2 दिसंबर 1960। उस दिन आंध्र प्रदेश के एल्लुरू में एक गरीब परिवार में विजयलक्ष्मी का जन्म हुआ। उस वक्त पड़ोस क्या परिवार वालों तक को इल्म न था कि यह लड़की आगे चल कर देश की सबसे चर्चित हिरोइन बनेगी। परिवार गरीब था, इसलिए प्राथमिक शिक्षा तो नहीं मिल पाई, लेकिन कंधों पर चूल्हें चौके का भार डाल दिया गया।
कमसिन उम्र में ही शादी कर दी गई। शादी के बंधनों और ससुरालवालों की जबरदस्ती ने विजयलक्ष्मी का जीना मुश्किल कर दिया। पर कहते हैं ना मुश्किलें ही इंसान की सफलता की सीढ़ियां बनती हैं।परेशान और हालात से मजबूर विजयलक्ष्मी ससुराल छोड़ कर चेन्नई पहुंच गई। वहां अपनी एक आंटी के साथ रहने लगी। उसने शुरुआत में मेकअप गर्ल बनकर गुजारा किया। वह शूटिंग के दौरान हीरोइन के चेहरे पर टचअप का काम किया करती थी।सांवला रंग और नशीली नैनों की मल्लिका विजयलक्ष्मी की आंखों में यहीं से ग्लैमर के आसमान पर सितारे की तरह चमकने के सपने पलने शुरू हो गए।वह फिल्म निर्माताओं से दोस्ती करने लगी। दोस्ती और उसका जज्बा रंग लाया। 1979 में मलयालम फिल्म 'इनाये थेडी' में पहली बार लोगों ने परदे पर एक ऐसी लड़की देखी जो गोरी नहीं थी। छरहरी नहीं थी। अदाओं में शराफत नहीं थी। आंखें आम लड़कियों की तरह शर्म से झुकती नहीं थी। उसकी हर अदा नशीली थी। उत्तेजक थीस्मिता ने दक्षिण भारतीय सिनेमा को अपने मदमस्त यौवन के जादू से हिलाकर रख दिया था। उस दौर की कोई भी फिल्म वितरक तभी खरीदते थे जब उसमें कम से कम सिल्क स्मिता का एक आइटम सांग जरूर हो।स्मिता ने अपने दस साल के छोटे-से करियर में करीब पांच सौ फिल्मों में काम किया। उसे अपने करियर का सबसे बड़ा ब्रेक 1980 में रिलीज हुई फिल्म 'वांडी चक्रम' में मिला। उसमें उसने अपने किरदार को खुद डिजाइन किया और मद्रासी चोली को फैशन स्टेटमेंट बना दिया।इस फिल्म तक उसका नाम सिर्फ स्मिता ही था, लेकिन फिल्म में अपने किरदार सिल्क को मिली शोहरत को उन्होंने अपने साथ जोड़ते हुए अपना नाम 'सिल्क स्मिता' कर लिया।1980 से 1983 का दौर सिल्क स्मिता के करियर का वह दौर था जिसमें उसने करीब 200 फिल्में की। एक दिन में तीन-तीन शिफ्टों में काम किया। एक-एक गाने की कीमत 50 हजार रुपये तक वसूली।सिल्क की शोहरत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिवाजी गणेशन से लेकर रजनीकांत, कमल हासन और चिरंजीवी तक की फिल्मों में उनका कम से कम एक गाना उस वक्त बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की सफलता की जरूरत बन चुका था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें