15 साल से जंजीरों की कैद में गंवाया मानसिक संतुलन
बाड़मेर। जब वह मात्र 10 साल का था, तब उसे एक रोग (मेडिकल अफ्लीक्शन) के चलते जंजीरों से एक पेड़ के सहारे बांध दिया गया था। अब 15 साल बाद भी वह इसी स्थिति में रहने को मजबूर है। बीमारी के लगातार इलाज के बीच उसने अपना मानसिक संतुलन भी खो दिया है। उसे इलाज के लिए कोई सरकारी सहायता भी नहीं मिली।
वह जयपुर से करीब 550 किलोमीटर दूर बाड़मेर के जलियाला बेरा गांव का निवासी रमेश कुमार है। रमेश ज्यादातर समय अपने घर के बाहर एक पेड़ से रस्सी के जरिए बंधा रहता है या फिर उसे एक कमरे में बंद रखा जाता है, जहां उसके पैर पलंग से बंधे रहते हैं।
बीते 15 सालों में रमेश के इलाज के दौरान उसके परिवार की सारी जमा पूंजी खर्च हो चुकी है और उन्हें अपनी कई चीजों को बेचना पड़ा। रमेश के छोटे भाई पुखराज ने बताया कि एक किसान अपना ट्रैक्टर कभी नहीं बेचता क्योंकि वह उसके लिए बहुत मूल्यवान होता है। वह उसके परिवार के लिए दो वक्त के खाने का इंतजाम करता है। लेकिन मेरे पिता नेमीराम को रमेश के इलाज के लिए अपना ट्रैक्टर बेचना पड़ा। दो साल पहले दुखों को झेलते हुए उनका निधन हो गया।
पुखराज ने बताया कि जब रमेश 10 साल का था, तभी उसमें बीमारी विकसित होने लगी थी। उन्होंने बताया कि रमेश अपने जबड़े अचानक से जकड़ लेता था और हिंसक हो जाता था। ऐसा लगता था कि जैसे उसे कोई झटका लगा हो। बीते सालों के दौरान ऐसी ही स्थिति बनी रही। वह पत्थर फेंकता था और हमारे घर के सामने से गुजरने वाले लोगों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता था।
उन्होंने कहा कि शहरों में इलाज महंगा है और उसके परिणाम भी अच्छे नहीं हैं, इसलिए उन्हें रमेश को जंजीरों में बांधकर रखना पड़ा। पुखराज ने कहा कि गांव वालों ने हमें परेशान करना शुरू कर दिया। वे हमसे रमेश को नियंत्रण में रखने के लिए कहते।
उसने कहा कि जब वह बच्चे थे तब उनके लिए अपने भाई को रस्सियों में बंधा देखना बहुत मुश्किल होता था। पुखराज ने कहा कि मेरी बीमार मां बताती हैं कि जब वह अन्य बच्चों को जंजीरों में बंधे रमेश के इर्द-गिर्द खेलता व उसे तंग करता देखतीं तो अक्सर रोने लगती थीं।
उसने बताया कि रमेश के इलाज के लिए उन्हें सरकार से कभी कोई मदद नहीं मिली। पुखराज ने कहा कि मैं उसे मदद के लिए इस क्षेत्र के प्रत्येक प्रशासनिक अधिकारी के कार्यालय ले गया लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ।
वह जयपुर से करीब 550 किलोमीटर दूर बाड़मेर के जलियाला बेरा गांव का निवासी रमेश कुमार है। रमेश ज्यादातर समय अपने घर के बाहर एक पेड़ से रस्सी के जरिए बंधा रहता है या फिर उसे एक कमरे में बंद रखा जाता है, जहां उसके पैर पलंग से बंधे रहते हैं।
बीते 15 सालों में रमेश के इलाज के दौरान उसके परिवार की सारी जमा पूंजी खर्च हो चुकी है और उन्हें अपनी कई चीजों को बेचना पड़ा। रमेश के छोटे भाई पुखराज ने बताया कि एक किसान अपना ट्रैक्टर कभी नहीं बेचता क्योंकि वह उसके लिए बहुत मूल्यवान होता है। वह उसके परिवार के लिए दो वक्त के खाने का इंतजाम करता है। लेकिन मेरे पिता नेमीराम को रमेश के इलाज के लिए अपना ट्रैक्टर बेचना पड़ा। दो साल पहले दुखों को झेलते हुए उनका निधन हो गया।
पुखराज ने बताया कि जब रमेश 10 साल का था, तभी उसमें बीमारी विकसित होने लगी थी। उन्होंने बताया कि रमेश अपने जबड़े अचानक से जकड़ लेता था और हिंसक हो जाता था। ऐसा लगता था कि जैसे उसे कोई झटका लगा हो। बीते सालों के दौरान ऐसी ही स्थिति बनी रही। वह पत्थर फेंकता था और हमारे घर के सामने से गुजरने वाले लोगों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता था।
उन्होंने कहा कि शहरों में इलाज महंगा है और उसके परिणाम भी अच्छे नहीं हैं, इसलिए उन्हें रमेश को जंजीरों में बांधकर रखना पड़ा। पुखराज ने कहा कि गांव वालों ने हमें परेशान करना शुरू कर दिया। वे हमसे रमेश को नियंत्रण में रखने के लिए कहते।
उसने कहा कि जब वह बच्चे थे तब उनके लिए अपने भाई को रस्सियों में बंधा देखना बहुत मुश्किल होता था। पुखराज ने कहा कि मेरी बीमार मां बताती हैं कि जब वह अन्य बच्चों को जंजीरों में बंधे रमेश के इर्द-गिर्द खेलता व उसे तंग करता देखतीं तो अक्सर रोने लगती थीं।
उसने बताया कि रमेश के इलाज के लिए उन्हें सरकार से कभी कोई मदद नहीं मिली। पुखराज ने कहा कि मैं उसे मदद के लिए इस क्षेत्र के प्रत्येक प्रशासनिक अधिकारी के कार्यालय ले गया लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें