अनाचार की अंगीठी में उबल पड़ा आक्रोश
जैसलमेर
श्रीकृष्ण युवा साहित्य संस्थान जैसलमेर के बैनर तले आयोजित काव्य संगोष्ठी को संबोधित करते हुए साहित्कार व गीत विशेषांक के संपादक किसन दाधीच ने कहा कि तानसेन के गीतों में स्वर और कविता के संयोग से ही दीप प्रज्जवलित हुए थे। कवि की विता से मेघ उमड़ आते हैं। यह सभी बातें शब्दों के चमत्कार से ही प्रेरित है। कवि की कृति पर नहीं कवि पर शोध करना आवश्यक है।
दाधीच ने सरस्वती वंदना के रुप में गा सकूं मैं जिंदगी को, मां मुझे ऐसी अगन दे सस्वर वाचन किया। राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ जोधपुर के अध्यक्ष सत्यदेव सवितेंद्र ने गुरु पूर्णिमा की महत्ता बताते हुए कल हम फिर आएंगे गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिंदी राजस्थानी के साहित्यकार आईदानसिंह भाटी ने राजस्थानी काव्य परंपरा व शैली पर बात करते हुए नानी-दादी रा आंगणिये कविता पढ़ कर सुनाई। संस्थान के मंत्री उपेंद्र आचार्य ने संस्थान की गतिविधियों का परिचय दिया।
वयोवृद्ध साहित्यकार व शिक्षाविद् बालकृष्ण जोशी ने परशुराम वंदना का सस्वर वाचन कर माहौल को संगीतमय बना दिया। संस्थान के अध्यक्ष व गजलकार नरेन्द्र वासू ने प्रेम के शाश्वत सत्य की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए मेरी बर्बादियों के वो बड़े किस्से सुनाते हैं, मगर मैं जानता हूं वो मुझको आजमाते है। इत्यादि मुक्तक पेश किए। रचनाकार भोजराज वैष्णव ने अनाचार की अंगीठी पर उबल पड़ा आक्रोश व जसवंत सिंह राजपुरोहित ने अपनी खामोशियां पर इतनी गुंजा ईश तो रहने दो गजल पढ़कर मौहाल को गुंजायमान किया। अशोक व्यास ने मैं कभी न दूंगा पुष्प तुझे, व भोपालसिंह ने नाथ नरेन्द्र आया रे, राग भैरवी में गीत प्रस्तुत किए। अध्यक्षीय उद्बोधन में दीनदयाल ओझा ने कहा कि नाद ब्रह्म व शब्द ब्रह्म की साधना से काव्य में चमत्कार प्रकट होता है। काव्य के साधारणीकरण से कवि की दिग्विजय हो जाती है। शब्दों के माध्मय से दृश्य चित्र साकार होते है। उन्होंने मुझको जग के दिव्यकरों ने गिरते-गिरते थाम लिया है। व कहूं किसे सद्बात गीत, कविता प्रस्तुत की। काव्य गोष्ठी में निरंजन पुरोहित, मधु सुदन बिस्सा, नवलकिशोर व्यास, विजय बल्लाणी ने भी विचार प्रकट किए। कार्यक्रम का संचालन अजय पुरोहित ने तथा आभार सुनिल व्यास ने प्रकट किया।
जैसलमेर
श्रीकृष्ण युवा साहित्य संस्थान जैसलमेर के बैनर तले आयोजित काव्य संगोष्ठी को संबोधित करते हुए साहित्कार व गीत विशेषांक के संपादक किसन दाधीच ने कहा कि तानसेन के गीतों में स्वर और कविता के संयोग से ही दीप प्रज्जवलित हुए थे। कवि की विता से मेघ उमड़ आते हैं। यह सभी बातें शब्दों के चमत्कार से ही प्रेरित है। कवि की कृति पर नहीं कवि पर शोध करना आवश्यक है।
दाधीच ने सरस्वती वंदना के रुप में गा सकूं मैं जिंदगी को, मां मुझे ऐसी अगन दे सस्वर वाचन किया। राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ जोधपुर के अध्यक्ष सत्यदेव सवितेंद्र ने गुरु पूर्णिमा की महत्ता बताते हुए कल हम फिर आएंगे गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिंदी राजस्थानी के साहित्यकार आईदानसिंह भाटी ने राजस्थानी काव्य परंपरा व शैली पर बात करते हुए नानी-दादी रा आंगणिये कविता पढ़ कर सुनाई। संस्थान के मंत्री उपेंद्र आचार्य ने संस्थान की गतिविधियों का परिचय दिया।
वयोवृद्ध साहित्यकार व शिक्षाविद् बालकृष्ण जोशी ने परशुराम वंदना का सस्वर वाचन कर माहौल को संगीतमय बना दिया। संस्थान के अध्यक्ष व गजलकार नरेन्द्र वासू ने प्रेम के शाश्वत सत्य की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए मेरी बर्बादियों के वो बड़े किस्से सुनाते हैं, मगर मैं जानता हूं वो मुझको आजमाते है। इत्यादि मुक्तक पेश किए। रचनाकार भोजराज वैष्णव ने अनाचार की अंगीठी पर उबल पड़ा आक्रोश व जसवंत सिंह राजपुरोहित ने अपनी खामोशियां पर इतनी गुंजा ईश तो रहने दो गजल पढ़कर मौहाल को गुंजायमान किया। अशोक व्यास ने मैं कभी न दूंगा पुष्प तुझे, व भोपालसिंह ने नाथ नरेन्द्र आया रे, राग भैरवी में गीत प्रस्तुत किए। अध्यक्षीय उद्बोधन में दीनदयाल ओझा ने कहा कि नाद ब्रह्म व शब्द ब्रह्म की साधना से काव्य में चमत्कार प्रकट होता है। काव्य के साधारणीकरण से कवि की दिग्विजय हो जाती है। शब्दों के माध्मय से दृश्य चित्र साकार होते है। उन्होंने मुझको जग के दिव्यकरों ने गिरते-गिरते थाम लिया है। व कहूं किसे सद्बात गीत, कविता प्रस्तुत की। काव्य गोष्ठी में निरंजन पुरोहित, मधु सुदन बिस्सा, नवलकिशोर व्यास, विजय बल्लाणी ने भी विचार प्रकट किए। कार्यक्रम का संचालन अजय पुरोहित ने तथा आभार सुनिल व्यास ने प्रकट किया।
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