पिता ने बेटा माना, बेटियों ने किया साबित
पाली। बेटा होने की चाह में कन्या भू्रण हत्या और बेटियों के उपेक्षा भरे हालातों को दरकिनार करतीं दो किशोरियों ने समाज के समक्ष नए प्रतिमान गढ़े और अपने पिता की अर्थी को कंधा देकर मिसाल पेश की। इसके पीछे दोनों बहनों का कहना है कि पिता ने उन्हें हमेशा बेटी नहीं, अपना बेटा माना तो वे उनके अंतिम समय में कैसे अपना फर्ज भूल जातीं।
शहर के सरदार पटेल नगर निवासी महेन्द्र कुमार चार दिन पूर्व सड़क हादसे में गंभीर घायल हो गए। जोधपुर में मंगलवार को उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई थी। शव को मुखाग्नि कौन देगा? यह सवाल खड़ा होता।
इससे पहले ही खड़ी हुई मृतक की दोनों बेटियां पन्द्रह वर्षीया सोनाली और सत्रह वर्षीया सुरभि ने हिम्मत दिखाते हुए अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया और श्मसान भूमि में मुखाग्नि भी दी। सोनाली ने बताया कि उनके पिताजी दोनों बहनों को बेटा ही मानते थे।
उन्होंने अपने सारे फर्ज बेटा समझकर पूरे किए तो हमें भी लगा कि उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उनके अंतिम सफर में बेटे का फर्ज निभाना चाहिए। दोनों बहने फिलहाल दसवीं कक्षा में पढ़ती है और बड़ी होकर अपने पिता और माता सरोज के सपने पूरा करना चाहती हैं। भाणजे पीयूष का कहना है कि उन्हें गर्व है कि दोनों बहनों ने इस मुश्किल घड़ी में हौसला दिखाकर एक मिसाल पेश की। बेटियों द्वारा शव को कंधा और मुखाग्नि दिए जाने की दिनभर में चर्चा रही।
पाली। बेटा होने की चाह में कन्या भू्रण हत्या और बेटियों के उपेक्षा भरे हालातों को दरकिनार करतीं दो किशोरियों ने समाज के समक्ष नए प्रतिमान गढ़े और अपने पिता की अर्थी को कंधा देकर मिसाल पेश की। इसके पीछे दोनों बहनों का कहना है कि पिता ने उन्हें हमेशा बेटी नहीं, अपना बेटा माना तो वे उनके अंतिम समय में कैसे अपना फर्ज भूल जातीं।
शहर के सरदार पटेल नगर निवासी महेन्द्र कुमार चार दिन पूर्व सड़क हादसे में गंभीर घायल हो गए। जोधपुर में मंगलवार को उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई थी। शव को मुखाग्नि कौन देगा? यह सवाल खड़ा होता।
इससे पहले ही खड़ी हुई मृतक की दोनों बेटियां पन्द्रह वर्षीया सोनाली और सत्रह वर्षीया सुरभि ने हिम्मत दिखाते हुए अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया और श्मसान भूमि में मुखाग्नि भी दी। सोनाली ने बताया कि उनके पिताजी दोनों बहनों को बेटा ही मानते थे।
उन्होंने अपने सारे फर्ज बेटा समझकर पूरे किए तो हमें भी लगा कि उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उनके अंतिम सफर में बेटे का फर्ज निभाना चाहिए। दोनों बहने फिलहाल दसवीं कक्षा में पढ़ती है और बड़ी होकर अपने पिता और माता सरोज के सपने पूरा करना चाहती हैं। भाणजे पीयूष का कहना है कि उन्हें गर्व है कि दोनों बहनों ने इस मुश्किल घड़ी में हौसला दिखाकर एक मिसाल पेश की। बेटियों द्वारा शव को कंधा और मुखाग्नि दिए जाने की दिनभर में चर्चा रही।
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