मंगलवार, 12 मार्च 2013
प्रेम की अनूठी मिसाल: सास की प्रेरणा से पढ़ाई छोड़ने के 13 साल बाद बहू बनी सीएस!
जोधपुर.सास व बहू के झगड़े तो सर्वविदित हैं, लेकिन शहर की गोपीदेवी ने अपनी बहू भारती की प्रतिभा पहचानी और हौसला बढ़ाया तो वह सीएस बन गईं। भारती अपनी इस उपलब्धि का श्रेय सिर्फ अपनी सास को देती है। भारती का कहना हैं कि यदि गोपी देवी जैसी सास सबको मिले तो कई बहुओं की छिपी प्रतिभा पूरे परिवार का नाम रोशन कर संवर सकती है।
भारती ने वर्ष 1999 में पढ़ाई छोड़ दी थी। उसने बीकॉम ऑनर्स प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, लेकिन सीए फाउंडेशन में सलेक्शन नहीं होने से आगे पढ़ाई नहीं की।
वर्ष 2005 में आलोक राठी से शादी होने के बाद वह आलोक के साथ दुबई चली गईं। किसी कारणवश आलोक को वर्ष 2010 में नौकरी छोड़कर भारत लौटना पड़ा। आलोक ने एक वर्ष पुणो व उसके बाद अहमदाबाद में जॉब किया। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण भारती जोधपुर आ गईं और अपने सास-ससुर के साथ रहने लगीं।
गोपीदेवी चाहती थी कि उसकी बहू सीएस बने। भारती के दो नन्हे बच्चे होने के कारण वह हिम्मत नहीं जुटा पाई रही थीं। 31 अगस्त 2010 को सीएस का फॉर्म भरने की अंतिम तिथि थी। गोपीदेवी ने उसी दिन पड़ोसी को भेजकर फॉर्म मंगवाया और बहू से भरवाया। तीन वर्ष तक लगातार संघर्ष के बाद गोपीदेवी का सपना सच हुआ और हाल ही में भारती सीएस बन गईं। भारती इस उपलब्धि का पूरा श्रेय अपनी सास को देती है।
बच्चों की पढ़ाई व बहू के ट्यूशन की जिम्मेदारी
गोपी देवी ने अपनी बहू को पढ़ाने के लिए तीन वर्ष तक संघर्ष किया। सुबह बच्चों को उठाकर उन्हें स्कूल भेजने के साथ बहू को ट्यूशन के लिए भेजने की जिम्मेदारी निभाई। भारती को सीएस की पढ़ाई करने के लिए तीन जगह ट्यूशन का पूरा खर्च गोपी देवी ने उठाया। वहीं जब देर रात तक भारती पढ़ती तो
गोपी देवी उसके पास में बैठकर हौसला बढ़ातीं।
ससुर नहीं देख पाए सफलता
गोपी देवी के पति हमेशा कहते थे कि उनका सपना जरूर पूरा होगा। जब भी सीएस का परिणाम आता तो वे घर व मोहल्ले में मिठाई बांटते, लेकिन इस बार परिणाम आने से दस दिन पहले ही वे चल बसे। भारती का कहना था कि जब खुशी का मौका आया तो वे सभी को छोड़कर चले गए।
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