रेप आरोपी पूर्व कलक्टर को 7 साल सजा
जशपुर। बहुचर्चित लिली कुजूर बलात्कार मामले में सोमवार को जिला एवं सत्र न्यायालय ने छत्तीसगढ केजशपुर के पूर्व कलक्टर मुनकूराम सारथी को दोषी पाते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई। वर्ष 2002 में सुर्खियों में आए इस मामले ने तब समूचे प्रदेश की राजनीति को हिलाकर रख दिया था। सारथी आदिवासी विधवा महिला कर्मचारी की आबरू से पद के दम पर महीनों खिलवाड़ करता रहा।
इस मामले में अंतत: पूर्व कलक्टर सारथी को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। कलक्टर रहते हुए सारथी ने तमाम उपलब्ध सबूतों और गवाहों को अपने दबाव से हर प्रकार से नष्ट करने की कोशिश की।
यह था मामला : वर्ष 2002 में जशपुर जिले के मनोरा विकासखंड के घाघरा परिक्षेत्र में महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर लिली कुजूर का जनसमस्या निवारण शिविर में सारथी से आमना-सामना हुआ।
कुछ दिनों के बाद लिली कुजूर को आंगनबाड़ी विभाग के कर्मचारी एमआर टांडे से मौखिक सूचना मिली कि कलक्टर ने उसे मिलने के लिए बुलाया है। लिली अपनी साथी महिला सुपरवाइजर के साथ कलक्टर के बंगले में पहुंची। वहां पर सारथी दोनों महिला कर्मचारियों से अलग-अलग मिले। सारथी की मंशा को भांपते हुए 16 अक्टूबर 2001 को लिली फिर सारथी से मिलने बंगले पहुंची, तो उसने धमकी देकर दैहिक शोषण करने की पूरी घटना को टेप कर लिया। इसके बाद धमकी और कई प्रकार के दबाव के बल पर यह सिलसिला महीनों चलता रहा।
अंत में तंग आकर लिली ने इस मामले में न्याय का दरवाजा खटखटाया और पूरे मामले की जानकारी अपने परिजनों को दी। लिली के बहनोई नार्बट खलखो ने प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के 31 मई 2001 को जशपुर प्रवास पर इस संबंध में लिखित शिकायत की और रिकॉर्ड की गई बातचीत के टेप भी सौंपे। कोई कार्रवाई न होने पर 30 जून 2002 को लिली ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 6 मई 2004 को हाईकोर्ट के निर्देश पर जशपुर में भादवि की धारा 376, 342, 506 बी के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। पीडिता व आरोपी के डॉक्टरी मुलाहिजा के बाद 24 अक्टूबर 2001 को सारथी को रायपुर में गिरफ्तार किया गया।
काम नहीं आई चालाकी
अपने बचाव में आरोपी सारथी ने घटना 16 अक्टूबर 2001 और 24 जून 2002 को अलग-अलग जगहों पर होने का दावा किया, और कहा कि पीडिता के विरूद्ध निलंबन की कार्रवाई और उसके बहनोई नार्बट के पत्थर खदान की लीज व हथियार का लाइसेंस निरस्त करने से षड़यंत्रपूर्वक इस मामले में फंसाया गया है।
लेकिन न्यायालय ने कलक्टर के टूर संबंधी लॉग बुक समेत अन्य दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर बचाव पक्ष की दलील को खारिज कर दिया। सारथी को सजा सुनाते हुए न्यायालय ने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए पीडित व उसके परिजनों के विरूद्ध की गई दमनात्मक कार्रवाई को भी गंभीरता से लिया। इसी आधार पर आयु व बीमारी के आधार पर नरम रूख की अपील को भी न्यायालय ने ठुकरा दिया।
जशपुर। बहुचर्चित लिली कुजूर बलात्कार मामले में सोमवार को जिला एवं सत्र न्यायालय ने छत्तीसगढ केजशपुर के पूर्व कलक्टर मुनकूराम सारथी को दोषी पाते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई। वर्ष 2002 में सुर्खियों में आए इस मामले ने तब समूचे प्रदेश की राजनीति को हिलाकर रख दिया था। सारथी आदिवासी विधवा महिला कर्मचारी की आबरू से पद के दम पर महीनों खिलवाड़ करता रहा।
इस मामले में अंतत: पूर्व कलक्टर सारथी को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। कलक्टर रहते हुए सारथी ने तमाम उपलब्ध सबूतों और गवाहों को अपने दबाव से हर प्रकार से नष्ट करने की कोशिश की।
यह था मामला : वर्ष 2002 में जशपुर जिले के मनोरा विकासखंड के घाघरा परिक्षेत्र में महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर लिली कुजूर का जनसमस्या निवारण शिविर में सारथी से आमना-सामना हुआ।
कुछ दिनों के बाद लिली कुजूर को आंगनबाड़ी विभाग के कर्मचारी एमआर टांडे से मौखिक सूचना मिली कि कलक्टर ने उसे मिलने के लिए बुलाया है। लिली अपनी साथी महिला सुपरवाइजर के साथ कलक्टर के बंगले में पहुंची। वहां पर सारथी दोनों महिला कर्मचारियों से अलग-अलग मिले। सारथी की मंशा को भांपते हुए 16 अक्टूबर 2001 को लिली फिर सारथी से मिलने बंगले पहुंची, तो उसने धमकी देकर दैहिक शोषण करने की पूरी घटना को टेप कर लिया। इसके बाद धमकी और कई प्रकार के दबाव के बल पर यह सिलसिला महीनों चलता रहा।
अंत में तंग आकर लिली ने इस मामले में न्याय का दरवाजा खटखटाया और पूरे मामले की जानकारी अपने परिजनों को दी। लिली के बहनोई नार्बट खलखो ने प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के 31 मई 2001 को जशपुर प्रवास पर इस संबंध में लिखित शिकायत की और रिकॉर्ड की गई बातचीत के टेप भी सौंपे। कोई कार्रवाई न होने पर 30 जून 2002 को लिली ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 6 मई 2004 को हाईकोर्ट के निर्देश पर जशपुर में भादवि की धारा 376, 342, 506 बी के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। पीडिता व आरोपी के डॉक्टरी मुलाहिजा के बाद 24 अक्टूबर 2001 को सारथी को रायपुर में गिरफ्तार किया गया।
काम नहीं आई चालाकी
अपने बचाव में आरोपी सारथी ने घटना 16 अक्टूबर 2001 और 24 जून 2002 को अलग-अलग जगहों पर होने का दावा किया, और कहा कि पीडिता के विरूद्ध निलंबन की कार्रवाई और उसके बहनोई नार्बट के पत्थर खदान की लीज व हथियार का लाइसेंस निरस्त करने से षड़यंत्रपूर्वक इस मामले में फंसाया गया है।
लेकिन न्यायालय ने कलक्टर के टूर संबंधी लॉग बुक समेत अन्य दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर बचाव पक्ष की दलील को खारिज कर दिया। सारथी को सजा सुनाते हुए न्यायालय ने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए पीडित व उसके परिजनों के विरूद्ध की गई दमनात्मक कार्रवाई को भी गंभीरता से लिया। इसी आधार पर आयु व बीमारी के आधार पर नरम रूख की अपील को भी न्यायालय ने ठुकरा दिया।
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