ईसाई की मुस्लिम से शादी,नहीं मिला तलाक
मुंबई। एक ईसाई ने मुस्लिम महिला से हिंदू मैरेज ऎक्ट के तहत शादी कर ली। अब दोनों तलाक लेना चाहते हैं लेकिन अलग-अलग धर्म का होना तलाक में रोड़ा बन गया है। यहां तक कि दोनों की शादी को भी गैर-कानूनी करार दिया गया है। मार्क रेबेलो ने सकीना खान (बदले हुए नाम)से 31 मई 1995 को वैदिक विधि से शादी की थी।
बांद्रा कोर्ट के बाहर शादी करवाने की दुकानों के बहलावे में आकर दोनों वैदिक रीति से शादी के बंधन में बंध गए और बॉम्बे रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरेजज ऎक्ट के तहत उनकी शादी रजिस्टर भी हो गई। 1998 में दोनों ने एक एक बेटी को जन्म दिया। साल 2005 तक सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन धीरे-धीरे दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं और 2008 में दोनों अलग हो गए। बात तलाक तक पहुंची। 2008 में फैमिली कोर्ट ने शादी रद्द करने की मार्क की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि हिंदू मैरेज ऎक्ट के तहत उनकी शादी को लेकर कोई फैसला नहीं किया जा सकता, क्योंकि दोनों गैर-हिंदू हैं।
फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए मार्क ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की लेकिन जस्टिस पीबी मजमूदार ने कहा कि आपने हिंदू मैरेज एक्ट के तहत शादी करने का फैसला कैसे किया? पहले दिन से ही आप दोनों की शादी गैर-कानूनी है। कोर्ट के बाहर शादी की दुकानें भी हैं और तलाक करवाने की भी। कानून की इज्जत करने वाले नागरिकों को ऎसे दलालों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की शादियों के लिए जोड़े को सेप्शल मैरेज ऎक्ट का सहारा लेना चाहिए था।
मुंबई। एक ईसाई ने मुस्लिम महिला से हिंदू मैरेज ऎक्ट के तहत शादी कर ली। अब दोनों तलाक लेना चाहते हैं लेकिन अलग-अलग धर्म का होना तलाक में रोड़ा बन गया है। यहां तक कि दोनों की शादी को भी गैर-कानूनी करार दिया गया है। मार्क रेबेलो ने सकीना खान (बदले हुए नाम)से 31 मई 1995 को वैदिक विधि से शादी की थी।
बांद्रा कोर्ट के बाहर शादी करवाने की दुकानों के बहलावे में आकर दोनों वैदिक रीति से शादी के बंधन में बंध गए और बॉम्बे रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरेजज ऎक्ट के तहत उनकी शादी रजिस्टर भी हो गई। 1998 में दोनों ने एक एक बेटी को जन्म दिया। साल 2005 तक सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन धीरे-धीरे दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं और 2008 में दोनों अलग हो गए। बात तलाक तक पहुंची। 2008 में फैमिली कोर्ट ने शादी रद्द करने की मार्क की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि हिंदू मैरेज ऎक्ट के तहत उनकी शादी को लेकर कोई फैसला नहीं किया जा सकता, क्योंकि दोनों गैर-हिंदू हैं।
फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए मार्क ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की लेकिन जस्टिस पीबी मजमूदार ने कहा कि आपने हिंदू मैरेज एक्ट के तहत शादी करने का फैसला कैसे किया? पहले दिन से ही आप दोनों की शादी गैर-कानूनी है। कोर्ट के बाहर शादी की दुकानें भी हैं और तलाक करवाने की भी। कानून की इज्जत करने वाले नागरिकों को ऎसे दलालों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की शादियों के लिए जोड़े को सेप्शल मैरेज ऎक्ट का सहारा लेना चाहिए था।
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