शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

तलाक में नहीं चलेगी शौहरों की मनमर्जी

श्रीनगर. जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम पुरुषों के तलाक के अधिकार सीमाओं से बंधे हैं। असीमित नहीं हैं। जस्टिस हसनैन मसूदी ने शरीयत और कुरान का हवाला देते हुए फैसला दिया है। इसमें कहा कि इनमें तलाक को अंतिम विकल्प के तौर पर माना गया है। कोर्ट ने तलाक के तीन अलग-अलग प्रकारों का जिक्र किया।
तलाक में नहीं चलेगी शौहरों की मनमर्जी 
तलाक-ए-अहसान का ऐसा तरीका है जिसे कुरान में मंजूरी दी गई है। जज ने कहा है कि यह नहीं कहा जा सकता कि यह पाबंदियां तलाक-ए-बिधि पर लागू नहीं होनी चाहिए। तलाक-ए-बिधि में पाबंदियों को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। तलाक के इस तरीके को हतोत्साहित किया जाता है।

कोर्ट ने कहा कि तलाक को अंतिम विकल्प बताया गया है। पति यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता कि उसने तलाक ले लिया है। उसे यह बताना और साबित करना होगा कि पति-पत्नी के बीच सुलह कराने के दोनों पक्षों ने प्रयास किए। लेकिन यह सफल नहीं हुए। इसके लिए वह दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके अलावा उसे पत्नी से तलाक लेने का जायज कारण बताना होगा।


तलाक-ए-अहसानः दो मासिक के बीच की अवधि के दौरान एक बार तलाक बोलना। इसके बाद इद्दत (इंतजार की अवधि) के दौरान शारीरिक संबंध न रखना।

तलाक-ए-हसनः तीन तुह्र के दौरान तीन बार तलाक बोलना। तीनों के दौरान शारीरिक संबंध न रखना।

तलाक-ए-बिधिः एक ही तुह्र के दौरान एक ही वाक्य में या अलग अलग वाक्यों में या लिखित में तीन बार तलाक बोलना। यह पति की परी तरह से संबंध विच्छेद की मंशा को दर्शाता है।

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