जोधपुर. मेरो सीडी, मेरोसुल और माइक्रो सीडी नाम से बिक रहे नकली इंजेक्शन मेरोपेनम इंजेक्शन की नकल है। मेरोपेनम इंजेक्शन आईसीयू में भर्ती होने वाले उन मरीजों को लगाया जाता है जो बैक्टीरियल संक्रमण की चपेट में आए हुए होते हैं।
एंटीबायोटिक दवाइयों की श्रेणी में इसे थर्ड जेनरेशन एंटीबायोटिक कहा जाता है। जोधपुर के मेडिकल मार्केट में मेरोपेनम इंजेक्शन के नाम पर कई ब्रांड काफी तादाद में सप्लाई होने लगे और वे जेनेरिक दवाइयों के नाम पर बेचे गए। बाजार में सस्ता उपलब्ध होने से कई डॉक्टर मरीजों को साधारण वार्ड व इमरजेंसी में भी यह इंजेक्शन लिखने लगे हैं।
इन डुप्लीकेट इंजेक्शन से मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर पड़ा है। शहर के तीनों बड़े अस्पतालों में संक्रमण की स्थिति नाजुक है और ऐसी हालत में नकली इंजेक्शन की सप्लाई ने मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता और उनकी जान संकट में डाला है।
सर्वाधिक सरकारी सप्लाई
मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना शुरू होने के बाद मेडिकल कॉलेज स्तर पर स्थानीय खरीद के लिए हुए टेंडर में मेरोपेनम इंजेक्शन (एक ग्राम) की 440 रुपए में खरीद की गई। इसके बाद से मेरोपेनम फार्मूले का इंजेक्शन जोधपुर के बाजार में 150 से दो सौ रुपए में बिकने लगा। जिसमें मेरो-सीडी ब्रांड सर्वाधिक प्रचलित हुआ। मेरो-सीडी की बिक्री बढ़ने पर सप्लायरों ने मेरो सीडी, मेरोसुल जैसे नाम से भी इंजेक्शन बनवा कर सप्लाई कर दिए।
भनक लगते ही दुकानों से माल गायब
शहर की दुकानों से नकली इंजेक्शन जब्त करने के लिए डीसीपी (पूर्व) राहुल प्रकाश और डीसीपी (पश्चिम) अजयपाल लांबा, एडीसीपी ज्योति स्वरूप शर्मा और सीआईडी अफसरों की टीमों ने शनिवार को दुकानों पर छापामारी की। पुलिस ने जैसे ही नाकोड़ा मेडिकोज से इंजेक्शन जब्त किए, दूसरे दुकानदारों को तत्काल सूचना हो गई और उन्होंने नाकोड़ा मेडिकोज से आई सभी दवाइयां वहां से हटा लीं। जब पुलिस वर्षा व मेहता मेडिकल समेत अन्य दुकानों पर पहुंची तो वहां ये इंजेक्शन नहीं मिले। पुलिस इन दुकानदारों से पूछताछ कर रही है, साथ ही नाकोड़ा मेडिकोज के बिलों की जांच कर उन दुकानों की भी तलाशी ले रही है, जहां इंजेक्शन सप्लाई हुए थे।
स्टाफ बिना निगरानी बमुश्किल
जोधपुर के लिए राज्य सरकार ने यहां औषधि नियंत्रक अधिकारी के दो पद सृजित कर रखे हैं, लेकिन पिछले एक साल से बाड़मेर में कार्यरत अधिकारी ही जोधपुर का काम देख रहे हैं। ऐसे में पूरे मेडिकल मार्केट पर नजर रखना आसान नहीं है। हाल ही में सरकार ने जोधपुर के लिए छह पद स्वीकृत किए हैं। जिन पर नियुक्तियां होनी बाकी हैं।
इंदौर में मैन्युफैक्चरिंग, जोधपुर में पैकिंग
