सीबीआई तक पहुंचा जमीन घोटाला!
जोधपुर। एयरफोर्स स्टेशन के अधिग्रहित भूमि व उससे सटी जमीन को भू-माफिया द्वारा हथियाने के मामले की जांच सीबीआई तक पहुंच गई है। सीबीआई की ओर से मामले की जांच करवाई जा रही है। इसे बेहद गोपनीय रखा गया है। हालांकि सीबीआई के स्थानीय अधिकारियों ने ऎसी किसी भी जांच से इनकार किया है।
दो भागों में बेची जमीन
सन 2005 में खातेदार कृष्ण काक के कथित आम मुख्तयार ने खसरे की 86 बीघा 10 बिस्वा जमीन दो टुकड़ों में एक व्यवसायी के नाम कर दी। 9 जनवरी 2004 को 66 बीघा 10 बिस्वा भूमि बेच दी गई। 4 अप्रेल 2005 को आम मुख्तयार ने शेष बीस बीघा जमीन भी उसी व्यवसायी को बेची। जिसमें वायुसेना की अधिग्रहित भूमि भी शामिल थी।
सैन्य अधिकारियों ने सीबीआई से ली जानकारी
इस प्रकरण में जेडीए व प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। ऎसी संभावना है कि सेना ने आंतरिक स्तर पर मामले की जांच की। कथित तौर पर जांच से संबंधित दस्तावेज सीबीआई को सौंपे गए। अब इस आधार पर सीबीआई ने गोपनीय तरीके से मामले की जांच शुरू की है। हालांकि इस संबंध में कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिल पाई है। सीबीआई के स्थानीय अधिकारियों ने भी ऎसी किसी जांच से इनकार किया है, लेकिन अधिकृत सूत्रों की मानें तो कुछ समय पहले सेना के अधिकारियों ने सीबीआई अधिकारी से प्रकरण के बारे में जानकारी लेने के लिए फोन पर सम्पर्क किया था।
यह है मामला
राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार जिला प्रशासन ने भींचड़ली गांव स्थित खसरा 4/36/1 की 6 बीघा 5 बिस्वा जमीन का अधिग्रहण वायुसेना के लिए किया था। 13 मई 1985 को राज्य सरकार ने राजपत्र में इसे अधिसूचित किया। जमीन का फर्द कब्जा 17 अप्रेल 1986 को रक्षा सम्पदा अधिकारी को सौंप दिया गया। वष्ाü 1987 में खातेदार कृष्ण काक के आम मुख्तयार सुमन परिहार को मुआवजा भी दे दिया गया। 1987 से 2011 तक रक्षा विभाग ने जमीन नामान्तरण रक्षा मंत्रालय के नाम करने के लिए प्रशासन को दर्जनों चिçटयां लिखीं, लेकिन नाम नहीं हो पाई। मामले के दस्तावेज से प्रशासनिक अफसरों की भूमिका संदिग्ध नजर आई।
जोधपुर। एयरफोर्स स्टेशन के अधिग्रहित भूमि व उससे सटी जमीन को भू-माफिया द्वारा हथियाने के मामले की जांच सीबीआई तक पहुंच गई है। सीबीआई की ओर से मामले की जांच करवाई जा रही है। इसे बेहद गोपनीय रखा गया है। हालांकि सीबीआई के स्थानीय अधिकारियों ने ऎसी किसी भी जांच से इनकार किया है।
दो भागों में बेची जमीन
सन 2005 में खातेदार कृष्ण काक के कथित आम मुख्तयार ने खसरे की 86 बीघा 10 बिस्वा जमीन दो टुकड़ों में एक व्यवसायी के नाम कर दी। 9 जनवरी 2004 को 66 बीघा 10 बिस्वा भूमि बेच दी गई। 4 अप्रेल 2005 को आम मुख्तयार ने शेष बीस बीघा जमीन भी उसी व्यवसायी को बेची। जिसमें वायुसेना की अधिग्रहित भूमि भी शामिल थी।
सैन्य अधिकारियों ने सीबीआई से ली जानकारी
इस प्रकरण में जेडीए व प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। ऎसी संभावना है कि सेना ने आंतरिक स्तर पर मामले की जांच की। कथित तौर पर जांच से संबंधित दस्तावेज सीबीआई को सौंपे गए। अब इस आधार पर सीबीआई ने गोपनीय तरीके से मामले की जांच शुरू की है। हालांकि इस संबंध में कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिल पाई है। सीबीआई के स्थानीय अधिकारियों ने भी ऎसी किसी जांच से इनकार किया है, लेकिन अधिकृत सूत्रों की मानें तो कुछ समय पहले सेना के अधिकारियों ने सीबीआई अधिकारी से प्रकरण के बारे में जानकारी लेने के लिए फोन पर सम्पर्क किया था।
यह है मामला
राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार जिला प्रशासन ने भींचड़ली गांव स्थित खसरा 4/36/1 की 6 बीघा 5 बिस्वा जमीन का अधिग्रहण वायुसेना के लिए किया था। 13 मई 1985 को राज्य सरकार ने राजपत्र में इसे अधिसूचित किया। जमीन का फर्द कब्जा 17 अप्रेल 1986 को रक्षा सम्पदा अधिकारी को सौंप दिया गया। वष्ाü 1987 में खातेदार कृष्ण काक के आम मुख्तयार सुमन परिहार को मुआवजा भी दे दिया गया। 1987 से 2011 तक रक्षा विभाग ने जमीन नामान्तरण रक्षा मंत्रालय के नाम करने के लिए प्रशासन को दर्जनों चिçटयां लिखीं, लेकिन नाम नहीं हो पाई। मामले के दस्तावेज से प्रशासनिक अफसरों की भूमिका संदिग्ध नजर आई।
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