नई दिल्ली।। अमनदीप सिंह और मनप्रीत कौर (बदला हुआ नाम) की 22 जनवरी, 2002 को शादी हुई थी। शादी के बाद दोनों कालकाजी में रहने लगे। इनका बच्चा हुआ। 2007 में सुरजीत सिंह ने अलग रहना शुरू किया और अदालत में अर्जी दाखिल कर कहा कि पत्नी से मेरा मतभेद हो गया है और हम दोनों आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं। बच्चा पत्नी के साथ रहेगा और इस एवज में मैं उसे दो लाख रुपये दूंगा।
निचली अदालत में पति और पत्नी दोनों की ओर से हलफनामा पेश किया गया। पहचान के दस्तावेज और शादी के फोटोग्राफ भी पेश किए गए। यहां तक कि कोर्ट में दोनों पक्षों को पेश होते देखा गया। दोनों को 22 अप्रैल, 2008 को तलाक मिल गया। एक दिन मनप्रीत कौर निचली अदालत पहुंचीं और कहा कि मेरी ओर से तलाक की अर्जी नहीं दाखिल की गई। मैं कभी कोर्ट में पेश नहीं हुईं और न ही किसी दस्तावेज पर दस्तखत किए। मनप्रीत ने तलाक खारिज किए जाने की गुहार लगाई।
जिला जज ने मनप्रीत की अर्जी स्वीकार कर ली। बाद में पता चला कि अमनदीप सिंह ने किसी और महिला को कोर्ट में पेश करके और उसे अपनी पत्नी बताया था। उसने अपनी असली पत्नी के दस्तखत में जालसाजी की और हलफनामा तैयार कराया। नकली पत्नी के फोटोग्राफ तलाक की अर्जी में लगाए गए थे।इसके बाद भी अमनदीप ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा कि हमारा आपसी सहमति से तलाक हो चुका है और तमाम दस्तावेज सही थे। लेकिन हाई कोर्ट ने सुरजीत की अर्जी खारिज करते हुए उसके खिलाफ सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट के मुताबिक, 'यह कहने में गुरेज नहीं है कि सुरजीत ने जल्दी तलाक के लिए गंभीर फ्रॉड किया है। उसने न सिर्फ अपनी पत्नी को धोखा दिया बल्कि कोर्ट को भी धोखा दिया। अदालत में फर्जी ऐडवोकेट तक पेश किए गए। अपने फायदे के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाना गुनाह है।' कोर्ट ने उस पर 2 लाख रुपए का हर्जाना लगाया।
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा दोबारा न हो, इसके लिए फैमिली कोर्ट में बयान के वक्त दस्तखत कराए जाएं। फोटोग्राफ पेस्ट किया जाए, न कि उसे स्टेपल्ड किया जाए। पावर ऑफ अटर्नी जारी करने वाले वकील का पता और एनरॉलमेंट नंबर देखना सुनिश्चित किया जाए। ओथ कमिश्नर का रजिस्ट्रेशन नंबर भी स्पष्ट हो, यह सुनिश्चित किया जाए।
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