पुलिस के अनुसार इस प्रकरण में पकड़े गए आरोपियों से हुई प्रारंभिक पूछताछ में यह सामने आया है कि आरोपी इंदौर की एक कंपनी से यह इंजेक्शन बनवा रहे थे। जयपुर के राजा प्रिंटर्स से डुप्लीकेट पैकिंग मेटेरियल छपवाकर जोधपुर मंगाते और यहां पर इनकी पैकिंग की जाती थी। दूसरी ओर आशंका जताई जा रही है कि यह नकली इंजेक्शन जोधपुर में ही बनाया जा रहा था। पुलिस इसकी भी तहकीकात कर रही है।
चंडीगढ़ की कंपनी भी मुकदमा दर्ज कराएगी
मेरोसुल, मेरो सीडी व माइक्रो सीडी के नाम से जो नकली इंजेक्शन सप्लाई हुए थे, उन पर चंडीगढ़ की एक फार्मास्युटिकल कंपनी का नाम छपा हुआ है। सीआईडी व पुलिस ने इस कंपनी से संपर्क किया तो पता चला कि वह कंपनी ऐसे इंजेक्शन बनाती ही नहीं है। कंपनी ने पुलिस को बताया है कि वे अपना एक प्रतिनिधि जोधपुर भेज रहे हैं, वह कंपनी की ओर से मुकदमा दर्ज कराएगा।
200 का इंजेक्शन 2000 रुपए में
पुलिस की कार्रवाई में जो नकली इंजेक्शन बरामद हुए हैं, वह प्रति इंजेक्शन दो सौ रुपए में दुकानों पर सप्लाई हो रहे थे। जबकि दुकानदार इसे 2 हजार रुपए तक में मरीजों को बेच रहे थे। शहर के कई निजी अस्पतालों के बाहर और सरकारी दुकानों में इसकी धड़ल्ले से बिक्री हो रही है। हालांकि कई प्रतिष्ठित कंपनियों के इंजेक्शन भी लगभग इसी दर पर उपलब्ध हैं। अधिक मुनाफे के चक्कर में दुकानदार बाजार में मेरो-सीडी व मेरोसुल सहित अन्य सस्ते ब्रांड बेच रहे हैं।
एंटीबायोटिक दवाइयों की श्रेणी में इसे थर्ड जेनरेशन एंटीबायोटिक कहा जाता है। जोधपुर के मेडिकल मार्केट में मेरोपेनम इंजेक्शन के नाम पर कई ब्रांड काफी तादाद में सप्लाई होने लगे और वे जेनेरिक दवाइयों के नाम पर बेचे गए। बाजार में सस्ता उपलब्ध होने से कई डॉक्टर मरीजों को साधारण वार्ड व इमरजेंसी में भी यह इंजेक्शन लिखने लगे हैं।
इन डुप्लीकेट इंजेक्शन से मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर पड़ा है। शहर के तीनों बड़े अस्पतालों में संक्रमण की स्थिति नाजुक है और ऐसी हालत में नकली इंजेक्शन की सप्लाई ने मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता और उनकी जान संकट में डाला है।
सर्वाधिक सरकारी सप्लाई
मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना शुरू होने के बाद मेडिकल कॉलेज स्तर पर स्थानीय खरीद के लिए हुए टेंडर में मेरोपेनम इंजेक्शन (एक ग्राम) की 440 रुपए में खरीद की गई। इसके बाद से मेरोपेनम फार्मूले का इंजेक्शन जोधपुर के बाजार में 150 से दो सौ रुपए में बिकने लगा। जिसमें मेरो-सीडी ब्रांड सर्वाधिक प्रचलित हुआ। मेरो-सीडी की बिक्री बढ़ने पर सप्लायरों ने मेरो सीडी, मेरोसुल जैसे नाम से भी इंजेक्शन बनवा कर सप्लाई कर दिए।
भनक लगते ही दुकानों से माल गायब
शहर की दुकानों से नकली इंजेक्शन जब्त करने के लिए डीसीपी (पूर्व) राहुल प्रकाश और डीसीपी (पश्चिम) अजयपाल लांबा, एडीसीपी ज्योति स्वरूप शर्मा और सीआईडी अफसरों की टीमों ने शनिवार को दुकानों पर छापामारी की। पुलिस ने जैसे ही नाकोड़ा मेडिकोज से इंजेक्शन जब्त किए, दूसरे दुकानदारों को तत्काल सूचना हो गई और उन्होंने नाकोड़ा मेडिकोज से आई सभी दवाइयां वहां से हटा लीं। जब पुलिस वर्षा व मेहता मेडिकल समेत अन्य दुकानों पर पहुंची तो वहां ये इंजेक्शन नहीं मिले। पुलिस इन दुकानदारों से पूछताछ कर रही है, साथ ही नाकोड़ा मेडिकोज के बिलों की जांच कर उन दुकानों की भी तलाशी ले रही है, जहां इंजेक्शन सप्लाई हुए थे।
स्टाफ बिना निगरानी बमुश्किल
जोधपुर के लिए राज्य सरकार ने यहां औषधि नियंत्रक अधिकारी के दो पद सृजित कर रखे हैं, लेकिन पिछले एक साल से बाड़मेर में कार्यरत अधिकारी ही जोधपुर का काम देख रहे हैं। ऐसे में पूरे मेडिकल मार्केट पर नजर रखना आसान नहीं है। हाल ही में सरकार ने जोधपुर के लिए छह पद स्वीकृत किए हैं। जिन पर नियुक्तियां होनी बाकी हैं।
इंदौर में मैन्युफैक्चरिंग, जोधपुर में पैकिंग
पुलिस के अनुसार इस प्रकरण में पकड़े गए आरोपियों से हुई प्रारंभिक पूछताछ में यह सामने आया है कि आरोपी इंदौर की एक कंपनी से यह इंजेक्शन बनवा रहे थे। जयपुर के राजा प्रिंटर्स से डुप्लीकेट पैकिंग मेटेरियल छपवाकर जोधपुर मंगाते और यहां पर इनकी पैकिंग की जाती थी। दूसरी ओर आशंका जताई जा रही है कि यह नकली इंजेक्शन जोधपुर में ही बनाया जा रहा था। पुलिस इसकी भी तहकीकात कर रही है।
चंडीगढ़ की कंपनी भी मुकदमा दर्ज कराएगी
मेरोसुल, मेरो सीडी व माइक्रो सीडी के नाम से जो नकली इंजेक्शन सप्लाई हुए थे, उन पर चंडीगढ़ की एक फार्मास्युटिकल कंपनी का नाम छपा हुआ है। सीआईडी व पुलिस ने इस कंपनी से संपर्क किया तो पता चला कि वह कंपनी ऐसे इंजेक्शन बनाती ही नहीं है। कंपनी ने पुलिस को बताया है कि वे अपना एक प्रतिनिधि जोधपुर भेज रहे हैं, वह कंपनी की ओर से मुकदमा दर्ज कराएगा।
200 का इंजेक्शन 2000 रुपए में
पुलिस की कार्रवाई में जो नकली इंजेक्शन बरामद हुए हैं, वह प्रति इंजेक्शन दो सौ रुपए में दुकानों पर सप्लाई हो रहे थे। जबकि दुकानदार इसे 2 हजार रुपए तक में मरीजों को बेच रहे थे। शहर के कई निजी अस्पतालों के बाहर और सरकारी दुकानों में इसकी धड़ल्ले से बिक्री हो रही है। हालांकि कई प्रतिष्ठित कंपनियों के इंजेक्शन भी लगभग इसी दर पर उपलब्ध हैं। अधिक मुनाफे के चक्कर में दुकानदार बाजार में मेरो-सीडी व मेरोसुल सहित अन्य सस्ते ब्रांड बेच रहे हैं।
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