सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

"झाखरड़ा" में पानी व पीड़ा "अथाह"

"झाखरड़ा" में पानी व पीड़ा "अथाह"
बाड़मेर। जब पानी नहीं था, तब उसके नहीं होने की पीड़ा थी। अब अथाह पानी आया तो पीड़ा भी पानी की मानिंद अथाह हो गई है। अथाह पानी में सड़कें डूब गईं, पगडंडियां गुम हो गई है। यहां तक कि विद्यालयों के द्वार भी पानी के घाट बन गए हैं। यह स्थिति बाड़मेर जिले की गुड़ामालानी तहसील के झाखरड़ा क्षेत्र की है, जहां नर्मदा का पानी वरदान की बजाय अभिशाप बन गया है।

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या पंद्रह के पश्चिम में करीब एक दर्जन गांव झाखरड़ा क्षेत्र का हिस्सा है। इसमें वन विभाग की हजारों बीघा जमीन है, जो वन्य जीवों के लिए आरक्षित है। नर्मदा नहर में पानी की अधिक आवक होने पर पिछले तीन वर्ष से वन विभाग की इस जमीन पर उसका पानी छोड़ा जा रहा है। नर्मदा का पानी पिछले तीन वर्ष से झाखरड़ा वन्य क्षेत्र की जमीन पर फैला हुआ है। एक वर्ष से पानी वन्य क्षेत्र से भी आगे किसानों की खातेदारी जमीन तक पहुंच गया है। यहां तक कि कुछ घरों की दहलीज तक भी पानी की पहुंच हो गई है।

पंद्रह दिन से हालत बदतर
यूं तो झाखरड़ा क्षेत्र की हालत तीन वर्ष से खराब है, लेकिन पंद्रह दिन पहले पानी की अधिक आवक होने के कारण स्थिति बदतर हो गई है। स्थिति यह है कि रामजी का गोल से धोलीनाडी, धोलीनाडी से झाखरड़ा, पन्नल की बेरी से मेघावा और पन्नल की बेरी से झाखरड़ा जाने वाले रास्ते पूरी तरह से बंद हैं। इससे ग्रामीण लगभग दुगुने से भी अधिक दूरी तय कर गंतव्य तक जाने के लिए मजबूर हैं।

विद्यालयों की चौखट तक पानी
राजकीय प्राथमिक विद्यालय झाखरड़ा व राप्रावि खेराज खिलेरी की ढाणी की चौखट तक पानी पहुंच गया है। इन विद्यालयों में करीब 200 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। पिछले वर्ष एक स्कूली छात्र पानी में डूब गया था। ऎसे में घबराए हुए परिजन अपने बच्चों को विद्यालय तक छोड़ने व वापस लाने के लिए मजबूर हैं।

लूणी में छोड़ने की योजना
जब तक पूरा सिस्टम तैयार नहीं हो जाता, तब तक पानी की अधिक आवक की समस्या रहेगी। दो वर्ष में सिस्टम पूरा तैयार हो जाएगा। झाखरड़ा क्षेत्र की समस्या के समाधान के लिए लूणी नदी में पानी छोड़ने की योजना पर विचार चल रहा है।
-एल एल परमार, अधीक्षण अभियंता नर्मदा नहर परियोजना सांचौर

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