आवारा कुत्तों को पकड़ ने के बाद न वेक्सिनेशन हुआ न ही नसबंदी
सिरोही। जिले की सभी नगर पालिकाओं में आवारा कुत्तों को पकड़ ने के बाद न तो वेक्सिनेशन हो रहा है और न ही नसबंदी की जा रही है। वैसे केन्द्र सरकार की ओर से दिसम्बर, 2001 में जारी एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 के नोटिफिकेशन में यह स्पष्ट प्रावधान है कि स्थानीय निकाय पालतु और सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों का वेक्सिनेशन व नसबंदी करवाएगी।
खुद राज्य सरकार की ओर से भी इसी तरह का प्रावधान बनाया हुआ है। इसकी पुष्टि लोक सेवाओं की गारंटी अधिनियम करता है, जिसमें स्थानीय निकायों में जिन कामों को समयबद्ध तरीके से करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है उसमें गली के कुत्तों के वेक्सिनेशन व नसबंदी को भी शामिल किया गया है। दोनों ही कायदों को मूल मकसद यह है कि कुत्तों को वेक्सिनेशन के माध्यम से रेबीज, स्केबीज आदि बीमारियों से निजात दिलाना और एक सीमा से ज्यादा बढ़ रही इनकी संख्या को नियंत्रित करना। हाल ही में राजस्थान हाइकोर्ट की जयपुर बेंच ने भी राज्य में इस रूल को लागू करने के आदेश दिए। इस पर डीएलबी ने सभी नगर निकायों को इन नियमों की पालना की बाध्यता लागू की है।
दूर छोड़ते हैं
यूं आवारा कुत्तों को पकड़कर दूरस्थ स्थानों पर छोड़ने की जिम्मेदारी नगर परिषद व नगर पालिकाओं ने ठेके पर काम करने वाले लोगों को दी हुई है। इसके लिए ठेके भी किए हुए हैं। लेकिन, एनीमल बर्थ कंट्रोल रूल के प्रावधानों की पालना नहीं की जा रही है। केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने 2 नवम्बर, 2001 को एक विशेष गजट नोटिफिकेशन जारी करके प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटि टू एनीमल एक्ट, 1960 की धारा 38 में उपधारा (1) में एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 को जोड़ा। यह नियम दिसम्बर, 2001 से प्रभावी हो गया। कई निकायों को इसकी जानकारी तक नहीं है।
बैठक नहीं
एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 के तहत स्थानीय निकाय में एक कमेटी बनी हुई है। इसको अपने क्षेत्र में कुत्तों में संक्रामक रोगों के फैलने और इनकी संख्या में हो रही बढ़ोतरी पर नजर रखना है। ऎसा पाया जाने पर वेक्सिनेशन और नसबंदी के लिए कुत्तों को पकड़ना व नियत विधि से नसबंदी करना भी उनका काम है। नियम के लागू होते ही सभी निकायों में यह कमेटी गठित तो हुई है। लेकिन, कई निकायों में इसकी जानकारी नहीं है। इस कमेटी में निकाय के अधिशासी अधिकारी, जनस्वास्थ्य विभाग, पशुकल्याण विभाग का एक प्रतिनिधि, वेटेनरी डॉक्टर व पशु कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन के दो प्रतिनिधि शामिल हैं। इसे नियमित रूप से क्षेत्र में कुत्तों के काटने की घटना में बढ़ोतरी आदि की मॉनीटरिंग करनी है। लेकिन, इन कमेटियों की बैठक ही नहीं होती।
मिलता है पर्याप्त बजट
राज्य में एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 को लागू करवाकर विशेषकर गलियों के कुत्तों को संक्रामक बीमारियों से निजात दिलाने और उनकी अनियंत्रित संख्या पर लगाम लगाने के लिए संघर्ष कर रही डॉ शालिनी ने बताया केन्द्र सरकार इसके लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध करवा रही है। वहीं राज्य सरकार भी इसके लिए स्थानीय निकायों को निशुल्क मल्टी डिजीज वेक्सीन उपलब्ध करवा रही है। यह बात अलग है कि इच्छाशक्ति के अभाव में स्थानीय निकाय इनका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
प्रयास शुरू करेंगे
नियम बनते ही कमेटी बन जाती है और यहां भी यह कमेटी बनी हुई है। बैठक नहीं हुई हैं। जिला कलक्टर के माध्यम से इस मुद्दे पर चर्चा करके बैठक बुलवाने और कुत्तों के वेक्सिनेशन व नसबंदी के लिए प्रयास शुरू करेंगे।
शिवपालसिंह
आयुक्त, नगर परिषद, सिरोही।
