जीवन में जहर घोल रहा है फ्लोराइड
मोकलसर। खारा बेल्ट के गांवों में पानी में फ्लोराइड का कहर लोगों के शरीर में जहर घोल रहा है। ग्रामीणो की मजबूरी है कि उन्हें अन्य विकल्प के अभाव में अधिक टीडीएस वाला स्वास्थ्य के लिए घातक पानी पीना पड़ रहा है। इस समस्या को लेकर हर स्तर पर गुहार के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है।
खारा बेल्ट के खंडप, जालमपुरा, तरकों की ढाणी, सरवड़ी चारणान, गोलिया चौधरिया, कम्मो का वाड़ा, सेवाली, रातड़ी, अर्थडी, डाबली, मोतीसरा, रोजियों की ढाणी आदि गांवों के पानी व मिट्टी में क्षारियता के लक्षण पाए जाने के वर्षो बाद भी रोकथाम के लिए कारगर प्रयास नहीं हो रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा वष्ाü 2003 में सिवाना उपखंड क्षेत्र की 40 ग्राम पंचायतों में मिट्टी व पानी का सर्वे किया गया था। इस दौरान अत्यधिक जलदोहन से भौतिक, रसायनिक व जैविक अपघटन के बढ़ते दबाव के चलते जमीन व पानी में तेजी से जहर घुलने के तथ्य उजागर हुए थे।
इन गांवों में सात सौ फीट गहराई तक मीठा पानी सुलभ नहीं है। ऎसे में कृषि उजड़ गई है। बारिश के अलावा खेतों में सूनापन रहता है। सर्वे के बाद कृषि कार्य पर खतरे के बादल मंडराने की चेतावनी विभाग द्वारा दी गई थी। लेकिन रोकथाम को लेकर आज तक कोशिश शुरू नहीं हो पाई है। मजबूरन लोगों को स्वास्थ्य के लिए घातक साबित होने के बाद भी अत्यधिक मात्रा में टीडीएस व फ्लोराइड युक्त पानी का उपभोग करना पड़ रहा है।
अधरझूल में योजना
खारा बेल्ट के इन गांवों में गंभीर पेयजल संकट के मद्देनजर प्रस्तावित उम्मेदसागर धवा खंडप पेयजल परियोजना डेढ़ दशक से दूर की कौड़ी बनी हुई है। वर्षो से खारे पानी का सेवन कर रहे इन गांवों के ग्रामीणों के लिए यह योजना साकार रूप लेने के बाद वरदान साबित होगी, लेकिन अभी तक यह योजना क्रियान्वित नहीं हो पाई है।
बीमारियों की चपेट में
पानी में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा के कारण कूबड़ेपन से पीडित लोगों की संख्या बढ़ रही है। पानी में क्षारियता बढ़ने से लोग असाध्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।
शैतानसिंह डाबली अध्यक्ष, खारा बेल्ट संघर्ष समिति
प्रयास जारी
मीठे पानी की उपलब्धता को लेकर प्रस्तावित नहरी पानी योजना के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास चल रहे हैं।
मालाराम भील प्रधान सिवाना
सर्वे में मिली थी क्षारीयता
कृषि विभाग द्वारा पूर्व में किए गए सर्वे में इन गांवों की मिट्टी व पानी में क्षारीयता के लक्षण पाए गए थे। पैदावार में बढ़ोतरी व क्षारियता में कमी के लिए जिप्सम के उपयोग की जानकारी दी गई है।
- दूदाराम बारूपाल, सहायक कृषि अधिकारी
मोकलसर। खारा बेल्ट के गांवों में पानी में फ्लोराइड का कहर लोगों के शरीर में जहर घोल रहा है। ग्रामीणो की मजबूरी है कि उन्हें अन्य विकल्प के अभाव में अधिक टीडीएस वाला स्वास्थ्य के लिए घातक पानी पीना पड़ रहा है। इस समस्या को लेकर हर स्तर पर गुहार के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है।
खारा बेल्ट के खंडप, जालमपुरा, तरकों की ढाणी, सरवड़ी चारणान, गोलिया चौधरिया, कम्मो का वाड़ा, सेवाली, रातड़ी, अर्थडी, डाबली, मोतीसरा, रोजियों की ढाणी आदि गांवों के पानी व मिट्टी में क्षारियता के लक्षण पाए जाने के वर्षो बाद भी रोकथाम के लिए कारगर प्रयास नहीं हो रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा वष्ाü 2003 में सिवाना उपखंड क्षेत्र की 40 ग्राम पंचायतों में मिट्टी व पानी का सर्वे किया गया था। इस दौरान अत्यधिक जलदोहन से भौतिक, रसायनिक व जैविक अपघटन के बढ़ते दबाव के चलते जमीन व पानी में तेजी से जहर घुलने के तथ्य उजागर हुए थे।
इन गांवों में सात सौ फीट गहराई तक मीठा पानी सुलभ नहीं है। ऎसे में कृषि उजड़ गई है। बारिश के अलावा खेतों में सूनापन रहता है। सर्वे के बाद कृषि कार्य पर खतरे के बादल मंडराने की चेतावनी विभाग द्वारा दी गई थी। लेकिन रोकथाम को लेकर आज तक कोशिश शुरू नहीं हो पाई है। मजबूरन लोगों को स्वास्थ्य के लिए घातक साबित होने के बाद भी अत्यधिक मात्रा में टीडीएस व फ्लोराइड युक्त पानी का उपभोग करना पड़ रहा है।
अधरझूल में योजना
खारा बेल्ट के इन गांवों में गंभीर पेयजल संकट के मद्देनजर प्रस्तावित उम्मेदसागर धवा खंडप पेयजल परियोजना डेढ़ दशक से दूर की कौड़ी बनी हुई है। वर्षो से खारे पानी का सेवन कर रहे इन गांवों के ग्रामीणों के लिए यह योजना साकार रूप लेने के बाद वरदान साबित होगी, लेकिन अभी तक यह योजना क्रियान्वित नहीं हो पाई है।
बीमारियों की चपेट में
पानी में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा के कारण कूबड़ेपन से पीडित लोगों की संख्या बढ़ रही है। पानी में क्षारियता बढ़ने से लोग असाध्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।
शैतानसिंह डाबली अध्यक्ष, खारा बेल्ट संघर्ष समिति
प्रयास जारी
मीठे पानी की उपलब्धता को लेकर प्रस्तावित नहरी पानी योजना के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास चल रहे हैं।
मालाराम भील प्रधान सिवाना
सर्वे में मिली थी क्षारीयता
कृषि विभाग द्वारा पूर्व में किए गए सर्वे में इन गांवों की मिट्टी व पानी में क्षारीयता के लक्षण पाए गए थे। पैदावार में बढ़ोतरी व क्षारियता में कमी के लिए जिप्सम के उपयोग की जानकारी दी गई है।
- दूदाराम बारूपाल, सहायक कृषि अधिकारी
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