रविवार, 24 फ़रवरी 2013

कर्नल सोनाराम की बगावत मामूली नहीं है

बेशक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का फिलहाल कोई विकल्प नहीं है और उन्हें कांग्रेस हाईकमान का वरदहस्त हासिल है, मगर विधायक दल की बैठक में असंतुष्ट विधायक कर्नल सोनाराम ने जिस तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को निशाना बनाते हुए हंगामा किया, वह कोई मामूली बात नहीं है।
सब जानते हैं कि सोनाराम शुरू से गहलोत विरोधी मुहिम चलाते रहे हैं। वे बिंदास हैं और बेधड़क बोलते हैं। उनकी गिनती गहलोत विरोधी विधायकों में सबसे ऊपर होती है। अपनी मुहिम के सिलसिले में वे कई बार दिल्ली दरबार में दस्तक देते रहे हैं। अन्य असंतुष्ठ विधायकों से भी उनका तालमेल बराबर बना रहा है। यह बात अलग है कि उन्हें कभी कोई बड़ी कामयाबी हासिल नहीं हुई। अब जब कि चुनाव नजदीक हैं, उन्होंने अपने हमले तेज कर दिए हैं। बीते दिन जैसे ही विधायक दल की बैठक शुरू हुई तो सोनाराम ने मुख्यमंत्री से बोलने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें मौका नहीं दिया गया। संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल और सरकारी मुख्य सचेतक रघु शर्मा के बाद मुख्यमंत्री ने बोलना शुरू किया तो भाषण के बीच में ही सोनाराम ने उन्हें टोकना शुरू कर दिया कि आप झूठ बोलते हैं। भाजपा की गुटबाजी की बात करते हैं, कांग्रेस में तो आप खुद गुटबाजी फैला रहे हैं। इस बीच कुछ विधायकों ने सोनाराम को बैठाने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने। सोनाराम के इस रवैये से साफ समझा जा सकता है कि वे कितने असंतुष्ट हैं और अपने असंतोष को जाहिर करने के लिए किसी भी सीमा पर चले जाते हैं। और मजे की बात ये कि खुद को पार्टी का सच्चा सिपाही जताते हुए गहलोत को इंगित करते हुए कहते हैं कि आपकी कई चालों को देखकर तो मुझे खुद शर्म आती है। बाहर आप मिलते नहीं, बैठक में बोलने नहीं देते, अपनी बात कहां कहें। मैं कांग्रेस को मजबूत करने की बात के लिए खड़ा हुआ हूं। आप जिस तरह की बातें करते हैं, वह आपको शोभा नहीं देता। इतना ही उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि आपने पार्टी हित को नजरअंदाज करके अपने ऐसे चहेतों को पद दिए जो पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। जैसलमेर में कांग्रेस उम्मीदवार सुनीता भाटी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके गोवर्धन कल्ला को आपने बीसूका जिला उपाध्यक्ष बनाया। इससे पार्टी को क्या मजबूती मिली?
हालांकि सोनाराम के इस दावे में दम कुछ कम नजर आता है कि पार्टी के 96 विधायकों में से आधे गहलोत के खिलाफ हैं, मगर तकरीबन 30 विधायक तो चिन्हित ही हैं, जो समय-समय पर अपना विरोध जाहिर करते रहे हैं। इनमें कुछ मंत्री भी शामिल हैं। ऐसे में पार्टी के लिए यह गंभीर चिंतन का विषय हो सकता है कि कहीं चुनाव और नजदीक आने पर विरोध के सुर और तेज न हो जाएं। और जब सोनाराम जैसे मुखर हो कर विरोध की हवा को भड़का रहे हों तो यह चिंता की बात ही है।
सोनाराम के विरोध को इस अर्थ में भी देखा जा सकता है कि वे नेगोसिएशन में कुछ हासिल करना चाहते हों। ज्ञातव्य है कि इन दिनों यह चर्चा गर्म है कि जातीय संतुलन बैठाने के लिए जाट समाज के किसी नेता को उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है अथवा किसी महत्वपूर्ण विभाग का मंत्री बनाया जा सकता है। ऐसे में यह संदेह होता है कि कहीं कुछ हासिल करने के लिए ही तो वे नौटंकी नहीं कर रहे हैं।
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तेजवानी गिरधर
http://mediadarbar.com/16416/revolt-of-colonel-sonaram-is-not-a-small-issue/

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