जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने छह वर्ष पुराने एक सामूहिक ज्यादती के मामले में दो प्रशासनिक अधिकारियों को जमानत देने से इनकार कर दिया है। गौरतलब है कि दोनों अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत के 26 जुलाई 2011 को खारिज होने के बाद पहले सेशन कोर्ट व बाद में हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन पेश किया था।
यह आदेश अवकाश कालीन न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने प्रार्थी आरोपियों बामणवास सवाईमाधोपुर निवासी बच्चूसिंह मीणा व मडी सवाईमाधोपुर निवासी ओंकारसिंह की ओर से पेश अग्रिम जमानत आवेदन की सुनवाई में दिए।
अदालत में सरकारी अधिवक्ता महीपालसिंह विश्नोई ने बताया कि हनुमानगढ़ पुलिस थाना में 26 अप्रैल 2006 को सुनीता देवी ने एक रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा कि वह एक विधवा असहाय महिला है। 11 माह पूर्व वह हनुमानगढ़ स्थित डीपीईपी कार्यालय में कार्यालय सहायक के अस्थाई पद पर नियुक्त हुई थी। वहां निदेशक ओंकारसिंह मीणा जानबूझ कर उसकी गलतियां निकालने लगा पूछने पर उसने घर पर आकर जवाब देने का कहा। उसके घर पर जाने पर अधिकारी ने जबरदस्ती उसके साथ ज्यादती की और किसी से कहने पर नौकरी से निकालने की धमकी दी।
इसके बाद विधवा कोटे में नौकरी लगाने के नाम पर जयपुर साथ ले गया। जहां बच्चूसिंह, गुरूदेव सिंह आदि ने भी उसके साथ ज्यादती की। बाद में हनुमानगढ़ में ये अधिकारी उसके साथ मनमानी करते रहे और अपने मित्रों के पास जाने को भी कहने लगे। इस पर उसने विरोध किया तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में मिली थी अंतरिम जमानत, खारिज होने पर सरेंडर नहीं किया
विश्नोई ने बताया कि पुलिस ने 27 अप्रैल 2006 को इन अधिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए वारंट प्राप्त किए। लेकिन इन अधिकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय से 16 अक्टूबर 2006 को अंतरिम जमानत प्राप्त कर ली। बाद में 26 जुलाई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इनकी अंतरिम जमानत को खारिज कर दिया। लेकिन अधिकारियों ने पुलिस के सामने समर्पण नहीं किया। बाद में इन्होंने फिर से सेशन कोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई। जिसे सेशन कोर्ट ने 20 जून 2012 को खारिज कर दिया। लिहाजा इन अधिकारियों ने हाईकोर्ट की शरण ली।
यह आदेश अवकाश कालीन न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने प्रार्थी आरोपियों बामणवास सवाईमाधोपुर निवासी बच्चूसिंह मीणा व मडी सवाईमाधोपुर निवासी ओंकारसिंह की ओर से पेश अग्रिम जमानत आवेदन की सुनवाई में दिए।
अदालत में सरकारी अधिवक्ता महीपालसिंह विश्नोई ने बताया कि हनुमानगढ़ पुलिस थाना में 26 अप्रैल 2006 को सुनीता देवी ने एक रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा कि वह एक विधवा असहाय महिला है। 11 माह पूर्व वह हनुमानगढ़ स्थित डीपीईपी कार्यालय में कार्यालय सहायक के अस्थाई पद पर नियुक्त हुई थी। वहां निदेशक ओंकारसिंह मीणा जानबूझ कर उसकी गलतियां निकालने लगा पूछने पर उसने घर पर आकर जवाब देने का कहा। उसके घर पर जाने पर अधिकारी ने जबरदस्ती उसके साथ ज्यादती की और किसी से कहने पर नौकरी से निकालने की धमकी दी।
इसके बाद विधवा कोटे में नौकरी लगाने के नाम पर जयपुर साथ ले गया। जहां बच्चूसिंह, गुरूदेव सिंह आदि ने भी उसके साथ ज्यादती की। बाद में हनुमानगढ़ में ये अधिकारी उसके साथ मनमानी करते रहे और अपने मित्रों के पास जाने को भी कहने लगे। इस पर उसने विरोध किया तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में मिली थी अंतरिम जमानत, खारिज होने पर सरेंडर नहीं किया
विश्नोई ने बताया कि पुलिस ने 27 अप्रैल 2006 को इन अधिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए वारंट प्राप्त किए। लेकिन इन अधिकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय से 16 अक्टूबर 2006 को अंतरिम जमानत प्राप्त कर ली। बाद में 26 जुलाई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इनकी अंतरिम जमानत को खारिज कर दिया। लेकिन अधिकारियों ने पुलिस के सामने समर्पण नहीं किया। बाद में इन्होंने फिर से सेशन कोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई। जिसे सेशन कोर्ट ने 20 जून 2012 को खारिज कर दिया। लिहाजा इन अधिकारियों ने हाईकोर्ट की शरण ली।
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