दाने-दाने को मोहताज लोकगायिका
रायपुर। लोककला व लोक कलाकारों के संरक्षण के लिए करोड़ों रूपए खर्च करने वाले छत्तीसगढ़ में लोक कलाकारों के सामने खाने के लाले पड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ी लोकसंस्कृति को देशभर में प्रसिद्घि दिलाने वाली 68 वर्षीय लोक गायिका किस्मतबाई देवार की किस्मत क्या रूठी, सरकार भी इस कलाकार से रूठी हुई है।
"चौरा मा गोंदा रसिया" लोक गीत से प्रसिद्ध किस्मत की मारी किस्मतबाई लकवा से पीडित हैं और इस वजह से बोल और चल नहीं पातीं। लिहाजा, उनकी बड़ी बेटी दुर्ग के रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर मां का भरण-पोषण और इलाज करा रही है। प्रदेश के लोक कलाकारों ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को किस्मतबाई की इस स्थिति से अवगत कराया था। उनकी खस्ता हालत को देखते हुए मुख्यमंत्री ने फरवरी-2012 में उन्हें 40 हजार रूपए की सहायता राशि मंजूर की। साथ ही संस्कृति विभाग ने भी प्रतिमाह डेढ़ हजार रूपए पेंशन देने की घोषणा की। लेकिन आज चार माह बाद भी किस्मतबाई को न तो सहायता राशि मिली और न ही पेंशन। किस्मतबाई देवार ने लोकगायिकी के माध्यम से देशभर में छत्तीसगढ़ को पहचान दी।
उन्होंने विश्वविख्यात रंगनिदेशक स्व. हबीब तनवीर के साथ कई नाटकों में लोकगायन किया व प्रस्तुतियां दीं। वही किस्मतबाई इन दिनों दुर्ग की देवार बस्ती में दुर्दिन काट रही है। उनकी चार बेटियां जतन, रतन, कीर्तन और सबसे छोटी विर्तन है। बड़ी बेटी जतनबाई देवार बस्ती व रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर अपनी मां का पेट भरती है।
संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाई पार्टी : छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए किस्मतबाई ने 70 के दशक में "आदर्श देवार पार्टी" की शुरूआत की। पार्टी के माध्यम से रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर, कांकेर के अलावा कई विभिन्न प्रांतों में प्रस्तुति देती थी। पार्टी के शुरूआती दिनों में गिने-चुने कलाकार हुआ करते थे, लेकिन कुछ महीनों बाद पार्टी में कलाकारों का आना शुरू हो गया। हालत खराब होने के बाद संस्था बंद हो गई।
सरकार क्यों करती है घोषणा? : किस्मतबाई की पेंशन के सम्बंध में संस्कृति विभाग के अधिकारियों से कलाकार बात करने के लिए जाते हैं, तो विभागीय अधिकारी बात करने से कतराते हैं। लोकगायिका रमादत्त जोशी का कहना है कि घोषणा के बाद भी सरकार पैसा नहीं दे पाती, तो घोषण ही क्यों करती है? किस्मतबाई ने अपना पूरा जीवन लोककला व लोकसंस्कृति के लिए समर्पित कर दिया, लेकिन आज जब किस्मतबाई को लोगों की जरूरत है, तो कोई भी साथ चलने को तैयार नहीं है।
ये गाने हैं चर्चित
चौरा मा गोंदा रसिया, मोर बारी मा पताल रे...
चल सभी जुर मिल कमाबो रे...
करमा सुने ला चले आवे गा, करमा तहूं ला मिला लेबो...
मैना बोले सुवाना के साथ
रे मैना बोले...
किस्तमबाई प्रसिद्ध लोकगायिका हैं। उनकी ओर से आवेदन आता है, तो जरूर मदद की जाएगी। बात पेंशन की करें, तो विभाग की ओर से कलाकारों को हर महीने 1500 रूपए पेंशन दी जाती है। आवेदन आने पर किस्मतबाई को मुख्यमंत्री सहायता कोष या अन्य किसी मद से सहायता राशि दी जाएगी।
बृजमोहन अग्रवाल,
संस्कृति मंत्री, छत्तीसगढ़
पेट भरने के लिए मांगती हूं भीख
किस्मतबाई की बड़ी बेटी जतनबाई ने बताया कि घर में न राशन है और न ही मां के इलाज कराने के लिए रूपए। सरकार ने पैसा देने की घोषणा तो की थी, लेकिन चार माह बीतने के बाद भी हाथ में कुछ नहीं आया है। रेलवे स्टेशन व देवार बस्ती में भीख मांगने के बाद बड़ी मुश्किल से सिर्फ एक समय का पेट भरता है।
रायपुर। लोककला व लोक कलाकारों के संरक्षण के लिए करोड़ों रूपए खर्च करने वाले छत्तीसगढ़ में लोक कलाकारों के सामने खाने के लाले पड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ी लोकसंस्कृति को देशभर में प्रसिद्घि दिलाने वाली 68 वर्षीय लोक गायिका किस्मतबाई देवार की किस्मत क्या रूठी, सरकार भी इस कलाकार से रूठी हुई है।
"चौरा मा गोंदा रसिया" लोक गीत से प्रसिद्ध किस्मत की मारी किस्मतबाई लकवा से पीडित हैं और इस वजह से बोल और चल नहीं पातीं। लिहाजा, उनकी बड़ी बेटी दुर्ग के रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर मां का भरण-पोषण और इलाज करा रही है। प्रदेश के लोक कलाकारों ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को किस्मतबाई की इस स्थिति से अवगत कराया था। उनकी खस्ता हालत को देखते हुए मुख्यमंत्री ने फरवरी-2012 में उन्हें 40 हजार रूपए की सहायता राशि मंजूर की। साथ ही संस्कृति विभाग ने भी प्रतिमाह डेढ़ हजार रूपए पेंशन देने की घोषणा की। लेकिन आज चार माह बाद भी किस्मतबाई को न तो सहायता राशि मिली और न ही पेंशन। किस्मतबाई देवार ने लोकगायिकी के माध्यम से देशभर में छत्तीसगढ़ को पहचान दी।
उन्होंने विश्वविख्यात रंगनिदेशक स्व. हबीब तनवीर के साथ कई नाटकों में लोकगायन किया व प्रस्तुतियां दीं। वही किस्मतबाई इन दिनों दुर्ग की देवार बस्ती में दुर्दिन काट रही है। उनकी चार बेटियां जतन, रतन, कीर्तन और सबसे छोटी विर्तन है। बड़ी बेटी जतनबाई देवार बस्ती व रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर अपनी मां का पेट भरती है।
संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाई पार्टी : छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए किस्मतबाई ने 70 के दशक में "आदर्श देवार पार्टी" की शुरूआत की। पार्टी के माध्यम से रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर, कांकेर के अलावा कई विभिन्न प्रांतों में प्रस्तुति देती थी। पार्टी के शुरूआती दिनों में गिने-चुने कलाकार हुआ करते थे, लेकिन कुछ महीनों बाद पार्टी में कलाकारों का आना शुरू हो गया। हालत खराब होने के बाद संस्था बंद हो गई।
सरकार क्यों करती है घोषणा? : किस्मतबाई की पेंशन के सम्बंध में संस्कृति विभाग के अधिकारियों से कलाकार बात करने के लिए जाते हैं, तो विभागीय अधिकारी बात करने से कतराते हैं। लोकगायिका रमादत्त जोशी का कहना है कि घोषणा के बाद भी सरकार पैसा नहीं दे पाती, तो घोषण ही क्यों करती है? किस्मतबाई ने अपना पूरा जीवन लोककला व लोकसंस्कृति के लिए समर्पित कर दिया, लेकिन आज जब किस्मतबाई को लोगों की जरूरत है, तो कोई भी साथ चलने को तैयार नहीं है।
ये गाने हैं चर्चित
चौरा मा गोंदा रसिया, मोर बारी मा पताल रे...
चल सभी जुर मिल कमाबो रे...
करमा सुने ला चले आवे गा, करमा तहूं ला मिला लेबो...
मैना बोले सुवाना के साथ
रे मैना बोले...
किस्तमबाई प्रसिद्ध लोकगायिका हैं। उनकी ओर से आवेदन आता है, तो जरूर मदद की जाएगी। बात पेंशन की करें, तो विभाग की ओर से कलाकारों को हर महीने 1500 रूपए पेंशन दी जाती है। आवेदन आने पर किस्मतबाई को मुख्यमंत्री सहायता कोष या अन्य किसी मद से सहायता राशि दी जाएगी।
बृजमोहन अग्रवाल,
संस्कृति मंत्री, छत्तीसगढ़
पेट भरने के लिए मांगती हूं भीख
किस्मतबाई की बड़ी बेटी जतनबाई ने बताया कि घर में न राशन है और न ही मां के इलाज कराने के लिए रूपए। सरकार ने पैसा देने की घोषणा तो की थी, लेकिन चार माह बीतने के बाद भी हाथ में कुछ नहीं आया है। रेलवे स्टेशन व देवार बस्ती में भीख मांगने के बाद बड़ी मुश्किल से सिर्फ एक समय का पेट भरता है।
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