रविवार, 8 जुलाई 2012

वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली

वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली

वृंदावन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला के अंतर्गत आता है। यह भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली था। वह अपने सखाओं के साथ गाय चराने और खेलने के लिए यहां आया करते थे। यहां पर मंदिरो की संख्या काफी अधिक है। पूरे वृंदावन में लगभग पांच हजार मंदिर है। क्षेत्रफल के अनुपात में यह संख्‍या काफी अधिक है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण को काफी प्रिय था। ज्यादा लीलाये भगवान कृष्ण ने यही पर ही रचाई थीं। मथुरा और वृंदावन आपस में अंर्तसंबंधित है। कहा जाता है भगवान कृष्ण वृंदावन छोड़कर नही गये है वह आज भी वृंदावन में है।

कृष्ण भक्तो के लिए यह महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि वह देह त्याग से पूर्व एक बार वृंदावन जरूर आये। भगवान श्रीकृष्ण ने अपना अधिकांश समय यहीं पर व्‍यतीत किया था। इसी कारण वृंदावन को अन्य धार्मिक स्थलो से अलग माना जाता है। चैतन्य महाप्रभु का कहना था कि वृंदावन वह धाम है, जहां पर कण-कण में भगवान कृष्ण बसते है। यहां के पेड़ो, पत्तो आदि के अन्दर भी भगवान श्रीकृष्ण का वास है। इसे प्रधान धाम भी कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति यहां पर आकर ही जीवन के सत्य को जान पाता है। वृंदावन में आकर सभी को आध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति होती है।

वृंदावन परिक्रमा
वृंदावन परिक्रमा की प्रथा प्रचीन काल से चली आ रही है। भगवान श्रीकृष्ण के भक्त वृंदावन की परिक्रमा करते है। परिक्रमा मार्ग शहर के बाहरी हिस्से में है।

इस परिक्रमा मार्ग से पूरे वृंदावन की परिक्रमा की जा सकती है। परिक्रमा मार्ग इस्‍कॉन मंदिर से प्रारंभ होता है। परिक्रमा करने में तीन से चार घंटे का समय लगता है। परिक्रमा मार्ग 10 कि.मी. का है। परिक्रमा मार्ग मे काफी सारे दर्शनीय स्थल पड़ते है। इन दर्शनीय स्‍थलों में प्रमुख है, कालिया घाट, मदन मोहन मंदिर, ईमली ताल, श्रृंगार वट, केसरी घाट। वैसे तो परिक्रमा पूरे महीने चलती है परन्तु एकादशी के दिन परिक्रमा करने का विशेष महत्व है।

क्या देखें
निधि वन
यह सेवा कुंज की तरह का ही एक बगीचा है। नृत्य लीला और रास लीला के बाद राधा-कृष्ण ने यहां पर विश्राम किया था। यहां पर रंग महल है, जिसे राधा-कृष्ण का शयन कक्ष कहा जाता है। मान्यता है अभी भी राधा-कृष्ण यहां पर आकर विश्राम करते है। प्रत्येक रात्रि को यहां पर राधा-कृष्ण के लिए सेज सजाई जाती है। यहां पर राधा जी के श्रृंगार का सामान, चार लड्डू और दो दांतुन रखे जाते है। सुबह के वक्त जब पुजारी मंदिर के कपाट खोलते है, तो श्रृंगार का सामान इस्तेमाल किया हुआ, लड्डू फूटे हुए तथा दांतुन किया हुआ मिलता है।

निधि का अर्थ होता है वह स्थान जहां पर आमूल्य रत्न पाये जाते है। निधिवन के अन्दर ही विशाखा कुण्ड है। जिसे भगवान कृष्ण ने अपनी मुरली से खोदकर राधाजी कि सखी विशाखा के लिए बनाया था। कहा जाता है कि रास लीला करते - करते जब विशाखा को प्यास लगी तो उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा हमे पानी चाहिए। तब उन्ही के अनुरोध पर भगवान कृष्ण ने इसका निर्माण किया।

निधि वन के मुख्य द्वार के पास ही स्वामी हरिदास जी की समाधि है। उन्ही ने अपनी साधना के फलस्वरूप बांके बिहारी जी की मूर्ति प्रकट कराई थी। स्वामी हरिदास का जन्म 1535 मे हुआ था। उनके पिता का विवाह रायपुर गांव मे एक ब्राहमण की बेटी के साथ हुआ था, जो कि वृंदावन के पास है।

