बुधवार, 28 मार्च 2012

आठवीं अनुसूची के लिए राजस्थानी समेत तीन दर्जन भाषाओं के प्रस्ताव

जयपुर/नई दिल्ली .देश के अलग-अलग हिस्सों में बोली जाने वाली करीब 3 दर्जन से अधिक ऐसी भाषाएं हैं, जिन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव-अनुरोध सरकार को विभिन्न राज्यों व प्रतिनिधिमंडलों की ओर से हासिल हुआ है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह जवाब दिया है।

इसमें कहा गया है कि इनमें से छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से छत्तीसगढ़ी, हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से भोटी और राजस्थान सरकार की ओर से राजस्थानी भाषा को शामिल करने का अनुरोध हासिल हुआ है। अपने जवाब में मंत्रालय ने यह भी कहा है कि इन्हें अनुसूची में शामिल करने की कोई समय सीमा निश्चित नहीं है।


मंत्रालय ने कहा है कि अंगिका, बंजारा, बजिका, भोजपुरी, भोटी, भोटिया, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, धात्की, अंग्रेजी, गढ़वाली, गोंदी, गुज्जर-गुज्जरी, हो, कच्चाची, कामतापुरी, कारबी, खासी, कोडवा (कूरज), कोक बराक, कुमांउनी, कुरक, कुरमाली, लेपचा, लिंबू, मिजो (लुसाई), मगही, मुंदरी, नागपुरी, निकोबरसी, पहाड़ी हिमाचली, पाली, राजस्थानी, संबलपुरी-कोसाली, शौरेसनी (प्राकृत), सिराइकी, तेनयीदी और तुलु भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव राज्य सरकार या फिर इन भाषाओं के समर्थकों व अन्य प्रतिनिधिमंडलों से हासिल हुआ है।

समय सीमा

अपने जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि संविधान में आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कोई मानदंड नहीं बताए गए हैं। जवाब में कहा गया है कि इन्हें अनुसूची में शामिल करने की कोई समय सीमा नहीं बताई जा सकती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें