रविवार, 11 मार्च 2012

सरहद का एक गांव, जहां खड़ी है कुंआरों की फौज

सरहद का एक गांव, जहां खड़ी है कुंआरों की फौज




बाडमेर, राजस्थान। भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बसा बाड़मेर जिला, जिसके रेगिस्तानी गांव ऐसे दुरूह स्थानों पर बसे हैं कि इन गांवों तक पहुचना ही मुश्किल होता है। बाडमेर जिले की जैसलमेर से लगती सीमा पर बसा सरहदी नोडियाला गांव। खबडाला ग्राम पंचायत का राजस्व गॉव है नोडियाला। यह गांव राजपूत बाहुल्य है जहां सोा जाति कें राजपूत रहते हैं। लगभग साठ परिवार इस जाति के हैं वही कुछ परिवार राणा राजपूत तथा मेगवाल जाति के हैं। इस गॉव में पहुचना टेढ़ी खीर के समान हैं।

विकास से इस गॉव का कोई लेना देना नही। गॉव के लोग गॉव से बाहर नहीं जाते, गॉव में ही मस्त रहते हैं। इस गांव म कुंवारों की फौज खडी हैं। हर परिवार में कुंआरें हैं। कहीं के भी कोई भी परिवार अपनी लाडली बेटियों को इस गांव कें किसी परिवार में ब्याहना ही नही चाहते। इस संबंध में ग्रामीणों से बाततीच करने पर पता चला कि नोडियाला गांव में ऐसा कुछ भी नही है कि कोई अपनी बच्ची को इस गांव में ब्याह दे। गॉव में पानी की किल्लत सबसे बडी समस्या है।पानी के लिए ग्रामीणों को ग्राम पंचायत मुख्यालय खबडाला तक प्रतिदिन पानी भरने जाना पडता हें। गांव में पानी की एक होज बनी हैं जिसमें अंतिम बार पानी कब आया किसी को याद नही हैं। इस गांव में कुछ अच्छा है तो वो है पशुधन की बाहुल्यता। इस गांव में आने वाले मेहमान को दूध तो आसानी से मिल जाएगा मगर पानी की एक बूंद भी मिलना मुश्किल है।

गांव के खंगारसिह सोढ़ बताते हैं कि गॉव बाडमेर जिले में है मगर जैसलमेर जिला नजदीक लगता है जिसके कारण गॉव का सारा लेन-देन-व्यापार जैसलमेर से है। सबसे बड़ी बात कि इस गांव में न तो सरकारी कारिन्दे आते हैं न ही नेता लोग आते जिसके कारण गांव में विकास नहीं हो रहा । गांव अभी तक सड़क मार्ग से नहीं जुड़ा। कहने को सरकारी प्राथमिक स्कूल हैं मगर अध्यापक नही हैं। इस कारण बन्द पड़ा है। गॉव के बच्चे अनपढ़ हैं। युवा वर्ग पहले से ही अनपढ़ हैं। गॉव में किसी प्रकार का रोजगार नही हैं।

इस गॉव में कोई परिवार अपनी बालिका को ब्याहना नहीं चाहते। जिसकें कारण गॉव कें अधिकतर लोग कुंआरे हैं। सतर फीसदी घरों में बहुएं नही हैं। कुंआरे लोग अपने घर का काम खुद ही करतें हैं।सत्तर साल तक के लोग कुंवारे बैठे हैं। इस गांव के सोढ़ परिवार भारत पाकिस्तान विभाजन कें समय तथा कुछ परिवार 1971 व 1965 कें युद्ध कें दौरान पाकिस्तान से पलायन कर यहां आकर बसे हैं। गांव के गुलाबसिह नें बताया कि बहुत पहले गॉव में भोखावटी के परिवारों के साथ रिश्ते हुए थे। चार-पांच परिवारों में बहुएं भी आई थीं मगर जब गांव की स्थिति तथा वास्तविकता का पता चला गांव में रिश्तेदारिया होना बन्द हो गया। एक तरह सें शादियों पर ग्रहण सा लग गया। परिवार नही बस पा रहें हैं। मेरे पॉच भाई हैं जो आज भी कंवारें हैं उनकें रिश्ते के हर सम्भव प्रयास किए कोई फायदा नहीं हुआ।

हालाकि दूसरी जाति कें परिवारों में भी शादियां नहीं हो रही हैं। आसपास कें गांवों में लोग अपनी बेटियां देते हैं, पर इस गांव पर कोई मेहरबान होने को तैयार नहीं। जिसके कारण कुंवारों की फौज खडी हो रही है। बाडमेर जिले का अंतिम गॉव होनें कें कारण इसके विकास पर कोई सरकार ध्यान नहीं देती। इस गॉव में पहुचने के लिऐ जेसलमेर जिले कें कई गॉवो से होकर गुजरना पडता हैं।

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