रविवार, 29 जुलाई 2012

जिले में मानसून की बेरुखी से सरहदी गांवों में हालात बने विकट, चारा, पानी व रोजगार का संकट



रोजगार के लिए गुजरात की ओर पलायन

बाड़मेर थार में मानसून की बेरुखी से सूखे के आसार बन गए हैं। सुकाल की आस लगाए बैठे धरती पुत्रों को लंबे इंतजार के बाद निराशा हाथ लगी। सावन सूखा बीता जा रहा है, अब तक खरीफ बुवाई को खेतों में हल नहीं चले है। अब धरती पुत्रों के सब्र का बांध टूट रहा है। रोजगार के लिए ग्रामीणों ने पलायन का मानस बना लिया है। इस साल मानसून के दौरान जिले में मात्र एक बार बरसात हुई है। सावन शुरू होने के तीसरे दिन ही जिले भर में अच्छी बरसात हुई थी। जिससे इस साल भी अच्छे मानसून की आस बंधी थी, लेकिन उसके बाद अब तक कुछ गांवों को छोड़कर कहीं पर भी एक भी बूंद नहीं बरसी। इससे सूखे के आसार हो गए हैं। एक बरसात के बाद जिन किसानों ने खेतों में बुवाई की थी, वह फसल अब कई जगहों पर अंकुरित हो गई, लेकिन बारिश के अभाव में अब मुरझाने लगी है। जिले के सरहदी गांव गडरा, सुंदरा, पांचला, रोहिड़ी, पांचला, बीकेसी, खडाला, बंधड़ा समेत दर्जनों गांवों के अस्सी फीसदी लोगों की आजीविका खेती व पशुपालन पर निर्भर है। इन गांवों में लगातार दूसरे साल अकाल के बादल मंडरा रहे हैं। पशुपालकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती पशुधन को बचाना है। आसपास के गांवों के मोट्यार रोजगार के लिए पड़ोसी राज्य गुजरात की ओर रुख कर रहे हैं।

किस पर क्या असर

चारा, पानी व रोजगार: बारिश के अभाव में बुवाई नहीं होने से चारे का संकट अभी से खड़ा हो गया है। पशुओं के लिए कुतर, ग्वारटी के भावों में तेजी से पशुपालकों की चिंताएं बढ़ रही है। पेयजल के लिए जीएलआर बने हैं, मगर पहले से अनियमित जलापूर्ति के चलते ग्रामीणों को पानी के टैंकर मंगवाने पड़ रहे हैं। बारिश नहीं होने से टैंकरों की दरें बढ़ेगी। खेती व पशुपालन से आजीविका चलाने वाले ग्रामीणों के सामने सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है।

अकाल से बढ़ेगी महंगाई: जिले भर में सूखे के आसार बनने से बाजरा, ग्वार, मूंग, मोठ व तिल के भावों में तेजी आई है। खरीफ की पैदावार नहीं होने से आम जरूरत की वस्तुएं महंगी हो जाएगी।

सब्जियों के भाव 50 से 60 फीसदी बढ़ गए हैं। सब्जी विक्रेताओं के अनुसार सावन मास के दौरान ऐसा कई सालों में पहली बार हुआ है।

एनीकट व तालाब रीते: पूरे जिले में लगभग सभी एनीकट व तालाब इस समय खाली पड़े हैं। पिछले साल यह सारे पानी से लबालब भर गए थे। एक साल के दौरान ही यह सभी इस समय खाली हैं।

ऐसे में अब इन एनिकट व तालाबों को भी पानी का इंतजार है। इस बार भी पानी के लिए तरस है। ऐसे में रबी के दौरान भी किसानों के सामने संकट खड़ा होगा।

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