सोमवार, 26 नवंबर 2012

कसाब के साथ अभी खत्म नहीं हुईं चुनौतियां


अजमल आमिर कसाब को आखिरकार फांसी दे दी गई। यह संतोष का विषय है। संतोष इसलिए कि फांसी संबंधी मामले भारत सरकार में अधिक समय तक लंबित रहते हैं। फाइलें इधर से उधर घूमती रहती हैं। सरकार ने कसाब को गोपनीय तरीके से फांसी पर लटका दिया। यह भी अच्छा हुआ।

यदि पहले इसकी जानकारी लीक कर दी गई होती तो अनावश्यक विवाद खड़ा हो जाता। टीवी चैनलों पर बहस छिड़ जाती। मानवाधिकार संगठन सक्रिय हो जाते। जो लोग फांसी की सजा के सिद्धांतत: खिलाफ हैं, वे भी अपनी आवाज उठाते। इस सबका सरकार पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता और असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती। सरकार ने बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए कसाब को गोपनीय तरीके से फांसी पर लटका दिया।

यह तो हुए संतोष के बिंदु, परंतु क्या कसाब को फांसी पर लटका देने से मुंबई आतंक का अध्याय समाप्त हो गया? इस विषय पर दो बातें विशेष तौर पर ध्यान देने की हैं। एक यह कि 26/11 की घटना और कसाब को फांसी देने की प्रक्रिया में करीब चार साल का समय लग गया। यह समय बहुत ज्यादा था। अच्छा होता कि यह सारी प्रकिया सालभर के अंदर ख़त्म हो जाती। तब घटना और सजा का संदेश भलीभांति जाता।

दुर्भाग्यवश भारत का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बड़ी धीमी गति से चलता है। यह तो एक महत्वपूर्ण मुकदमा था, इसलिए चार साल में ख़त्म हो गया वरना ललित नारायण मिश्र हत्याकांड का मुकदमा पिछले 36 साल से चल रहा है और यह कब समाप्त होगा, कुछ पता नहीं।

दूसरी महत्वपूर्ण बात, कसाब तो केवल एक छोटा प्यादा था। 26/11 की घटना को अंजाम देने वाले, षड्यंत्र रचने वाले, सारी योजना को आर्थिक मदद देने वाले- सब पाकिस्तान में सुरक्षित बैठे हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियां और भारतीय खुफिया एजेंसियां सभी इस नतीजे पर पहुंच चुकी हैं कि मुंबई में आतंकवादी घटना पाकिस्तान सरकार की जानकारी में उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के निर्देशन में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा अंजाम दी गई थी। मुंबई पर हमले के बाद लश्कर ने अपना नाम बदलकर जमात-उद-दावा कर लिया है। 26/11 की घटना का एक आरोपी हाफिज मोहम्मद सईद हमेशा भारत के खिलाफ जहर उगलता रहता है।

26/11 से जुड़े षड्यंत्रकारी अभी भी कानून की गिरफ्त से बाहर पाकिस्तान में आजाद घूम रहे हैं। पाकिस्तानी सरकार हमेशा भारत को आश्वासन देती है, लेकिन जमीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई कुछ भी नहीं होती। भारत के नेताओं और अधिकारियों का एक वर्ग पाकिस्तान की ओर सहृदयता का दृष्टिकोण अपनाने की वकालत करता है। इन लोगों को यह समझ में नहीं आता कि पाकिस्तान हमें बराबर बेवकूफ बनाता है। झूठे वादे करता है और कोरे आश्वासन देता है। भारत इन पर विश्वास कर दोस्ती की एक खिड़की खोल देता है। जैसे हाल में ही पाकिस्तानियों को वीजा देने के नियम में ढील देना, पाक क्रिकेट टीम को न्योता देना, इत्यादि।

पाकिस्तान की नीयत का आकलन दो बातों पर किया जाना चाहिए। एक यह कि वह खासतौर पर कश्मीर और भारत के अन्य भागों में कट्टरपंथियों को समर्थन दे रहा है या नहीं। दूसरा, कहीं वह देश में फिर कोई बड़ी घटना अंजाम देने की तैयारी तो नहीं कर रहा है? अमेरिकी थिंक टैंक रैंड कॉपरेरेशन का यह कहना है कि मुंबई जैसी घटनाओं की भारत में पुनरावृत्ति हो सकती है क्योंकि भारत का आतंकवाद विरोधी व्यूह अभी भी काफी कमजोर है। अब आवश्यकता इस बात की है कि पाकिस्तान पर 26/11 के मुख्य आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई का दबाव बनाया जाए और जब तक इसके स्पष्ट संकेत न मिलें, तब तक पाकिस्तान से मैत्री को ठंडे बस्ते में रखा जाए।

पाक ने देश को कई बार धोखा दिया है। सबसे बड़ा धोखा 1972 में शिमला समझौते के समय दिया था जब भुट्टो ने इंदिरा गांधी के सामने घड़ियाली आंसू बहाए और वादा किया कि पाकिस्तान जाकर वे अपने सहयोगियों को कश्मीर समझौते के लिए राजी कर लेंगे और नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा की मान्यता प्रदान कर देंगे। लेकिन पाकिस्तान जाने के बाद वे सारे वादे भूल गए और बांग्लादेश को स्वतंत्र करवाने के लिए पाकिस्तान फिर से भारत से बदला लेने की योजनाएं बनाने लगा। पूर्व के अनुभव से सबक लेते हुए ठोस प्रमाण के बिना पाकिस्तान पर विश्वास करना बहुत बड़ी गलती होगी।

दूसरी महत्वपूर्ण बात जिस पर हमें ध्यान देना होगा कि आतंकवाद विरोधी हमारी जो संरचना है, उसे इतना सुदृढ़ बनाया जाए कि आतंकवादी उसे आसानी से भेद न सकें। इसके लिए हमें सबसे पहले पुलिस व्यवस्था को मजबूत करना होगा। यह समझने की बात है कि घटना चाहे सांप्रदायिक हो, माओवादी हो या आतंकवादी- सबसे पहले पुलिस को ही तुरंत मौके पर पहुंचना पड़ता है। पुलिस को स्थिति संभालने के लिए तत्काल प्रयास करने पड़ते हैं। केंद्रीय बल और खुफिया एजेंसियों के लोग बाद में आते हैं। इस देश की पुलिस को नेताओं ने बर्बाद कर दिया है। पुलिस सुधार संबंधी जो आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं, उनका ईमानदारी से पालन होना चाहिए। पुलिस बल में भी वृद्धि की जरूरत है। यूनाइटेड नेशंस के मानक के अनुसार एक लाख की आबादी पर कम से कम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए, जबकि देश में सिर्फ 136 ही हैं।

स्थानीय और राज्यस्तरीय खुफिया एजेंसियों में भी काफी सुधार की जरूरत है। आज-कल ये इकाइयां राजनीतिक विरोधियों के बारे में ही सूचनाएं एकत्र करने में ज्यादा समय लगा देती हैं। नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) को जल्द से जल्द स्थापित करना चाहिए। नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड को भी शीघ्र ही सक्रिय करने की जरूरत है। तटीय सुरक्षा के बारे में महत्वपूर्ण योजनाएं बनी थीं। उनको कार्यान्वित करने में देरी हो रही है। इस पर भी सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है।


प्रकाश सिंह

सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक 

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