सोमवार, 21 जनवरी 2013

स्वर लहरियों का माधुर्य बिखरते हैं जैसाण के सुर साधक


स्वर लहरियों का माधुर्य बिखरते हैं
जैसाण के सुर साधक
                                                डॉ. दीपक आचार्य
                                                           9413306077
       जैसलमेर की लोक लहरियों के प्रवाह को अक्षुण्ण बनाए रखने में जैसाण के लोक कलाकारों और गायकों का कोई मुकाबला नहीं।
       जैसलमेर की माटी में ही जाने कैसी असीम ऊर्जा और गंध समायी है कि यहाँ प्राचीनकाल से लेकर अब तक जर्रा-जर्रा लोक लहरियों का जयगान करता नहीं अघाता। लोकवाद्योंस्वरों और गायन पर थिरकता यह मरु अँचल न केवल भारतवर्ष अपितु पूरी दुनिया में अनूठा है जहाँ की हवाओं में भी सांगीतिक ताजगी महसूस होती है।
       मरुभूमि जैसलमेर के हर क्षेत्र में सुर साधकों की व्यापक परम्परा है। इनमें जैसलमेर के प्रेमशंकर व्यासमहेश गोयल और अशोक शर्मा उन कलाकारों में शामिल हैं जिन्हें धर्म-संस्कृति से जुड़े विभिन्न आयोजनों में पूरी मस्ती के साथ अपने फन का जादू बिखेरते हुए देखा जा सकता है।
       पं. प्रेमशंकर व्यास
       जैसलमेर मूल के प्रेमशंकर व्यास पुष्टिमार्गीय धार्मिक संस्कारों से ओत-प्रोत व्यक्तित्व हैं जो बचपन से ही भजन गायगीझाँझमँंजीरा व करतालवादन करते हुए आज इन विधाओं में जबर्दस्त प्रावीण्य सम्पन्न हैं।
       जैसलमेर के तलोटीव्यासपाड़ा में रहने वाले 58 पार प्रेमशंकर व्यास का जन्म 5 मई 1955 को हुआ। शैशव का उनका संगीत शौक बाद में इतना परवान चढ़ा कि इस रुचि ने उन्हें शोहरत के शिखर का आस्वादन कराया। भजन में कोरस देने के साथ ही वाद्यों की सुर-ताल से सधी हुई उनकी संगत बेहद लाजवाब होती है। प्राच्यविद्याओं को जीवन निर्वाह का माध्यम बनाने वाले पं. प्रेमशंकर व्यास कर्मकाण्ड में भी दक्ष हैं।
       महेश गोयल
       जैसलमेर की धरा पर 16 सितम्बर 1982 को जन्म लेने वालेदर्जी पाड़ा निवासी महेश गोयल हारमोनियम व की-बोर्ड वादन में अच्छी ख़ासी महारत रखते हैं। इसके साथ ही वे बेहतरीन संगत कलाकार भी हैं। सिलाई कार्य को अपनी आजीविका निर्वाह का माध्यम बनाने वाले महेश गोयल पिछले एक दशक से लोक सांस्कृतिक आयोजनोंमेलों-उत्सवों में शिरकत करते आ रहे हैं।
       तबला वादक अशोक शर्मा
       दैवाराधन और मंदिर में सेवा कार्यो में रत अशोक शर्मा का जन्म 27 जनवरी 1988 को हुआ। मंदिर में सेवा-पूजा करते हुए प्रभु भक्ति में स्वर-आराधन की दिली इच्छा हुई तो तीन-चार वर्ष में तबला व झींझा वादन सीखा और उसमें दक्षता पायी।
       मंदिर में भक्ति संगीत का कोई सा उत्सव हो अथवा कोई सांस्कृतिक कार्यक्रमअशोक शर्मा का तबलावादन आकर्षण जगाने के साथ ही रसिकों को गहरे तक आनंद की अनुभूति कराने वाला है।
       इन तीनों ही लोक कलाकारों और भजन गायकों को जैसलमेर के विभिन्न सांस्कृतिक मंचों पर अपने हुनर के रंग बिखेरते हुए देखा जा सकता है। वर्तमान पीढ़ी के इन नायाब कलाकारों पर जैसाण को गर्व है।

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