रविवार, 14 अक्तूबर 2012

राजस्थानी भाषा को मिले मान्यता'

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राजस्थानी भाषा को मिले मान्यता'


. डीडवानाराजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर तथा ओळख संस्थान डीडवाना के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी पुस्तकालय सभागार में पोथी चर्चा कार्यक्रम हुआ। इसमें राजस्थानी साहित्यकार डॉ. भवानी सिंह पातावत (जोधपुर) द्वारा लिखित पुस्तक 'राजस्थान रा सूरमा' पर चर्चा की गई। कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए संयोजक डॉ. भंवर कसाना ने कहा कि राजस्थानी साहित्य परंपरा प्राचीन एवं समृद्ध है। भाषा और साहित्य की दृष्टि से समृद्ध राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलना दुर्भाग्य की बात है। कसाना ने कहा कि राजस्थानी की मान्यता का विषय हमारी रोजी-रोटी से जुड़ा हुआ है। लाखों युवाओं का भविष्य इससे जुड़ा है, ऐसे में सभी को अपनी भूमिका का सार्थक निर्वहन करना होगा।

इस अवसर पर समीक्षात्मक शोध पत्र का वाचन करते हुए राजकीय बांगड़ महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. गजादान चारण ने पातावत की कृति राजस्थान रा सूरमा को राजस्थानी साहित्य की अनमोल धरोहर बताया। उनके अनुसार कृति की भाषा शैली एवं विषय चयन की दृष्टि उत्कृष्ट है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एएसएन स्कूल के निदेशक महेंद्र विक्रम सोनी ने राजस्थानी भाषा की मान्यता की बात उठाते हुए कहा कि यह अपनी अस्मिता से जुड़ा विषय है। कार्यक्रम में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के जिला संयोजक डॉ. गणेश सैनी ने भी पत्र वाचन करते हुए कहा कि लेखक ने पुस्तक का शीर्षक इतिहास कथाओं का सा दिया है। लेकिन पुस्तक में राजस्थान के सारे सूरमाओं को नहीं ले पाए हैं। एक वंश विशेष के वीरों को ही इन निबंधों में ज्यादा स्थान मिला है।

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