तानसेन राजा अकबर के दरबार मे संगीत वादक थे। वह स्वामी हरिदास जी के पसंदीदा शिष्य थे। एक समय की बात है स्वामी हरिदास जी यमुना किनारे भजन गा रहे थे। उसी समय अकबर वहां से गुजरे उन्हे हरिदास जी का भजन काफी पसंद आया और वह उनके दिल को छू गया। उन्होंने अपनी नाव को रोका और हरिदास जी से कहा, वह उनके यहां पर संगीत अध्यापक के रूप मे कार्य करें। अकबर के अनुरोध पर उन्होंने तानसेन को अपना शिष्य बना लिया।


पूरे निधि वन में तुलसी के वृक्ष पाये जाते है। यहां की मिट्टी को श्रद्धालु अपने साथ प्रसाद के रूप में ले जाते है। मान्यता है कि अभी भी भगवान कृष्ण प्रत्येक रात्रि को गोपियो के साथ यहां पर रास रचाते है। यहां पर आने वाले श्रद्धालु की संख्या काफी अधिक है।

रमण रेती
रमण रेती वह स्थान है जहां पर भगवान कृष्ण और बलराम अपने सखाओं के साथ गाय चराने आया करते थे। यह भगवान कृष्ण और राधा की मिलन स्थली भी था। द्वारका जाने से पूर्व भगवान प्रत्येक रात्रि को यहां पर राधा से मिला करते थे। रमण रेती कुछ कि.मी. मे ही फैला हुआ है। कृष्ण-बलराम मंदिर भी रमण रेती में ही स्थित है।

कृष्ण-बलराम वृक्ष
रमण रेती में ही दो वृक्ष है जिन्हे कृष्ण-बलराम वृक्ष के नाम से जाना जाता है। परिक्रमा मार्ग में ही यह वृक्ष है। यह इस्कॉन मंदिर से 6 मिनट दूरी पर स्थित है। ये वृक्ष आपस में जुड़े हुए है, जिसमें एक का रंग काला और दूसरे का रंग सफेद है। काला वृक्ष भगवान कृष्ण को दर्शाता है जबकि सफेद वृक्ष बलराम को दर्शाता है।

यमुना नदी
यमुना नदी भारत की पवित्र नदियों में से एक है। यह नदी वृंदावन से होकर बहती है। यमुना की उदगम स्थली यमनोत्री है। जो उत्तरी हिमालय में स्थित है। यहां से यमुना नीचे आकर ब्रज मण्डल में प्रवेश करती है। यमुना नदी पर बना हुआ प्रत्येक घाट भगवान कृष्ण की लीलाओं से संबंधित है। यमुना प्रत्यक्ष रूप से भगवान कृष्ण से संबंधित है। जन्म से लेकर किशोरावस्था तक भगवान श्रीकृष्ण ने अधिकतर लीलायें यमुना किनारे ही रची थी। श्रीकृष्ण के जन्म के समय उनकी रक्षा के लिए वसुदेव कृष्ण को गोकुल ले जा रहे थे तब यमुना तेज गति से बह रही थी। परन्तु श्रीकृष्ण के चरण स्‍पर्श कर वह शांत हो गई और सामान्य गति में बहने लगी। यमुना में भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ स्नान किया करते थे। वह अपनी गायो को भी यमुना में स्नान कराया करते थे। जिस यमुना घाट पर भगवान कृष्ण ने गोपियों के वस्‍त्र चुराये थे वह चीर घाट नाम से प्रसिद्ध है।

यमुना में स्नान का महत्व
यमुना में एक स्नान गंगा के सौ स्नानो के बराबर है। इसके पीछे यह कारण है गंगा केवल भगवान विष्णु के चरणो से निकलती है। पर भगवान कृष्ण तो अपने अवतार काल में यमुना में अपने सखाओ के साथ स्नान ही नही किया करते थे बल्कि अपनी गायो को भी स्नान कराया करते थे। स्‍नान के लिए केसरी घाट महत्वपूर्ण है, भगवान कृष्ण ने केसरी नामक असुर को मारने के पश्चयात यहां पर स्नान किया था,केसरी घाट पर यमुना का प्रवाह काफी अच्छा है। वारह पुराण के अनुसार गंगा और यमुना के जल में कोई अन्तर नही है, दोनो ही एक समान है। यमुना में स्नान से भक्तो को भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। यमुना में स्नान से व्यक्ति की कष्ट बधाये दूर हो जाती है। कृष्ण भगवान के चरण कमल यमुना में पांच हजार वर्ष पडे थे।

