सोमवार, 27 अगस्त 2012

जालोर"स्वर्ण" होगी स्वर्णगिरि की सूरत

"स्वर्ण" होगी स्वर्णगिरि की सूरत

जालोर। परमारों, चौहानों और राठौड़ों का शक्ति स्थल रहा जालोर का स्वर्णगिरि(सोनगिरि) दुर्ग अब स्वर्णकी भांति निखरेगा। मरम्मत के अभाव में जर्जर हो रहे दुर्ग की सूरत को चमकाने के लिए सरकार ने 50 लाख रूपए जारी किए हैं। करीब 2408 फीट की ऊंचाईपर सुरम्य पहाडियों के बीच इस ऎतिहासिक स्थल को संवारने क लिए पुरातत्व विभाग ने कार्यशुरू करवा दिया है।

सांस्कृतिक एवं ऎतिहासिक वैशिष्टय लिए सीना ताने खड़े स्वर्णगिरि दुर्ग में पुरा सम्पदा को सहेजने के लिए प्रशासनिक स्तर पर पहल की गईहै, लेकिन अब पर्यटन के रूप में चमकाने के लिए सतत् प्रयास की आवश्यकता है।

पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित इस इमारत की वर्षो से कोईसार-संभाल नहीं हो रही थी। ऎसे में दुर्ग के प्राचीन महल जर्जर हो रहे थे। ऎतिहासिक धरोहर को संवारने के बाद पर्यटन के मानचित्र पर उभारने के लिए प्रयास की जरूरत है।

समृद्ध था स्वर्णगिरि
प्रतिहारों के शासनकाल (750-1018 ई.) तक जालोर समृद्ध नगर था। प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने जालोर में अपनी राजधानी स्थपित कर दुर्ग का निर्माण कराया था। इसके बाद परमार शासकों ने जीर्णोद्धार कराया।


स्वर्णगिरि दुर्ग में भले ही स्थापत्य कला का सौन्दर्य झलकता हो, लेकिन पुरा संरक्षण के नाम पर की जा रही औपचारिकताओं और पुरा विभाग की उदासीनता के कारण धरोहर खत्म हो रही है। इसके बाद सांसद देवजी पटेल ने स्वर्णगिरि दुर्ग को संवारने के लिए संसद भी मुद्दा उठाया। ।

यह होगा काम
दुर्ग व महल की जर्जर दीवारों की मरम्मत की जाएगी। महलों के दरवाजे लगाने, प्लास्टर का मरम्मत कार्य करने के साथ महलों में पसरी गंदगी की सफाई करवाई जाएगी।

कीर्ति की भी हो "कीर्ति"
दुर्ग में परमारों के शासनकाल में कीर्तिस्तम्भ का निर्माण हुआ था। इस ऎतिहासिक वैशिष्टयता की ओर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया। दुर्ग को निहारने पहुंचने वालों को कीर्ति स्तम्भ चहुंओर खंडहर होती विरासत के बीच सुनहरा चमकता नजर आता है, लेकिन ऎतिहासिक वैशिष्टय का कहीं उल्लेख नहीं है। ऎसे में लोगों को इसके महत्व के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।

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