गुरुवार, 1 नवंबर 2012

"सती प्रथा" का महिमामंडन क्यों

"सती प्रथा" का महिमामंडन क्यों

जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर राज्य सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों से पूछा है कि राणी सती दादी के बलिदान कार्यक्रम के तहत सती प्रथा का महिमामंडन क्यों किया जा रहा है? मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे एवं जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने सचिव विधि एवं विधायी कार्य विभाग, कलेक्टर जबलपुर, पुलिस अधीक्षक और राणी सती दादी मंडल परिवार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।


तुलसी नगर निवासी ओपी यादव ने याचिका दायर कर बताया कि राजा राम मोहन राय एवं अन्य समाज सेवकों ने सती प्रथा को पूरी तरह बंद कराया था। सती प्रथा का महिमामंडन करना पूरी तरह अवैधानिक है। याचिका में बताया गया कि उक्त परिवार ने 16 एवं 17 अगस्त 2012 को कार्यक्रम आयोजित किया। याचिकाकर्ता ने सेठ रामकुमार भवन में स्वयं जाकर देखा कि राणी सती के लिए पूजा स्थल तैयार किया गया और उसमें राणी के सती होने का सजीव चित्रण किया गया।
याचिका में बताया गया कि "द कमीशन ऑफ सती (प्रिवेन्शन) एक्ट 1987 के तहत "सतीप्रथा का महिमामंडन करना एक दण्डनीय अपराध है और इसके लिए सजा का प्रावधान है। इस अधिनियम की धारा 5 में स्पष्ट प्रावधान है कि सती की कार्रवाई का महिमामंडन करने वाले को न्यूनतम एक वष्ाü का कारावास हो सकता है। सजा की यह अवधि 7 साल तक बढ़ाई भी जा सकती है। इसके अतिरिक्त 5 से 30 हजार रूपए का जुर्माना भी हो सकता है।

इस अधिनियम में कलेक्टर को सती प्रथा का गुणगान रोकने का अधिकार है। इसके अलावा सती प्रथा का गुणगान करने में उपयोग किए जाने वाले मंदिर, संपत्ति और राशि को भी जब्त किया जा सकता है।

नहीं की कार्रवाई

याचिकाकर्ता ने इस मामले में आयोजनकर्ता और परिवार के पदाधिकारियों के खिलाफ कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को शिकायत की थी, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने 21 अगस्त को जन सुनवाई में भी यह मुद्दा उठाया था। याचिका में मांग की गई कि दोçष्ायों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राकेश पांडे और सुनील चौबे ने पैरवी की।

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