रविवार, 4 मार्च 2012

एक दिन की "बेटी"....

 एक दिन की "बेटी"....

बाड़मेर। निर्दयता व निर्ममता शब्द भी छोटा लगता है। जिसको नौ महीने तक कोख में पाला और जैसे ही पता चला कि वह "बेटी" है, जंगल में फैंक दिया, लेकिन कहते है मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। रात भर यह नन्हीं जान गड्ढे मे पड़ी सांसे लेती रही और जीवन के लिए संघर्ष करती रही। सुबह इसकी आवाज किसी दूसरी बालिका ने सुनी वह दौड़ी दौड़ी घर गई। ढाणी के लोगों ने पुलिस को सुपुर्द किया और अब यह जिंदगी की जंग लड़ रही है।

सिणधरी क्षेत्र के गोलिया जीवराज गांव में शनिवार की सुबह एक बालिका को किलकारी सुनाई दी। उसने देखा तो एक नन्हीं बच्ची तड़प रही है। इसने अपने परिवार के लोगों को जानकारी दी। ग्रामीणों ने सिणधरी पुलिस को सूचना दी। एएसआई डूंगरसिंह और कांस्टेबल ताजाराम मौके पर पहुंचे। बच्ची को देखते ही तत्परता दिखाते हुए सिणधरी अस्पताल लाए। यहां सुविधा नहीं होने पर बालोतरा रेफर किया गया। बालोतरा के डॉ. एन एल गुप्ता बताते हंै कि उपचार प्रारंभ कर दिया है। बच्ची रात भर खुले में रहने से गंभीर है। उसे वेन्टीलेटर पर रखने की जरूरत है, इसलिए जोधपुर या जयपुर भेजना पड़ेगा।

पुलिस का अच्छा प्रयास
एएसआई डूंगरसिंह और ताजाराम ने न केवल इस बच्ची को अस्पताल मे दाखिल करवाया बल्कि वे तुरंत ऎसी संस्थान की तलाश में जुट गए जो बच्चों को पालती है। चाइल्ड लाइन बाड़मेर से जुड़े धारा संस्थान के महेश पनपालिया से मुलाकात की। पनपालिया के अनुसार अब इस बच्ची को चाइल्ड लाइन की देखरेख में लेकर जयपुर उपचार के लिए शीघ्र रेफर कर देंगे। हरसंभव कोेशिश कर इस नन्हीं जान को बचाया जाएगा।

व्यवस्थाओं की पोल खुली
सिणधरी और बालोतरा में वेन्टीलेटर की सुविधा नहीं होेने से नवजात शिशुओं को कई बार बचाना मुश्किल हो जाता है। इन बच्चों को जोधपुर जयपुर भेजना पड़ता है। वेन्टीलेटर मोबाइल वेन भी नहीं है। ऎसे में ये पूरी "रिस्क" में ये लंबा सफर तय करते है।

मामला दर्ज
पुलिस थाना सिणधरी में अणदा भारती पुत्र जीवा भरती की ओर से मिली इत्तिला के आधार पर मामला भी दर्ज किया गया है।

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