कानपुर. देश की आजादी में अहम रोल अदा करने वालींस्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मी सहगल का कानपुर के एक अस्पताल में सोमवार को निधन हो गया।
उनका इलाज करने वाले डॉक्टर वीके जौहरी ने बताया उन्हें 19 जुलाई को काफी तेज दिल का दौरा पड़ा था। तब से ही उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। आजादी की लड़ाई में नेताजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वालीं लक्ष्मी सहगल को कानपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें पहले आईसीयू में रखा गया, लेकिन बाद में हालत और खराब होने पर शुक्रवार रात को वेन्टीलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया था।
आजाद हिन्द फौज में कर्नल और 'आजाद हिन्द सरकार' में महिला मामलों की मंत्री रह चुकीं लक्ष्मी पेशे से डॉक्टर थीं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने तब सुर्खियां बटोरी थीं, जब उन्हें सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज की 'रानी झांसी रेजिमेंट' की कमांडर बनाया था।
1914 में परंपरावादी तमिल परिवार में जन्मी डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की डिग्री ली। इसके बाद वह सिंगापुर चली गई थीं। पिछले कई सालों से वह कानपुर के अपने घर में बीमारों का इलाज करती रही थीं। उन्होंने अपना पूरा शरीर भी एक अस्पताल को दान कर दिया था। लक्ष्मी सहगल को भारत सरकार ने 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। कैप्टन सहगल ने 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ वामपंथी दलों के उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ा था।
उनका इलाज करने वाले डॉक्टर वीके जौहरी ने बताया उन्हें 19 जुलाई को काफी तेज दिल का दौरा पड़ा था। तब से ही उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। आजादी की लड़ाई में नेताजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वालीं लक्ष्मी सहगल को कानपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें पहले आईसीयू में रखा गया, लेकिन बाद में हालत और खराब होने पर शुक्रवार रात को वेन्टीलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया था।
आजाद हिन्द फौज में कर्नल और 'आजाद हिन्द सरकार' में महिला मामलों की मंत्री रह चुकीं लक्ष्मी पेशे से डॉक्टर थीं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने तब सुर्खियां बटोरी थीं, जब उन्हें सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज की 'रानी झांसी रेजिमेंट' की कमांडर बनाया था।
1914 में परंपरावादी तमिल परिवार में जन्मी डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की डिग्री ली। इसके बाद वह सिंगापुर चली गई थीं। पिछले कई सालों से वह कानपुर के अपने घर में बीमारों का इलाज करती रही थीं। उन्होंने अपना पूरा शरीर भी एक अस्पताल को दान कर दिया था। लक्ष्मी सहगल को भारत सरकार ने 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। कैप्टन सहगल ने 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ वामपंथी दलों के उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ा था।
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