सिरोही। जिले की सभी नगर पालिकाओं में आवारा कुत्तों को पकड़ ने के बाद न तो वेक्सिनेशन हो रहा है और न ही नसबंदी की जा रही है। वैसे केन्द्र सरकार की ओर से दिसम्बर, 2001 में जारी एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 के नोटिफिकेशन में यह स्पष्ट प्रावधान है कि स्थानीय निकाय पालतु और सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों का वेक्सिनेशन व नसबंदी करवाएगी।
खुद राज्य सरकार की ओर से भी इसी तरह का प्रावधान बनाया हुआ है। इसकी पुष्टि लोक सेवाओं की गारंटी अधिनियम करता है, जिसमें स्थानीय निकायों में जिन कामों को समयबद्ध तरीके से करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है उसमें गली के कुत्तों के वेक्सिनेशन व नसबंदी को भी शामिल किया गया है। दोनों ही कायदों को मूल मकसद यह है कि कुत्तों को वेक्सिनेशन के माध्यम से रेबीज, स्केबीज आदि बीमारियों से निजात दिलाना और एक सीमा से ज्यादा बढ़ रही इनकी संख्या को नियंत्रित करना। हाल ही में राजस्थान हाइकोर्ट की जयपुर बेंच ने भी राज्य में इस रूल को लागू करने के आदेश दिए। इस पर डीएलबी ने सभी नगर निकायों को इन नियमों की पालना की बाध्यता लागू की है।
दूर छोड़ते हैं
यूं आवारा कुत्तों को पकड़कर दूरस्थ स्थानों पर छोड़ने की जिम्मेदारी नगर परिषद व नगर पालिकाओं ने ठेके पर काम करने वाले लोगों को दी हुई है। इसके लिए ठेके भी किए हुए हैं। लेकिन, एनीमल बर्थ कंट्रोल रूल के प्रावधानों की पालना नहीं की जा रही है। केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने 2 नवम्बर, 2001 को एक विशेष गजट नोटिफिकेशन जारी करके प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटि टू एनीमल एक्ट, 1960 की धारा 38 में उपधारा (1) में एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 को जोड़ा। यह नियम दिसम्बर, 2001 से प्रभावी हो गया। कई निकायों को इसकी जानकारी तक नहीं है।
बैठक नहीं
एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 के तहत स्थानीय निकाय में एक कमेटी बनी हुई है। इसको अपने क्षेत्र में कुत्तों में संक्रामक रोगों के फैलने और इनकी संख्या में हो रही बढ़ोतरी पर नजर रखना है। ऎसा पाया जाने पर वेक्सिनेशन और नसबंदी के लिए कुत्तों को पकड़ना व नियत विधि से नसबंदी करना भी उनका काम है। नियम के लागू होते ही सभी निकायों में यह कमेटी गठित तो हुई है। लेकिन, कई निकायों में इसकी जानकारी नहीं है। इस कमेटी में निकाय के अधिशासी अधिकारी, जनस्वास्थ्य विभाग, पशुकल्याण विभाग का एक प्रतिनिधि, वेटेनरी डॉक्टर व पशु कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन के दो प्रतिनिधि शामिल हैं। इसे नियमित रूप से क्षेत्र में कुत्तों के काटने की घटना में बढ़ोतरी आदि की मॉनीटरिंग करनी है। लेकिन, इन कमेटियों की बैठक ही नहीं होती।
मिलता है पर्याप्त बजट
राज्य में एनीमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल, 2001 को लागू करवाकर विशेषकर गलियों के कुत्तों को संक्रामक बीमारियों से निजात दिलाने और उनकी अनियंत्रित संख्या पर लगाम लगाने के लिए संघर्ष कर रही डॉ शालिनी ने बताया केन्द्र सरकार इसके लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध करवा रही है। वहीं राज्य सरकार भी इसके लिए स्थानीय निकायों को निशुल्क मल्टी डिजीज वेक्सीन उपलब्ध करवा रही है। यह बात अलग है कि इच्छाशक्ति के अभाव में स्थानीय निकाय इनका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
प्रयास शुरू करेंगे
नियम बनते ही कमेटी बन जाती है और यहां भी यह कमेटी बनी हुई है। बैठक नहीं हुई हैं। जिला कलक्टर के माध्यम से इस मुद्दे पर चर्चा करके बैठक बुलवाने और कुत्तों के वेक्सिनेशन व नसबंदी के लिए प्रयास शुरू करेंगे।
शिवपालसिंह
आयुक्त, नगर परिषद, सिरोही।
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