नई दिल्ली.क्या देश की तमाम निचली अदालतों से लेकर सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट तक में महिला वकीलों का यौन शोषण हो रहा है? अगर 63 महिला वकीलों की याचिका को सच माना जाए तो इन अदालतों में ऐसा ही हो रहा है। इनमें से कई महिला वकीलों ने एक दशक से ज़्यादा लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की है। महिला वकीलों के मुताबिक, हमें सुप्रीम कोर्ट से न्याय चाहिए। याचिका दाखिल करने वाली महिला वकील महिलाओं के साथ कोर्ट परिसर में भेदभाव और उनके यौन उत्पीड़न की घटनाओं को जानती हैं। हम चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट वकालत जैसे सम्मानित पेशे में काम कर रही महिलाओं को राहत दे।
याचिकाकर्ता महिला वकीलों ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट या अन्य किसी भी कोर्ट में महिला वकीलों के लिए कोई फोरम नहीं है जहां वे यौन उत्पीड़न करने वाले अपने पुरुष सहयोगियों या पुरुष मुवक्किलों के खिलाफ शिकायत कर सकें।'
1997 के विशाखा जजमेंट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइडलाइंस तय की थीं। इनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और सभी ट्रायल कोर्ट में महिला के नेतृत्व वाली समितियों का गठन किया जाना था। इन समितियों में महिला सदस्यों की संख्या बहुमत में रखे जाने की बात कही गई थी। इन समितियों का काम महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण के मामलों में महिलाओं को इंसाफ दिलाना था। याचिका दाखिल करने वाली महिला वकीलों के मुताबिक, 'अभी तक ऐसी कोई कमिटी या फोरम नहीं बनाया गया है। ऐसी समितियों या फोरम के गठन की तुरंत जरुरत है।'
याचिकाकर्ता महिला वकीलों ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट या अन्य किसी भी कोर्ट में महिला वकीलों के लिए कोई फोरम नहीं है जहां वे यौन उत्पीड़न करने वाले अपने पुरुष सहयोगियों या पुरुष मुवक्किलों के खिलाफ शिकायत कर सकें।'
1997 के विशाखा जजमेंट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइडलाइंस तय की थीं। इनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और सभी ट्रायल कोर्ट में महिला के नेतृत्व वाली समितियों का गठन किया जाना था। इन समितियों में महिला सदस्यों की संख्या बहुमत में रखे जाने की बात कही गई थी। इन समितियों का काम महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण के मामलों में महिलाओं को इंसाफ दिलाना था। याचिका दाखिल करने वाली महिला वकीलों के मुताबिक, 'अभी तक ऐसी कोई कमिटी या फोरम नहीं बनाया गया है। ऐसी समितियों या फोरम के गठन की तुरंत जरुरत है।'
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