मानसून रूठा, अब दुआओं पर भरोसा
खेतों में सूखने लगे अंकुरित पौधे, बाजार से लेकर आमजन की दिनचर्या पर असर
जालोर मानसून की बेरूखी का असर अब आमजन जीवन से लेकर खेतों में दिखाई देने लगा है। अब तक मानसून पर उम्मीद लगाए किसानों की आस भी टूटने लगी है और वे खेतों को ऊपर वाले के भरोसे छोड़कर दिनरात इंद्रदेव से बरसात की कामना कर रहे हैं। पांच दिन बाद सावन भी खत्म हो जाएगा और कई सालों बाद यह पहला मौका होगा जब पूरे सावन में मात्र एक बार बारिश होकर रह गई हो। ऐसे में इस साल सूखे के आसार होने लगे हैं। बाजार से लेकर घरों में और खेतों में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है। इधर, अगर लोक मान्यताओं और ज्योतिष की बात करें तो भाद्रपद में थोड़ी बहुत बरसात की उम्मीद है, लेकिन साथ ही प्रकृति के कुछ ऐसे भी इशारे हैं जिनसे सूखे की बात भी कही जा सकती है। बहरहाल, इस समय किसानों समेत आमजन को बरसात की सख्त आवश्यकता है और ज्यादा दिन तक यही हालात रहे तो उनके सामने पशुओं के चारे पानी का भी संकट हो जाएगा। जिसका सीधा असर महंगाई पर होगा। साथ ही दूसरी कई व्यवस्थाओं पर भी इसका असर पड़ेगा।
मात्र एक बार हुई बरसात
इस साल मानसून के दौरान जिले में मात्र एक बार बरसात हुई है। सावन शुरू होने के तीसरे दिन ही जिले भर में अच्छी बरसात हुई थी। जिससे इस साल भी अच्छे मानसून की आस बंधी थी, लेकिन उसके बाद अब तक सांचौर को छोड़कर कहीं पर भी एक भी बूंद नहीं बरसी। जिससे सूखे के आसार हो गए हैं। इस एक बरसात के बाद किसानों ने खेतों में बुवाई की थी। वह फसल अब कई जगहों पर अंकुरित हो गई है, लेकिन दूसरी बार सिंचाई के अभाव में अब वह सूखने लगी है।
सभी बांध खाली
पूरे जिले में लगभग सभी बांध इस समय खाली पड़े हैं। पिछले साल यह सारे बांध भर गए थे। एक साल के दौरान ही यह सभी इस समय खाली हैं। ऐसे में अब इन बांधों को भी पानी का इंतजार है। इसी प्रकार पाली जिले के सुमेरपुर में स्थित जवाई बांध पर पूरे जिले की नजर होती है। इस बांध के भर जाने तथा ओवरफ्लो होने से जालोर जिले की जवाई नदी में पानी आता है। साथ ही रबी की फसल के दौरान आहोर क्षेत्र के किसानों को पानी मिलता है, लेकिन इस बार यह बांध भी पानी के लिए तरस है। ऐसे में रबी के दौरान भी किसानों के सामने संकट खड़ा होगा।
क्या कहती हैं लोक मान्यताएं
इधर, अगर लोक मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो भाद्रपद के दौरान अच्छी बरसात की उम्मीद है। आखा तीज पर देखे गए शगुन पर गौर किया जाए तो भाद्रपद में अच्छी बरसात होनी है। यह शगुन हर साल खास मौकों पर संतों और बुजुर्ग लोगों द्वारा कई सालों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार देखे जाते हैं। वहीं ज्योतिष के अनुसार भी भाद्रपद में बरसात के आसार हैं। इधर, एक अन्या मान्यता को माना जाए तो यदि केर के पेड़ पर लाल फूल आते हैं तो भी बरसात नहीं होती। इस साल कई जगहों पर केर के पेड़ पर लाल फूल आए हैं। हालांकि यह लोक मान्यताएं हैं, लेकिन सही स्थिति तो यह है कि लगातार बिगड़ रहे प्राकृतिक असंतुलन के कारण बरसात का चक्र भी प्रभावित हुआ है।
जिले में मुख्य बांधों की स्थिति
बांध भराव क्षमता पानी
बाकली 1220 3.30 फिट
नोसरा नहर 290.630 नहीं
चवरछा 280 1.30 फिट
सरदारगढ़ 115.440 नहीं
कलापुरा 120 नहीं
बीठन 225.620 6.5 फिट
बांडी सिणधरा 1013 0.60 मीटर
बालसमंद 101.880 नहीं
वणधर 119.081 नहीं
जैतपुरा 88.430 नहीं
चितलवाना 432.130 नहीं
(बांधों की क्षमता एमसीएफटी में)
असर अभी से साफ
: पिछले एक माह के दौरान दाल और चीन के भावों में कहीं अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
: सब्जियों के भाव 50 से 60 फीसदी बढ़ गए हैं। सब्जी विक्रेताओं के अनुसार सावन मास के दौरान ऐसा कई सालों में पहली बार हुआ है।
: कृषि विभाग ने बुवाई का लक्ष्य घटा दिया है और किसानों ने भी जोखिम ना उठाते हुए अभी कम ही क्षेत्र में बुवाई की है।
: पूरा जुलाई माह बीतने को आया, लेकिन पार अभी 40 डिग्री पर ही चल रहा है।
: प्रशासन के सामने बिजली आपूर्ति और पेयजल वितरण को लेकर समस्या खड़ी हुई। शहरों में सात आठ घंटे बिजली कटौती जारी है। गांवों में हालात और भी बुरे हैं।
: यही हाल जलापूर्ति का है। पहले से ही लोगों के आक्रोश का सामना कर रहे विभाग के सामने पर्याप्त जलापूर्ति कर पाना मुश्किलहो रहा है। जालोर शहर में सप्ताह में एक बार बमुश्किल आपूर्ति हो रही है।
सबसे बड़ी चिंता इस बात की
बरसात नहीं होने से सबसे बड़ी चिंता किसानों की है। पूरे देश की आर्थिक व्यवस्था खेती पर निर्भर है। उसमें अगर जालोर की बात की जाए तो 80 प्रतिशत लोग पूरी तरह से खेती और पशुपालन पर निर्भर है। ऐसे में बरसात नहीं होने से जिले में इसका खासा असर होगा। चारा पानी नहीं होने से पशुपालकों को पलायन करना होगा। वहीं खेती नहीं होने से किसानों के सामने कर्ज का बोझ बढ़ जाएगा। इसका सीधा असर अगले साल गेहूं, बाजरे की कीमतों और अभी से सब्जियों आदि पर पड़ेगा। इसके साथ ही दूध, घी और छाछ समेत इससे जुड़े अन्य उत्पादों की कीमतें बढऩा तय है।
मानसून की बेरूखी से पैदा होने लगे सूखे के हालात, किसानों की बढ़ गई चिंता
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