यमुना मे विशेष स्नान
यमुना सूर्य की पुत्री है और यमराज की बहन है। यमुना को यमराज का वरदान है, जो व्यक्ति भईया दूज के दिन यमुना में स्नान करता है उसे मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसलिए भईया दूज के दिन यमुना में विशेष स्नान होता है जिसमे भारी संख्या मे श्रद्धालु इस स्नान में शामिल होते है। वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा और एकादशी को स्नान होता रहता है।

वृंदावन में मनाये जाने वाले प्रमुख त्यौहार
होली
वैसे तो वृंदावन में सभी त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं, परन्तु होली और जन्माष्टमी अधिक धूमधाम से मनाये जाते है। होली का त्यौहार फल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का त्यौहार पूरे ब्रज में 45 दिनो तक मनाया जाता है। पर मुख्य उत्सव होली के दिन ही होता है। ब्रजवासी एक-दूसरे पर गुलाल लगाते है। वैसे तो होली पूरे उत्तर भारत मे मनाई जाती है। पर ब्रज की होली अनूठी होती है। यहां पर लठ मार होली होती है। ब्रजवासी नाच गा कर होली मनाते है।


जन्माष्टमी
जन्माष्टमी वृंदावन का मुख्य त्यौहार है। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण भगवान का जन्म हुआ था। यह त्यौहार वृंदावन में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन वृंदावन में कृष्ण लीला के जरिए भगवान श्रीकृष्ण को याद किया जाता है। इन लीलाओं में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर किशोर अवस्था तक की लीलाओं का मंचन किया जाता है। सभी मंदिरों में भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मध्य रात्रि को 12 बजे मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने मध्य रात्रि को रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था इसी कारण यह उत्सव रात्रि में मनाया जाता है। मंगल गान और बधाई गीतो के साथ मंदिरों के कपाट रात्रि 12 बजे खोले जाते है।

बांके बिहारी जी का प्रकटोउत्सव
बांके बिहारी जी का प्रकटोउत्सव माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इसी दिन बांके बिहारी जी की मूर्ति निधि वन से प्रकट हुई थी। इस दिन बांके बिहारी मंदिर में फूलो का बंगला लगाया जाता है। बांके बिहारी मंदिर में मंगल गान व नृत्य किया जाता है। बांके बिहारी जी की मूर्ति को प्रकट कराने का श्रेय स्वामी हरिदास जी को जाता है।

वृंदावन में बसंत पंचमी, शिव रात्रि, गुरु पूर्णिमा, अक्षय तृतीया, राम नवमी, राधाष्‍टमी, हरियाली तीज, दीपावली तथा गोर्वधन त्‍यौहार भी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

वृंदावन के प्रमुख मंदिर
वृंदावन में लगभग साढे पांच हजार मंदिर है। परन्तु बांके बिहारी मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 1864 में हुआ था। इस मंदिर में प्रार्थना करने के लिए एक विशाल आंगन है। यहीं पर भक्त बिहारी जी के दर्शन करते है। मंदिर के अंदर बांके बिहारी जी की मूर्ति काफी सुंदर और मनमोहक है। बांके बिहारी जी की मूर्ति प्रकृतिक है, जोकि निधिवन से प्रकट हुई थी। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक है। मंदिर के अंदर प्रत्येक दिन फूल सज्‍जा की जाती है। जिसे देख यहां आने वाले श्रद्धालु कृतार्थ हो जाते है।


वृंदावन का मौसम
वृंदावन गर्मियो के दिनो मे गर्म रहता है। सामान्य तौर पर गर्मियो का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है। जून से सितम्बर के महीनों में यहा पर अच्छी वर्षा होती है। नवम्बर से मार्च के महीनो में यहा पर सर्दी पड़ती है।

कब जाए
वृंदावन जाने का उपयुक्त समय अगस्त से मार्च तक का है। इस समय यहां का मौसम ठीक होता है। यदि आप अगस्त से मार्च के बीच में जाते है तो वृंदावन के उत्सवों का आंनद उठा सकते है।

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