई हैं।


छतरमति व बुलमति का यह न केवल प्रकृति प्रेम है, बल्कि आत्मनिर्भरता का जज्बा भी है। शनिवार की सुबह से दोनों बुजुर्ग महिलाएं गांव के करीब में स्थित कोसम के पेड़ से चिपकी हुई हैं। यहां से वे एक पल के लिए भी नहीं हिली हैं। दोनों ने ठान लिया है कि पेड़ की बलि नहीं लेने देंगे। कोसम का यह पेड़ इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की पाइप लाइन परियोजना की जद में आ रहा है।

पाइललाइन के लिए 18 मीटर के दायरे में आने वाले छोटे-बड़े पेड़ों की कटाई की जा रही है। छतरमति व बुलमति को जैसे ही खबर लगी कि कोसम के पेड़ को काटने की तैयारी की जा रही है, दोनों मौक पर डट गई। ठेका कम्पनी के लोगों ने समझाइश दी कि सरकारी काम है, लेकिन इन्होंने दो-टूक कह दिया कि वे पेड़ को नहीं काटने देंगी।


करीब 70 साल छतरमति का कहना है कि उसने पेड़ को छोटे से बड़ा होते देखा है। यह पेड़ उसके बच्चे की तरह है। फिर यह कोसम का पेड़ उनका पेट पालता है। इसमें उसने लाख चढ़ा रखी है। इसकी बिक्री से घर चलता है। छतरमति ने सवाल किया कि पेड़ नहीं रहेगा तो पैसे कहां से आएंगे?


804 किसानों की भूमि ली गई : पीओएल टर्मिनल के लिए पाइपलाइन बिछाने को जिले के करतला, कोरबा व कटघोरा ब्लॉक की 61 हेक्टयर जमीन का अधिग्रहण किया गया है। इससे 804 किसान प्रभावित हो रहे हैं। इंडियन ऑयल कॅारपोरेशन ने गोपालपुर में 74640 किलोलीटर क्षमता वाला पीओएल टर्मिनल स्थापित किया जा रहा है। सरायपाली, जैजेपुर, चाम्पा होते हुए पाइपलाइन कोरबा पहंुच रही है।

आखिर झुका दिया


दोनों बुजुर्ग महिलाओं के जज्बे के आगे कम्पनी के नुमाइंदे नतमस्तक हो गए हैं। फिलहाल कोसम के इस पेड़ को छोड़ दिया गया है। पाइपलाइन के ही रास्ते में आंशिक फेरबदल कर दिया गया है, लेकिन छतरमति व बुलमति को कम्पनी के लोगों पर भरोसा नहीं है, इसलिए वे मौके पर जमी हुई हैं।

ये है चिपको आंदोलन


पेड़ों की कटाई रोकने के लिए 26 मार्च 1974 में चिपको आंदोलन शुरू हुआ था, उस साल जब उत्तरप्रदेश (अब उत्तराखंड) के रैंणी गांव के जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुंचे, तो गौरादेवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो, फिर इन पेड़ों को हाथ लगाना। नतीजतन, रैंणी गांव का जंगल नहीं काटा गया और यहां से चिपको आंदोलन की शुरूआत हुई। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में इस आंदोलन का विस्तार हुआ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें