बुधवार, 16 मई 2012

जैसलमेर में रफी नाईट के सूत्रधार मोहन खाँ

 डॉ. दीपक आचार्य

विश्व पर्यटन मानचित्र पर तेजी से उभर रही जगविख्यात जैसलमेर नगरी स्थापत्य कला, संस्कृति एवं शिल्प सौंदर्य के साथ ही लोक संगीत और कला के क्षेत्र में भी देश-दुनिया में सुविख्यात है। 
यहाँ के लोक कलाकारों ने देश ही नहीं विदेशों में भी अपने परम्परागत थार संगीत की धूम मचा कर अपना नाम रौशन करते हुए जिले का गौरव बढ़ाया है। जैसलमेर के प्रख्यात तबला वादक एवं कत्थक नृत्य लोक कलाकार मोहन खाँ एक ऐसी शख़्सियत हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इन्हें लोकसंगीत, लोकवाद्य के क्षेत्र में प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी शोहरत हासिल हो चुकी है।
लोकसंगीत ही है जीने का सहारा
विपन्न परिवार के जैसलमेर में रफी नाईट के सूत्रधार के लिए लोक संगीत ही उनकी जिन्दगी है जिसके सहारे वे किसी तरह ग्यारह जनों का परिवार चला रहे हैं। निर्धनता के अभिशाप के बावजूद उन्होंने संगीत को साथी बनाया और अपनी ही मस्ती में रमे हुए हैं। पश्चिमी राजस्थान के लोक सांस्कृतिक वैशिष्ट्य के संरक्षण और संवर्द्धन को अपने जीवन का ध्येय बना चुके मोहन खाँ वह हस्ती हैं जिन्होंने जीवन का हर क्षण लोक संगीत जगत को समर्पित कर रखा है। यही कारण है कि संगीतज्ञ और लोक कलाकार के रूप में उनका दूर-दूर तक नाम है।
लोक कलाकार मोहन खाँ पिछले 35 वर्षो से लगातार लोकसंगीत के क्षेत्र में हॉरमोनियम, तबलावादन, कथक, गजल-गायन तथा राजस्थानी नृत्य इत्यादि से जुड़े हुए हैं।
बड़े-बड़े आयोजनों में बिखेरा फन का जादू
सुरसंगम कला केन्द्र जैसलमेर के सचिव मोहन खाँ हर बड़े साँस्कृतिक आयोजन में अपनी अहम् भागीदारी निभा चुके हैं। जगविख्यात मरुमेला, रामदेवरा मेला, गणतंत्र दिवस व स्वाधीनता दिवस समारोह, राजस्थान दिवस समारोह, बाड़मेर जिले का थार महोत्सव, बीकानेर फेस्टीवल, आकाशवाणी केन्द्र के कार्यक्रम हों या नेहरु युवा केन्द्र एवं जन सम्पर्क विभागीय सांस्कृतिक कार्यक्रम। इन सभी समारोहों में उनकी भूमिका अहम् रही है। विशेष कर मोहन खाँ राष्ट्रीय पर्वो पर आयोजित होने वाले संास्कृतिक कार्यक्रमों में विभिन्न विद्यालयी बाल कलाकारों को संगीत का बेहतर प्रशिक्षण प्रदान कर संगीत निर्देशन करने में जिला प्रशासन को सहयोग करने में हमेशा तत्पर रहे हैं। जैसलमेर जिले में राष्ट्रीय समारोहों में उनकी निर्देशन भागीदारी और प्रशिक्षण का उनका 32 साल से रिकार्ड रहा है।
सात समंदर पार तक है मोहन खाँ की गंध
मोहन खाँ का हुनर खुद के लिए बल्कि जमाने भर के लिए है और यही कारण है कि उनकी साँस्कृतिक खूबियों की गंध सात समंदर पार तक भी है। कई विदेशी कलाकारों ने उनके सान्निध्य में रहकर अपने फन को ऊँचाइयां दी हैं।
इनमें जर्मन, फ्रांस, इग्लैण्ड के कलाकारों की संख्या डेढ़ दर्ज से अधिक है। जबकि स्थानीय कला प्रतिभाओं के निखार तथा उन्हें प्रशिक्षित करने में भी मोहन खाँ ने कभी कोई कमी नहीं रखी। एकल और सामूहिक प्रशिक्षणों को जोड़कर 300 से अधिक प्रतिभाओं को वे लोक संगीत के क्षेत्र में हुनरमंद बना चुके हैं। उनके शिष्यों की लम्बी श्रृंखला आज अपने उस्ताद को गौरव प्रदान कर रहे हैं।
लोकवाद्यों के साथ गायकी और नृत्य का प्रशिक्षण
उन शिष्यों की संख्या भी कोई कम नहीं है जिन्होंने लोक कलाकार के रूप में संगीत की दुनिया में अहम मुकाम बनाते हुए लोक गायन और नृत्य से जुड़ी कई प्रतिस्पर्धाओं में बाजी मारी है। उनकी शिष्य परंपरा में युवक और युवतियों साथ ही बच्चे भी शामिल हैं। उनका प्रशिक्षण ख़ास तौर पर लोकवाद्यों तबलावादन, हॉरमोनियम, कत्थक डांस एवं लोकगीत गायन शैली पर केन्द्रित है।
दूर-दूर तक गूंज मोहन के माधुर्य की
स्थानीय से लेकर प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों में मोहन खाँ अपने फन का जादू दिखा चुके हैं। हाल ही अहमदाबाद गुजरात में गुजरात लोककला फाउण्डेशन के तत्वावधान में टैगोर टाऊन हाल में आयोजित लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्होंने अपनी लोक कला की शानदार प्रस्तुति देकर सीमान्त जिले का परचम फहराया है। उन्होंने नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकता, सहारनपुर, विशाखापटनम, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, जम्मू कश्मीर, अहमदाबाद-गुजरात, जोधपुर, बीकानेर, बाडमेर, जयपुर में अपनी अनूठी सांस्कृतिक प्रतिभाओं का परिचय देते हुए खा़सी धाक जमायी है।
सम्मानों और पुरस्कारों से नवाज़ा गया
प्रतिभाशाली लोक कलाकार एवं मशहूर गायक मोहन खाँ को उनकी बेहतरीन प्रस्तुति और लोक कला तथा संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट भागीदारी के लिए विभिन्न अवसरों पर पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है।
जैसलमेर जिला प्रशासन की ओर से गणतंत्र एवं स्वाधीनता दिवस सहित विभिन्न राष्ट्रीय पर्वों और उत्सवों पर, राजस्थान दिवस समारोह, साक्षरता कार्यक्रमों, जैसलमेर स्थापना दिवस, विश्वविख्यात मरु महोत्सव, बाबा रामदेवरा मेला, कनाना मेला, बीकानेर फेस्टीवल, थार महोत्सव बाड़मेर सहित दर्जनों अवसरों पर लोकसंगीत जगत में अपनी उत्कृष्ठ एवं सराहनीय सेवाएँ तथा श्रेष्ठतम प्रस्तुति देने पर मोहन खाँ को पुरस्कार व प्रशंसा-पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया है।
सुरसंगम कला केन्द्र के मोहन खां को प्रेस क्लब नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय सांस्कृतिक कार्यक्रम के अवसर पर विश्व विख्यात बिरजु महाराज के शिष्य लोक कलाकार सुरेश व्यास के साथ संगीत प्रदर्शन करनेे का अवसर मिला, यह उनके लिए बहुत की गौरव की बात है। विगत 1997 में जैसलमेर जिले में साक्षरता कार्यक्रमों के व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार के लिए आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमांें के लिए साक्षरता गीतों की ऑडियो कैसेट ‘आखर हेलो-प्रथम’ का निर्माण करने के उपलक्ष में तत्कालीन जिला कलक्टर सुधांश पंत द्वारा इन्हें प्रशस्ति-पत्र प्रदान कर इनका सम्मानित किया गया।
गीत एवं नाटक प्रभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली एवं जिला प्रशासन जैसलमेर के संयुक्त तत्वावधान में 2005 में स्थानीय शहीद पूनमसिंह स्टेडियम में ‘समरयात्रा’ के बैनर तले आयोजित ’ध्वनि एवं प्रकाश’ कार्यक्रम में उनकी उम्दा प्रस्तुति पर गीत एवं नाटक प्रभाग नई दिल्ली के निदेशक प्रेम मटियानी द्वारा सम्मानित किया गया।
हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने चण्डीगढ़ में आयोजित ग़ज़ल महोत्सव में लोक कलाकार मोहन खाँ को बेहतरीन प्रस्तुति के लिए सम्मानित किया। इसी प्रकार नई दिल्ली स्थिति अमरीकी दूतावास में उन्हें शानदार प्रस्तुति के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। लोक कलाकार मोहन खाँ ने बड़े पर्दे के लिए भी अपना हुनर दर्शाया। उन्होंने म्यूजिक डायरेक्टर गौरीशंकर शर्मा के साथ रहते हुए खजाना, आओ प्यार करें, कोबरा, रुदाली आदि में सांगीतिक वाद्यों पर संगत कर जैसलमेर का गौरव बढ़ाया है।
मोहन खाँ मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीतसिंह, गिटारवादक गोगी एवं सकूर खाँ साहब, जोधपुर जैसी महान हस्तियों के साथ अपनी संगत का कमाल दिखा चुके हैं।
जैसलमेर में रफी नाईट के सूत्रधार
जैसलमेर शहर के युवा प्रेमियों की मांग पर सोनार दुर्ग की तलहटी अखेप्रोल में स्व. मोहम्मद रफी नाईट की शुरुआत का श्रेय मोहन खाँ को ही जाता है। उन्होंने सिने जगत के मशहूर फिल्मी गीतकार रफी साहब के प्रशंसकों के लिए यहां की उभरती हुई युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान कर उन्हें आगे लाने में अहम् भूमिका निभाई है।
जैसलमेर के लिए रफी नाईट अपनी तरह का महत्वपूर्ण आयोजन है जिसमें अहमदाबाद, पाली, जोधपुर, जयपुर, कोटा, अजमेर, नागौर, बीकानेर आदि कई शहरों से आर्केस्ट्रा आर्टिस्टों को यहां बुलाया जाकर उन्हें मंच देकर रफी साहब के चुनींदा फिल्मी नगमे पेश कर स्वर्ण नगरी वासियों का भरपूर मनोरंजन एक उत्सवी परम्परा बन चुका है।
नौनिहालों को दिया नेतृत्व
संगीत प्रशिक्षक के रूप में मोहन खां ने नई पीढ़ी के हुनर को निखारने में अपना विशिष्ट योगदान दिया है। उन्हीं के प्रयासों की बदौलत अखिल भारतीय माहेश्वरी समाज के सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ ही नई दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित नेशनल सांस्कृतिक समारोह में जवाहर नवोदय विद्यालय मोहनगढ़ जिला जैसलमेर के बाल कलाकारों को कुशल नेतृत्व प्रदान कर सांस्कृतिक प्रस्तुतीकरण के लिए प्रथम स्थान अर्जित करवाया। इसके लिए केन्द्रीय मंत्री ने यहां के कलाकारों की भूरि-भूरि प्रशंसा की एवं मोहन खाँ को तहेदिल से धन्यवाद दिया एवं संगीत कला की सराहना की।
हस्तियों के परिवारों को दिया प्रशिक्षण
तबलावादक मोहन खां ऐसे लोकप्रिय एवं सर्वस्पर्शी लोक कलाकार हैं जिनका हर क्षण संगीत और कला के लिए समर्पित रहा है। भारतीय एवं राजस्थान प्रशासनिक एवं पुलिस सेवा के अधिकारियों तथा बड़े अधिकारियों के साथ ही उनके परिवारजनों को लोक संगीत, वादन और नर्तन में दक्ष करने में उनकी भूमिका अविस्मरणीय रही है। अभिजात्य वर्ग के परिवारों में बड़ो से लेकर बच्चों तक को लोकसंगीत, तबला, ढोलक व हॉरमोनियम आदि वाद्यों को बजाने, कत्थक नृत्य, भारतीय एवं राजस्थानी लोक नृत्य इत्यादि का बेहतर प्रशिक्षण कई परिवारों के लिए आज भी यादगार बना हुआ है।
जैसलमेर कार्यकाल के दौरान यहां रहे जिला कलक्टर अशोक जैन, ललित कोठारी, सुधांश पंत, पुरुषोत्तम अग्रवाल, एन.सी.गोयल, एम.के.खन्ना, हेमन्त गेरा, निरंजन आर्य के साथ ही कई आई.ए.एस. अधिकारियों के बच्चों को लोकनृत्यों का प्रशिक्षण प्रदान कर जैसलमेर जिले का नाम रौशन कर मोहन खाँ ने देश-दुनिया मंे अपनी अलग पहचान बनाई है।
जैसलमेर भ्रमण पर आने वाले विशिष्ट महानुभावों, मंत्रियों के आगमन पर सम सैण्ड्यून्स, सर्किट हाऊस, मूमल टूरिस्ट बंगलो तथा खुहड़ी के बालूई लहरदार रेतीले धोेरों में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों मे जिला प्रशासन तथा पर्यटन विभाग को इनका सहयोग हमेशा बना रहता है।
जैसलमेर के नौनिहालों को संगीत एवं नृत्य का प्रशिक्षण देने में मोहन खाँ का कोई जवाब नहीं। पिछले वर्षों में वे 300 से अधिक बच्चों को प्रशिक्षित कर चुके हैं लेकिन अब प्रशिक्षण स्थल के अभाव में एक-दो साल से उनका यह अभियान रुका हुआ है।
प्रशिक्षण स्थल की दरकार
मोहन खाँ बताते हैं कि संगीत के क्षेत्र में रुचिशील बच्चे आज भी संगीत प्रशिक्षण पाने की लालसा में इनके पास जगह की कमी होने के कारण वंचित रहे हैं। मोहन खाँ चाहते हैं कि शहर के बच्चों की रुचि को देखते हुए तथा संगीत जगत की उनकी दीर्घकालीन श्रेष्ठ सेवाओं का मान रखते हुए जैसलमेर में संगीत को सजीव रखने के लिए जिला प्रशासन द्वारा यदि जैसल क्लब अथवा और कहीं पर ही एक बड़ा हॉल उपलब्ध करवा दिया जाए तो ये सुविधापूर्वक लोगों को संगीत प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें तराश सकते हैं।
क्षेत्र में लोक संगीत और नृत्यों को बढ़ावा देने तथा सांगीतिक गतिविधियों के विकास के लिए उन्होंने अपनी एक संस्था सुरसंगम संगीत कला केन्द्र भी बना रखी है जिसके बेनर तले पिछले कई साल से वे साँस्कृतिक गतिविधियों का संचालन करते आ रहे हैं।
अपनी तरह के फक्कड़ और बहुआयामी हुनर से भरे-पूरे लोक कलाकार मोहन खाँ की दिली तमन्ना है कि सरकार की ओर से उनकी कलाओं के प्रोत्साहन के लिए यथासंभव आर्थिक मदद की व्यवस्था करने के साथ ही उन्हें ऐसा स्थान उपलब्ध कराया जाए जहाँ वे अपनी पूरी जिन्दगी बच्चों और युवाओं को राजस्थानी लोक संगीत और नृत्यों का प्रशिक्षण देते हुए अपना संकल्प पूरा कर सकेंे।
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