रविवार, 22 जुलाई 2012

PHOTOS: 'यहां' बहू-बेटियां बेचती हैं 'जिस्म', तब बुझती है पेट की आग!


PHOTOS: 'यहां' बहू-बेटियां बेचती हैं 'जिस्म', तब बुझती है पेट की आग!PHOTOS: 'यहां' बहू-बेटियां बेचती हैं 'जिस्म', तब बुझती है पेट की आग!PHOTOS: 'यहां' बहू-बेटियां बेचती हैं 'जिस्म', तब बुझती है पेट की आग!PHOTOS: 'यहां' बहू-बेटियां बेचती हैं 'जिस्म', तब बुझती है पेट की आग!PHOTOS: 'यहां' बहू-बेटियां बेचती हैं 'जिस्म', तब बुझती है पेट की आग!PHOTOS: 'यहां' बहू-बेटियां बेचती हैं 'जिस्म', तब बुझती है पेट की आग!



हैदराबाद. यह जगह दस साल से सूखे की चपेट में है। जमीन बंजर हो चुकी है। फसल नहीं होने की वजह से पेट में आग लगी है। हालात के मारे लोग पेट की आग बुझाने के लिए अपनी बहू-बेटियों के जिस्म का सौदा करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिला की।



आर्थिक तंगी और कर्ज के बोझ को उतारने के लिए यहां के किसान अपने घर की महिलाओं को दलालों के हाथों बेच रहे हैं। ये लड़कियां दिल्ली और मुंबई के रेड लाइट एरिया में सप्लाई की जाती हैं।लगातार बढ़ते प्रदूषण ने प्रकृति को बहुत प्रभावित किया है जिससे जल, जमीन और जंगल के साथ-साथ जीवन का रंग ही उड़ता जा रहा है। इसी का दुष्प्रभाव है कि यहां पांच साल में एक बार आने वाला सूखा अब हर दूसरे साल आता है। इससे जमीन बंजर हो गई है। दाने-दाने के मोहताज लोग पेट पालने के लिए घर की इज्जत बेचने को मजबूर हैं। उधर, सरकार की लापरवाही से यह जिला अब महिलाओं की खरीद-फरोख्त का बाजार बनता जा रहा है।यहां के एक किसान के मुताबिक उसका परिवार अनंतपुर के कदरी में रहता है। सूखे के प्रकोप से खेत सूख चुके हैं। सभी दाने-दाने को मोहताज है। ऐसे भीषण हालात में इस किसान को बस एक ही रास्ता नजर आया। उसने अपनी बेटी का सौदा मुंबई में कर दिया। हाथ में जब पैसा आया तो फसल खड़ी हो गई, लेकिन एक बार फिर सूखे की मार ने खेती को तबाह कर दिया।वह बताते हैं कि हमें सरकार ने दो एकड़ ज़मीन दी थी, पर वो खेती लायक नहीं है। खेती के लिए पैसे की जरूरत थी। हमारे सामने कोई चारा नहीं रह गया था। बेटी को मुंबई भेजने से जो पैसा आया उसे खेत में लगाया, पर फसल दुबारा खराब हो गई और हम कंगाल हो गए। सरकार कोई सुध नहीं ले रही है।एक पीड़ित लड़की के मुताबिक, खेती के लिए पैसा चाहिए। इसलिए उसे बेच दिया गया। यह कहा गया कि अब मुश्किलें दूर हो जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह अकेली महिला नहीं, जिसे तंगी ने जिस्म के धंधे में धकेला हो। पूरे इलाके में ऐसी कई अभागी महिलाएं मिलेंगी जो किसी की बेटी हैं तो किसी की पत्नी और सूखे के बाद पैदा हुए हालात से लड़ने के लिए जिस्मफरोशी के घिनौने बाजार में बिकने को मजबूर हो गईं।किसान ही नहीं, खेतिहर मजदूरों के घरों में भी चूल्हे की आंच ठंड पड़ चुकी है। बेटियों-बहुओं को बिकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। नालामाडा में रहने वाली पांच महिलाएं दिल्ली के जिस्म के दलालों के हाथों से निकलकर वापस अपने घर पहुंची हैं, लेकिन लौटने के बाद यहां के हालात इनके लिए और बदतर हो चुके हैं।दो महिलाएं एचआईवी का शिकार हो चुकी हैं तो बाकी गरीबी और भुखमरी में घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। दिल्ली जाने के बाद मिला पैसा न तो इनके परिवार के हालात सुधार सका और न ही घर पर दोनों वक्त का खाना ही मयस्सर हो पाया। ऊपर से सरकारी अनदेखी इनकी तकलीफ को और बढ़ाती है। अब ये इतनी मायूस हो चुकी हैं कि वापस जिस्म के दलदल में उतरने के लिए सोच रही हैं।अनंतपुर आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाके के उन चार जिलों में है, जहां पिछले दस साल से सूखा पड़ रहा है। कुछ इलाके तो भयंकर सूखे की चपेट में हैं। इन इलाकों के लिए बनी सरकारी योजनाएं फाइलों की शोभा बढ़ा रही हैं। मगर जमीन पर इनका कोई वजूद नहीं दिखता। किसानों को कोई राहत नहीं है। यही वजह है कि गरीबी, बेबसी और लाचारी में जनजाति बहुल यह इलाका जिस्मफरोशी की मंडी बनता जा रहा है।अनंतपुर में हर पांच में से तीन साल सूखा पड़ता है। पिछले साल यह देश का दूसरा सबसे कम बारिश वाला जिला था। 19 हजार में से 10 हजार हेक्टेयर जमीन का दारोमदार सिर्फ बारिश पर है। सूखे ने पिछले साल 50 किसानों को खुदकुशी के लिए मजबूर किया, जबकि 10 साल में यहां करीब 700 किसान खुदकुशी कर चुके हैं।

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