जहां परम गति मिलती है,यहां बहुत सरलता से तंत्र-मंत्र, जादू-टोना की सिद्धि मिलती है। यहां साक्षात भगवती विराजमान हैं। यहां के जल में स्नान करने की इतनी महिमा है कि ब्रह्म हत्या से भी मुक्ति मिल जाती है। देवीपुराण में कहा गया है कि साक्षात भगवान जनार्दन ही यहां जल, द्रव, रूप में विद्यमान हैं,भगवती कामेश्वरी की पूजा करने से पूर्व महापीठ कामाख्या के जल में स्नान करना चाहिए। पुराणों में ऐसा भी कहा गया है कि मानस कुंडादि में स्नान करने से तंत्रोक्त विधि से परमेश्वरी भगवती मां कामाख्या की पूजा, जप, हवन आदि करने से मनचाहा फल प्राप्त होता है।
यहां भगवती को बलि चढ़ाने की प्रथा आज भी निभाई जाती है,परअब धीरे-धीरे यह कम हो रही है। अब उसके स्थान पर कुछ कबूतरों को यहां मुक्त करके छोड़ दिया जाता है। देवी भागवत के सातवें स्कंध के अड़तीसवें अध्याय में कामाक्षी देवी का माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि इस समस्त भूमंडल में ये देवी का महाक्षेत्र माना गया है। इनके दर्शन, भजन, पाठ-पूजा करने से समस्त विघ्नों से शांति मिलती है।
आश्विन तथा चैत्र मास के नवरात्रि में यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। कामाख्या मंदिर पहाड़ी पर बना हुआ है वापसी आने पर गुवाहाटी नगर के सामने ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में उमानंद नामक छोटे चट्टानी टापू में शिव मंदिर मिलता है,जहां भगवान शिव का दर्शन करने के लिए नौका द्वारा जाना पड़ता है। उमानंद की मूर्ति को लोग भैरव यानी कामाख्या के रक्षक मानते है। गुवाहाटी का अन्य नाम कामरूप भी है क्योंकि पौराणिक ग्रंथों में बताया गया है कि कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी की तपस्या करके उन्हें खुश किया और अपने पति को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा और साथ ही उसका रूप भी वापिस मांगा था।
एक अन्य कथा के अनुसार कामदेव ने इसी स्थान पर भगवान शिव की तपस्या भंग की थी और शिव जी ने अपने नेत्रों की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था तो इस स्थान का एक नाम भस्मास्थल भी है। कामरूप में सती की योनि गिरी थी। इसलिए असम को कामरूप क्षेत्र कहते है। इस पृथ्वी पर इक्यावन सिद्ध शक्तिपीठ है, उनमें कामरूप कामाख्या क्षेत्र मुख्य है। जिस स्थान पर भगवती सती के शरीर का भाग गिरा था, वहां पर वर्तमान में एक भव्य मंदिर है।
असम के राजा नर नारायण ने सन् 1565 में इस मंदिर को बनवाया था। इस मंदिर का नक्शा मधुमक्खी के छत्ते के आकार का बनाया
गया है। इस मंदिर की देवी कामाख्या को काली मां का रूप माना जाता है। यहां प्रात एवं सायं आरती होती है।
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