नई दिल्ली। दुनिया भर में आलोचना के बाद सऊदी अरब में सात नाबालिगों के मृत्युदंड को फिलहाल रोक दिया गया है। अरब की शाही अदालत ने दोषियों के परिजनों और रिश्तेदारों की दोबारा से सुनवाई की मांग को स्वीकार कर लिया है। सातों युवकों के परिजनों ने इस फैसले पर खुशी जताई है। एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत दुनिया भर के मानवाधिकार संगठनों ने इस मृत्युदंड का विरोध किया था।
दुनियाभर के तमाम मुल्कों में जहां एक ओर मौत की सजा को समाप्त करने की मांग बढ़ती जा रही है। लेकिन, सऊदी अरब में मंगलवार को सात नाबालिग दोषियों को सिर कलम कर मौत की सजा देने की तैयारी पूरी कर ली गई है। जब इन्होंने अपराध को अंजाम दिया था, उस वक्त उनकी उम्र 18 वर्ष से भी कम थी। जिसके बाद उनकी सजा को लेकर काफी बहस भी हुई। लेकिन सऊदी अरब के राजा अब्दुल्लाह ने उनकी मौत की सजा पर मुहर लगा दी है।
गौरतलब है कि इन सात लोगों ने वर्ष 2006 में एक बैंक को लूटा था। जिसके बाद उन पर मुकदमा चला और वर्ष 2009 में सभी को मौत की सजा सुनाई गई। जबकि, दुनिया की सबसे ख्यात मानवाधिकार एजेंसी एमनेस्टी का कहना है कि सभी आरोपियों को डंडा के बल पर और भूखे प्यासे रखकर जूर्म कबूलने के लिए मजबूर किया गया था। इन्हें न तो सोने दिया जाता और न बैठने। 24 घंटे उन्हें भूखा प्यासा खड़ा कर के मारा जाता था। इतना शोषण होने के बाद सभी ने हार मान ली।
हालांकि, सऊदी अरब के आतंरिक मंत्री पहले कह चुके हैं कि सऊदी अरब में किसी को सताया नहीं जाता है। सऊदी अरब में इस्लामिक कानून के अनुसार शासन चलता है। जिसका कई देशों ने विरोध भी जताया है। सऊदी अरब में बड़ी संख्या में लोगों को मौत की सजा दी जाती है। इतना ही नहीं, कई बार तो पब्लिक लोगों को सड़क पर पीट पीटकर मौत की सजा पर मुहर लगाती है। वर्ष 2011 में सऊदी अरब में 8 बांग्लादेशियों को मौत की सजा दी गई थी।
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