आज से दस हजार साल पुरानी बात है छत्तीसगढ़ के रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू हनुमान जी के भक्त थे। एक बार उनको कुष्ट रोग हो गया,जिससे वे निराश हो गये। एक रात राजा के स्वपन में हनुमान जी आए और मंदिर बनवाने के लिए कहा जैसे ही मंदिर का कार्य पूरा हुआ। हनुमान जी फिर से राजा के स्वपन में आए और अपने श्री रूप को महामाया कुण्ड से निकालकर मंदिर में स्थापित करने को कहा राजा ने वैसा ही किया।
हनुमान जी का यह श्री रूप दक्षिणमुखी है। यह संसार का इकलौता मंदिर है जहां हनुमान जी की नारी प्रतिमा की पूजा होती है। उनके बायें कंधे पर श्री राम और दायें पर लक्ष्मण जी बैठे हैं और पैरों के नीचे दो राक्षस है जैसे ही मंदिर संपूर्ण हुआ राजा को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली। राजा ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि वे लोगों की मुराद पूरी करने की कृपा करें तभी से हनुमान जी लोगों की मनोकामना पूरी कर रहे हैं।
हनुमान जी का यह श्री रूप दक्षिणमुखी है। यह संसार का इकलौता मंदिर है जहां हनुमान जी की नारी प्रतिमा की पूजा होती है। उनके बायें कंधे पर श्री राम और दायें पर लक्ष्मण जी बैठे हैं और पैरों के नीचे दो राक्षस है जैसे ही मंदिर संपूर्ण हुआ राजा को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली। राजा ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि वे लोगों की मुराद पूरी करने की कृपा करें तभी से हनुमान जी लोगों की मनोकामना पूरी कर रहे हैं।
पहली बार पता चला
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