फैसले से पेट नहीं भरता साहब, रोटी तो चाहिए?
बाड़मेर। रूपदान व इन्द्रकंवर की उम्र अस्सी वर्ष से अधिक हो गई है। उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें संतान के सहारे की जरूरत है, लेकिन हालत यह है कि यह वृद्ध दम्पती अपनी ही संतान से हक की लड़ाई लड़ने पर मजबूर है। कानूनी लड़ाई में फैसला भी वृद्ध दम्पत्ति के पक्ष में आ गया, लेकिन फैसला कागजों में ही रह गया। जिला मजिस्ट्रेट के फैसले के दस माह बाद भी वृद्ध रूपदान व उनकी पत्नी इन्द्रकंवर भरण पोषण व आवास के लिए तरस रहे हैं।
जिले की पचपदरा तहसील के कोडूका गांव निवासी रूपदान व उनकी पत्नी इन्द्रकंवर के तीन पुत्र है। जीवन के अंतिम पड़ाव में पुत्रों का सहारा नहीं मिलने पर इनके समक्ष भरण पोषण का संकट खड़ा हो गया। लिहाजा इस दम्पती ने न्यायालय का सहारा लिया और भरण पोषण का हक मांगा। बीते वर्ष 5 मई को तत्कालीन जिला मजिस्टे्रट डॉ. वीणा प्रधान ने न्यायिक सुनवाई के बाद दिए फैसले में यह माना कि यह वृद्ध दम्पती स्वयं कमाने में समक्ष नहीं है। इन्हें जीवन निर्वाह व भरण पोषण के लिए तीनों पुत्रों से दो-दो हजार रूपए प्रतिमाह प्राप्त करने का हक है। मजिस्ट्रेट ने धारा 16 अभिभावकों और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत रूपदान व इन्द्रकंवर के पुत्र अमरदान, नरसिंगदान, किशोरदान को आदेश दिए कि वह अपने माता-पिता को प्रतिमाह दो-दो हजार रूपए अदा करे। मजिस्ट्रेट ने माता-पिता की पूर्ण देखभाल व सत्कार करने के आदेश दिए।
एसडीएम को दिए थे निर्देश
जिला मजिस्ट्रेट ने उपखण्ड मजिस्ट्रेट बालोतरा को इस फैसले की पालना तीन दिन के भीतर सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे, लेकिन हालत यह है कि फैसले के दस माह बाद भी इसकी पालना नहीं हुई है। हालांकि उपखण्ड मजिस्ट्रेट ने जिला मजिस्ट्रेट के फैसले से ठीक एक वर्ष पहले इसी मामले में वृद्ध दम्पती के विरूद्ध फैसला दिया था, जिसे जिला मजिस्ट्रेट ने अपास्त कर दिया।
जीने के लिए रोटी चाहिए
दो-दो हजार रूपए देने का फैसला तो मिल गया था, लेकिन रूपए आज दिन तक नहीं मिले। फैसले से पेट नहीं भरता, जीने के लिए रोटी चाहिए, जो रूपयों के बिना संभव नहीं। -रूपदान, उम्र 85 वर्ष
पालना नहीं हुई
रूपदान व इन्द्रकंवर को प्रतिमाह दो-दो हजार रूपए गुजारा भत्ता देने के न्यायालयों के निर्देशों का पालना अभी तक नहीं हुई है। पालना नहीं करवाने के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए और फैसले की तत्काल पालना होनी चाहिए। -भगवानसिंह राठौड़, वृद्ध दम्पती के अधिवक्ता
तहसीलदार से पता करवाता हूं
यह मामला मेरे ध्यान में नहीं आ रहा है। तहसीलदार से पता करवाता हूं। इसके बाद ही कुछ बता सकता हूं। -अयूबखान, उपखण्ड अधिकारी, बालोतरा
बाड़मेर। रूपदान व इन्द्रकंवर की उम्र अस्सी वर्ष से अधिक हो गई है। उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें संतान के सहारे की जरूरत है, लेकिन हालत यह है कि यह वृद्ध दम्पती अपनी ही संतान से हक की लड़ाई लड़ने पर मजबूर है। कानूनी लड़ाई में फैसला भी वृद्ध दम्पत्ति के पक्ष में आ गया, लेकिन फैसला कागजों में ही रह गया। जिला मजिस्ट्रेट के फैसले के दस माह बाद भी वृद्ध रूपदान व उनकी पत्नी इन्द्रकंवर भरण पोषण व आवास के लिए तरस रहे हैं।
जिले की पचपदरा तहसील के कोडूका गांव निवासी रूपदान व उनकी पत्नी इन्द्रकंवर के तीन पुत्र है। जीवन के अंतिम पड़ाव में पुत्रों का सहारा नहीं मिलने पर इनके समक्ष भरण पोषण का संकट खड़ा हो गया। लिहाजा इस दम्पती ने न्यायालय का सहारा लिया और भरण पोषण का हक मांगा। बीते वर्ष 5 मई को तत्कालीन जिला मजिस्टे्रट डॉ. वीणा प्रधान ने न्यायिक सुनवाई के बाद दिए फैसले में यह माना कि यह वृद्ध दम्पती स्वयं कमाने में समक्ष नहीं है। इन्हें जीवन निर्वाह व भरण पोषण के लिए तीनों पुत्रों से दो-दो हजार रूपए प्रतिमाह प्राप्त करने का हक है। मजिस्ट्रेट ने धारा 16 अभिभावकों और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत रूपदान व इन्द्रकंवर के पुत्र अमरदान, नरसिंगदान, किशोरदान को आदेश दिए कि वह अपने माता-पिता को प्रतिमाह दो-दो हजार रूपए अदा करे। मजिस्ट्रेट ने माता-पिता की पूर्ण देखभाल व सत्कार करने के आदेश दिए।
एसडीएम को दिए थे निर्देश
जिला मजिस्ट्रेट ने उपखण्ड मजिस्ट्रेट बालोतरा को इस फैसले की पालना तीन दिन के भीतर सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे, लेकिन हालत यह है कि फैसले के दस माह बाद भी इसकी पालना नहीं हुई है। हालांकि उपखण्ड मजिस्ट्रेट ने जिला मजिस्ट्रेट के फैसले से ठीक एक वर्ष पहले इसी मामले में वृद्ध दम्पती के विरूद्ध फैसला दिया था, जिसे जिला मजिस्ट्रेट ने अपास्त कर दिया।
जीने के लिए रोटी चाहिए
दो-दो हजार रूपए देने का फैसला तो मिल गया था, लेकिन रूपए आज दिन तक नहीं मिले। फैसले से पेट नहीं भरता, जीने के लिए रोटी चाहिए, जो रूपयों के बिना संभव नहीं। -रूपदान, उम्र 85 वर्ष
पालना नहीं हुई
रूपदान व इन्द्रकंवर को प्रतिमाह दो-दो हजार रूपए गुजारा भत्ता देने के न्यायालयों के निर्देशों का पालना अभी तक नहीं हुई है। पालना नहीं करवाने के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए और फैसले की तत्काल पालना होनी चाहिए। -भगवानसिंह राठौड़, वृद्ध दम्पती के अधिवक्ता
तहसीलदार से पता करवाता हूं
यह मामला मेरे ध्यान में नहीं आ रहा है। तहसीलदार से पता करवाता हूं। इसके बाद ही कुछ बता सकता हूं। -अयूबखान, उपखण्ड अधिकारी, बालोतरा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें