शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

बहला-फुसला के ले जाते हैं मासूमों को फिर उनके जिस्म से भरते हैं अपनी तिजोरी



चक्रधरपुर/आनंदपुर. झारखंड सरकार भले ही बिटिया वर्ष मनाती रहे, पर इसी वर्ष कोल्हान की 36 बेटियां दलदल में जाने से बची हैं। हाल ही में तीन और लड़कियों को दिल्ली की संस्था चाइल्ड लाइन बचा कर लाई है। चक्रधरपुर की फूलमनी पूर्ति, मनोहरपुर प्रखंड के कुम्हारमुंडा गांव की गुडिय़ा कच्छप और ओडि़शा के कोपसिंगा गांव की सुखबनी जोजो को फिलहाल रांची के किशोरी निकेतन में रखा गया है। शुक्रवार को इन तीनों को चाईबासा भेजा गया। अक्सर सस्ती मजदूरी की लालच में मानव सौदागर यहां की आदिवासी किशोरियों को बहला-फुसला कर दिल्ली सहित अन्य महानगरों में ले जाते हैं। चाइल्ड संस्था के लोग झारखंड की इस दशा से काफी दु:खी हैं।


जिले में आई चाइल्ड लाइन की टीम


चाइल्ड लाइन की टीम जिले में आई। टीम के सदस्य मनोहरपुर में गुडिय़ा के पिता महाली कच्छप से वस्तुस्थिति की जानकारी ली। उन्होंने महाली को बताया कि शुक्रवार को चाईबासा आकर चाइल्ड लाइन से अपनी बेटी को ले जाएं। हालांकि इस दौरान सुखबनी के माता-पिता से टीम की मुलाकात नहीं हो सकी। इस टीम में चुम्बरू देवगम व मानकी देवगम है।





कैसे ले जाते हैं


दिल्ली में झारखंड के ही कई ऐसे दलाल सक्रिय हैं, जो यहां की युवतियों को काम दिलाने की लालच देकर ले जाते हैं। दलालों को वहां इसके बगले एकमुश्त राशि मिल जाती है।


दिल्ली में दुष्कर्म हुआ, पुलिस ने की मदद


गुडिय़ा कैसे और किसके साथ दिल्ली गई, यह उसके परिजनों को भी नहीं मालूम। पिता महाली कच्छप बताते हैं पिछले साल फरवरी में बिना कुछ कहे घर से चली गई। ठीक एक साल बाद इस वर्ष फरवरी में घर आई। तब उसने बताया कि वह दिल्ली में थी। फिर बिना कुछ कहे दिल्ली चली गई। दिल्ली पुलिस की रिपोर्टिंग पर मनोहरपुर थाने में बुधवा नामक एक व्यक्ति के खिलाफ 26 जुलाई को एक मामला भी दर्ज हुआ था। इसी मामले में खुलासा हुआ कि गुडिय़ा के साथ दिल्ली में दुष्कर्म हुआ है। अब वह पेट से है।


घरवाले बेखबर हैं


चक्रधरपुर अनुमंडल कार्यालय जहां हैं, वहीं पर फूलमनी पूर्ति का घर है। फूलमनी के बारे में भी उसके घर वालों को पता नहीं कि वह किसके साथ दिल्ली गई। उसके पिता का नाम मानकी पूर्ति है मां का नाम चंपा पूर्ति। अब खबर आई है कि उनकी बेटी सालों बाद लौटने वाली है। माता-पिता चाईबासा उसे लाने जानेवाले हैं।


एक दिन चुपके से भागी


करीब आठ साल पहले एक दलाल के साथ सुखबनी दिल्ली चली गई थी। वह रात अंधेरे में चुपके से घर से भागी थी। सुखबनी वहां क्या काम करती है, उसके पिता भी नहीं जानते थे। पिता राम सिंह जोजो राउरकेला में मजदूरी करते हैं। भाई बंगाल गया हुआ है। लंबे समय से घरवाले उससे खोजते रहे। अब आस जगी है। सुखबनी दिल्ली में कहां किसके साथ थी, यह घरवाले नहीं जानते।


क्या कहते हैं चाइल्ड लाइन वाले


"कोल्हान की 36 बेटियों को इस वर्ष दिल्ली से लाया गया है। इनमें गुदड़ी, हाटगम्हरिया, टोंटो, खूंटपानी, मनोहरपुर व मंझारी की 1-1, कुमारडुंगी, जगन्नाथपुर, नोवामुंडी, चक्रधरपुर, झींकपानी की 2-2, गोइलकेरा व सोनुवा की 3-3, सदर चाईबासा की 4, सरायकेला जिले की 5 तथा पूर्वी सिंहभूम की 3 व राउरकेला व रांची की 1-1 लड़कियां थीं।" - रामसिंह चातर, केंद्रीय समन्वयक, चाइल्ड लाइन, चाईबासा.

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