महान पर्व है संवत्सरी
बालोतरा। संवत्सरी परम आध्यात्मिक पर्व है क्योकि आध्यात्मिकता का जो रूप आज के दिन नजर आता है। उतना अन्य कार्यक्रमों में नहीं देखा जाता। भीड़ तो अन्य कार्यक्रमों में भी इससे ज्यादा हो सकती है पर धर्ममय, आध्यात्मय व साधनामय माहौल आज के दिन के सिवाय अन्य दिन नहीं मिलता। जसोल के तेरापंथ भवन में संवत्सरी महापर्व के अवसर पर प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि संवत्सरी का दिन इतना प्रतिष्ठित हो गया है कि नहीं आने वाले भी आज के दिन व्याख्यान में आ जाते हंै। इस दिन उपवास भी होता है और समाधान का प्रक्रम भी इसके साथ जुड़ा हुआ है। यह दिन किसी भी आचार्य और तीर्थकर के साथ नहीं जुड़ा हुआ है।
फिर भी जो आध्यात्मिक महत्व इस पर्व को मिला है वो अन्य को नहीं मिला है। उपवास व पौषध करना भी धर्म है। क्षमादान व क्षमा याचना भी एक विशेष उपक्रम है। संवत्सरी प्रतिक्रमण में चौरासी लाख योनियों से खमत खामणा (क्षमा याचना) की जाती है। आचार्य ने खमत खामणा को जैन शासन का महत्वपूर्ण प्रकम बताते हुए कहा कि खमत खामणा मन से होनी चाहिए। मन में कोई वैर भावना न रहे। मैत्री के इस पर्व में चित्त की शुद्धि भी होनी चाहिए। वर्ष भर में हुए प्रतिक्रमण की शुद्धि भी कर लेनी चाहिए।
आचार्य ने संवत्सरी से संबंधित आयो जैन जगत रो प्रमुख संवत्सरी गीत का संगान किया। उन्होंने कहा कि संवत्सरी महापर्व आत्म अन्वेषण का महान पर्व है। नाम में सांस्कृतिकता झलकनी चाहिए। अनेक संतों का नाम तीर्थकरों के नाम से है। संतों के नाम से अनायास ही प्रभु का नाम लिया जाता है। अच्छे नाम अच्छी प्रेरणा देने वाले होने चाहिए। नाम अर्थवान होने चाहिए। उन्होंने कहा कि टीवी, क्रिकेट में जितना आर्कषण है, उतना आकर्षण भगवान, धर्म व स्वाध्याय के प्रति हो जाए तो कल्याण हो सकता है।
उन्होंने भगवान महावीर के जन्म के संबंध मे संक्षिप्त प्रवचन दिया। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि आज के दिन हर व्यक्ति पिछला लेखा जोखा मिलाकर आगे के लिए सत् संकल्प करता है। धार्मिक व्यक्ति नित्या धर्मा होता है। वह केवल संवत्सरी पर्व पर ही धर्म नहीं करता बल्कि पूरे वर्ष करता है। व्यक्ति धर्म इसलिए करें कि धर्म की रक्षा व उपासना होने पर व्यक्ति की रक्षा करता हों। नित्य धर्मा व्यक्ति अपनी मंजिल तक निर्विघ्नता से पहुंच सकता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि महावीर कुमार ने आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित गीत आत्मा की पोथी पढ़ने का सुंदर अवसर आया है गीत का संगान किया। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।
दर्शन किए
बीकानेर से समागत लाल बाबा ने तेरापंथ भवन पहुंचकर आचार्य महाश्रमण के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्य व लाल बाबा के बीच सौहार्दपूर्ण वार्तालाप हुआ। लाल बाबा तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यो के प्रति समर्पित रहे है।
बालोतरा। संवत्सरी परम आध्यात्मिक पर्व है क्योकि आध्यात्मिकता का जो रूप आज के दिन नजर आता है। उतना अन्य कार्यक्रमों में नहीं देखा जाता। भीड़ तो अन्य कार्यक्रमों में भी इससे ज्यादा हो सकती है पर धर्ममय, आध्यात्मय व साधनामय माहौल आज के दिन के सिवाय अन्य दिन नहीं मिलता। जसोल के तेरापंथ भवन में संवत्सरी महापर्व के अवसर पर प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि संवत्सरी का दिन इतना प्रतिष्ठित हो गया है कि नहीं आने वाले भी आज के दिन व्याख्यान में आ जाते हंै। इस दिन उपवास भी होता है और समाधान का प्रक्रम भी इसके साथ जुड़ा हुआ है। यह दिन किसी भी आचार्य और तीर्थकर के साथ नहीं जुड़ा हुआ है।
फिर भी जो आध्यात्मिक महत्व इस पर्व को मिला है वो अन्य को नहीं मिला है। उपवास व पौषध करना भी धर्म है। क्षमादान व क्षमा याचना भी एक विशेष उपक्रम है। संवत्सरी प्रतिक्रमण में चौरासी लाख योनियों से खमत खामणा (क्षमा याचना) की जाती है। आचार्य ने खमत खामणा को जैन शासन का महत्वपूर्ण प्रकम बताते हुए कहा कि खमत खामणा मन से होनी चाहिए। मन में कोई वैर भावना न रहे। मैत्री के इस पर्व में चित्त की शुद्धि भी होनी चाहिए। वर्ष भर में हुए प्रतिक्रमण की शुद्धि भी कर लेनी चाहिए।
आचार्य ने संवत्सरी से संबंधित आयो जैन जगत रो प्रमुख संवत्सरी गीत का संगान किया। उन्होंने कहा कि संवत्सरी महापर्व आत्म अन्वेषण का महान पर्व है। नाम में सांस्कृतिकता झलकनी चाहिए। अनेक संतों का नाम तीर्थकरों के नाम से है। संतों के नाम से अनायास ही प्रभु का नाम लिया जाता है। अच्छे नाम अच्छी प्रेरणा देने वाले होने चाहिए। नाम अर्थवान होने चाहिए। उन्होंने कहा कि टीवी, क्रिकेट में जितना आर्कषण है, उतना आकर्षण भगवान, धर्म व स्वाध्याय के प्रति हो जाए तो कल्याण हो सकता है।
उन्होंने भगवान महावीर के जन्म के संबंध मे संक्षिप्त प्रवचन दिया। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि आज के दिन हर व्यक्ति पिछला लेखा जोखा मिलाकर आगे के लिए सत् संकल्प करता है। धार्मिक व्यक्ति नित्या धर्मा होता है। वह केवल संवत्सरी पर्व पर ही धर्म नहीं करता बल्कि पूरे वर्ष करता है। व्यक्ति धर्म इसलिए करें कि धर्म की रक्षा व उपासना होने पर व्यक्ति की रक्षा करता हों। नित्य धर्मा व्यक्ति अपनी मंजिल तक निर्विघ्नता से पहुंच सकता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि महावीर कुमार ने आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित गीत आत्मा की पोथी पढ़ने का सुंदर अवसर आया है गीत का संगान किया। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।
दर्शन किए
बीकानेर से समागत लाल बाबा ने तेरापंथ भवन पहुंचकर आचार्य महाश्रमण के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्य व लाल बाबा के बीच सौहार्दपूर्ण वार्तालाप हुआ। लाल बाबा तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यो के प्रति समर्पित रहे है।
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