मौत के बाद कुंआरे के बेटा?
बाड़मेर। जीवन भर अविवाहित रहे एक व्यक्ति की मौत के बाद उसके बेटे बनकर जमीन हड़पने का मामला उजागर हुआ है। गोदपुत्र बनकर नामांतरकरण में जमीन अपने नाम करवा ली और इसके बेचान की भी तैयारी हो गई। गांव में जब यह बात पता चली तो राज खुला और अब पटवारी से लेकर उपखण्ड अधिकारी तक ने यह सिफारिश कर दी है कि कूटरचित दस्तावेज और राजस्व कार्मिकों से सांठगांठ कर यह गड़बड़झाला किया गया। यह जमीन सरकारी खाते में दर्ज करने के योग्य है। जमीन के बढ़ते दामों ने लोगोे की नीयत को बिगाड़ दिया है।
ऎसा ही एक मामला पचपदरा तहसील के सराणा गांव में सामने आया है, जिसमें फर्जी पुत्र बनकर जमीन हड़पने की साजिश रची। सराणा गांव का शंकर वल्द चतरींग पुरोहित जीवन पर्यन्त अविवाहित रहा। बेऔलाद फौत हुए इस व्यक्ति ने किसी को भी गोद नहीं लिया। शंकर के नेत्रहीन माता इमरती बाई थी, जो अपने भाइयों के साथ रहती थी। उसकी भी मृत्यु हो गई। शंकर के नाम सराणा में 72 बीघा एवं छह बिस्वा जमीन थी।
शंकर की फौतगी के बाद नियमानुसार यह जमीन सरकारी खाते में दर्ज होनी थी, लेकिन यह जमीन जबरा ऊर्फ जबरसिंह पुत्र कोजाजी के नाम दर्ज हो गई है। जिन्होंने खुद को शंकर का गोदपुत्र बताते हुए हकदार बताया। उन्होंने राजस्व कारिंदों से मिलीभगत कर नामांतरण करण अपने नाम करवा लिया।
ऎसे चला खेल
शंकर की मृत्यु होने के साथ ही यह जमीन खालसा होने की स्थिति में आ गई। कीमती जमीन होने के कारण इन लोगों ने कूटरचित दस्तावेज तैयार कर गोदनामे के आधार पर नामांतरण भरवा लिया जबकि गोदनामे का न तो रजिस्ट्रीकरण हुआ और न ही प्रमाणित। जमीन बेचान की जानकारी आने पर शिकायत हुई और मामला सामने आया।
जांच में माना दोषी
उप तहसीलदार जसोल की ओर से इस मामले में जांच करवाई गई। जांच में पाया गया कि कूटरचित दस्तावे के आधार पर यह सारा खेल हुआ है। उप तहसीलदार ने जांच रिपोर्ट में फौतगी नामांकरण को खारिज करने एवं राजस्थान काश्त अधिनियम 1955 की धारा 61 के तहत जमीन को खालसा घोषित करने की सिफारिश करते हुए इसे तहसीलदार पचपदरा के क्षेत्राधिकार का मामला बताया।
गलत हुआ है
इस मामले की जांच करवाई गई है। शंकर के कोई गोदपुत्र नहीं है। नामांतरण करण गलत दर्ज हुआ है। इसे खारिज करने की सिफारिश की गई है।
- दलपतसिंह, नायब तहसीलदार जसोल
बाड़मेर। जीवन भर अविवाहित रहे एक व्यक्ति की मौत के बाद उसके बेटे बनकर जमीन हड़पने का मामला उजागर हुआ है। गोदपुत्र बनकर नामांतरकरण में जमीन अपने नाम करवा ली और इसके बेचान की भी तैयारी हो गई। गांव में जब यह बात पता चली तो राज खुला और अब पटवारी से लेकर उपखण्ड अधिकारी तक ने यह सिफारिश कर दी है कि कूटरचित दस्तावेज और राजस्व कार्मिकों से सांठगांठ कर यह गड़बड़झाला किया गया। यह जमीन सरकारी खाते में दर्ज करने के योग्य है। जमीन के बढ़ते दामों ने लोगोे की नीयत को बिगाड़ दिया है।
ऎसा ही एक मामला पचपदरा तहसील के सराणा गांव में सामने आया है, जिसमें फर्जी पुत्र बनकर जमीन हड़पने की साजिश रची। सराणा गांव का शंकर वल्द चतरींग पुरोहित जीवन पर्यन्त अविवाहित रहा। बेऔलाद फौत हुए इस व्यक्ति ने किसी को भी गोद नहीं लिया। शंकर के नेत्रहीन माता इमरती बाई थी, जो अपने भाइयों के साथ रहती थी। उसकी भी मृत्यु हो गई। शंकर के नाम सराणा में 72 बीघा एवं छह बिस्वा जमीन थी।
शंकर की फौतगी के बाद नियमानुसार यह जमीन सरकारी खाते में दर्ज होनी थी, लेकिन यह जमीन जबरा ऊर्फ जबरसिंह पुत्र कोजाजी के नाम दर्ज हो गई है। जिन्होंने खुद को शंकर का गोदपुत्र बताते हुए हकदार बताया। उन्होंने राजस्व कारिंदों से मिलीभगत कर नामांतरण करण अपने नाम करवा लिया।
ऎसे चला खेल
शंकर की मृत्यु होने के साथ ही यह जमीन खालसा होने की स्थिति में आ गई। कीमती जमीन होने के कारण इन लोगों ने कूटरचित दस्तावेज तैयार कर गोदनामे के आधार पर नामांतरण भरवा लिया जबकि गोदनामे का न तो रजिस्ट्रीकरण हुआ और न ही प्रमाणित। जमीन बेचान की जानकारी आने पर शिकायत हुई और मामला सामने आया।
जांच में माना दोषी
उप तहसीलदार जसोल की ओर से इस मामले में जांच करवाई गई। जांच में पाया गया कि कूटरचित दस्तावे के आधार पर यह सारा खेल हुआ है। उप तहसीलदार ने जांच रिपोर्ट में फौतगी नामांकरण को खारिज करने एवं राजस्थान काश्त अधिनियम 1955 की धारा 61 के तहत जमीन को खालसा घोषित करने की सिफारिश करते हुए इसे तहसीलदार पचपदरा के क्षेत्राधिकार का मामला बताया।
गलत हुआ है
इस मामले की जांच करवाई गई है। शंकर के कोई गोदपुत्र नहीं है। नामांतरण करण गलत दर्ज हुआ है। इसे खारिज करने की सिफारिश की गई है।
- दलपतसिंह, नायब तहसीलदार जसोल
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