सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

न्यायलय ने मुस्लिम महिला का दहेज़ का मामला खारिज किया .

न्यायलय ने मुस्लिम महिला का दहेज़ का मामला खारिज किया .

बाड़मेर सरहदी जिले बाड़मेर की एक अदालत ने एक मुस्लिम महिला द्वारा अपने पति और ससुराल पक्ष पर दहेज़ और प्रताड़ना के मामले को इस दलील के साथ खारिज किया की मुस्लिम समुदाय में मेहर देने की रीत हें दाहें की रीत नहीं हें ,परिवादिनी नेमत द्वारा अपने पति अली अहम और ससुराल पक्ष के लोगो के विरुद्ध दहेज़ कम लेन ,मारपीट करने तथा पचास हज़ार नकद और दस भेदे लाने के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगा एक परिवाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था .जिसे न्यायाधीश पियूष चौधरी ने ख़ारिज कर दिया ,उलेखनीय हें की परिवादी नेमत ने न्यायलय में परिवाद पेश किया था की उसका विवाह अली अहमद के साथ पांच साल पहले मुस्लिम रीती रिवाज से हुआ था .उसके पिता और सगे संबंधियों ने हैसियत से बढ़कर दहेज़ का सामन और आभूषण दिए थे ,जो न्परिवादीनी ने विवाह के तुरंत बाद अपने पति को संभाला दिए थे .कम दहेज़ लाने के लिए उसे तंग व् परेशान करना शुरू किया तथा मारपीट करते थे ,साथ ही अपने पिता से पचास हज़ार रुपये और दस भेडे लाने के लिए दबाव बनाते थे इसके आभाव में दूसरी शादी करने की धमकी देते थे .दहेज़ की मांग पूरी नहीं करने पर उसे तीन माह पूर्व घर से बदर कर दिया था .परिवादीनी ने अपने पति से पांच हज़ार रुपये मासिक भरण पोषण दिलवाए जाने का भी न्यायलय से निवेदन किया था तथा मानसिक प्रताड़ना और भावनात्मक कष्ट के प्रतिकार के बतौर पचास हज़ार रुपये दिलाने का भी निवेदन किया था .इस परिवाद पर न्यायलय द्वारा मुक़दमा दर्ज कर परिवादीनी के पति और ससुराल वालो को नोटिस जारी किये गए तथा उसके पति और ससुराल वालो ने जवाब पेश किया की मुस्लिम रीती में दहेज़ का चलन नहीं हें बल्कि मेहर की राशि विवाह के समय परिवादीनी को दी गई थी .परिवादीनी विवाह के बाद आज दिन तक अली के घर नहीं आई और ना ही उनके मध्य पति पत्नी के रिश्ते बने .न्यायलय द्वारा बाद सुनवाई के आदेश पारित कर परिवाद को खारिज कर दिया परिवादीनी पति और ससुराल पक्ष पर लगाये आरोप सिद्ध करने में असफल रही ,जिस पर उसकी और से प्रस्तुत घरेलु हिंसा बाबत परिवाद खारिज कर दिया .परिवादीय की और से वकील हाकम सिंह भाटी और प्रत्यर्थी की और से कैलाश सिंह तथा भगवान् सिंह राठोड ने पेरवी की

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