बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

झूठे ज्यादा, सच्चे कम! ...एस सी एस टी एक्ट के मामलों की जांच

झूठे ज्यादा, सच्चे कम!

बाड़मेर। अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम व भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 (बलात्कार के मामलों से संबंधित धारा) में दर्ज हुए मामलों में झूठे ज्यादा व सच्चे कम निकले हैं। झूठे मामलों की संख्या में निरंतर हो रही वृद्धि से पुलिस भी चिंतित है, लेकिन पुलिस अभी तक ऎसा कोई तरीका अमल में नहीं ला रही है कि झूठे मामलों को दर्ज होने से रोका जाए। बाड़मेर जिले में वर्ष 2011 में अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत 204 मामले दर्ज हुए, जिनमें से केवल पचहतर मामले ही चालान योग्य निकले। 124 मामलों में तो पुलिस के स्तर पर ही अंतिम रिपोर्ट दे दी गई।

वर्ष 2010 में दर्ज 208 में मामलों में से 98 में पुलिस ने अपने स्तर पर ंतिम रिपोर्ट दी थी। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो झूठे मामलों की संख्या मे वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह बलात्कार के मामलों में सच के आंकड़े से आगे झूठ का आंकड़ा रहा। वष्ाü 2011 में बलात्कार के इक्कीस मामले दर्ज हुए, जिसमें केवल आठ मामले चालान योग्य पाए गए और तेरह मामलों में पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट दे दी। हालांकि वर्ष 2010 में दर्ज 34 मामलों की तुलना में वर्ष 2011 में इस अपराध में कमी दर्ज की गई, लेकिन झूठे मामलों का प्रतिशत फिर भी अधिक ही रहा क्योंकि 2010 में ग्यारह मामलों में ही पुलिस ने एफ आर दी थी।

सबक सिखाने की फिराक
इन मामलों की जांच करने वाले अधिकारी बताते हैं कि किसी पुरानी रंजिश के चलते एक-दूसरे को सबक सिखाने व परेशान करने के उद्देश्य से मामले दर्ज करवा दिए जाते हैं। हालांकि जांच में सच व झूठ सामने आ जाता है, लेकिन जांच तो मामला दर्ज होने के बाद ही होती है।

समय व श्रम दोनों व्यर्थ
एस सी एस टी एक्ट के मामलों की जांच पुलिस उप अधीक्षक स्तर के अधिकारी द्वारा की जाती है। वहीं बलात्कार के मामले भी गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसकी जांच भी आम तौर पर थानाधिकारी द्वारा ही की जाती है। झूठे मामलों की तफ्तीश में पुलिस का समय व श्रम दोनों जाया होते हैं।

समस्या तो है
झूठे मामले दर्ज होने की समस्या तो है। झूठे मामले बढ़ना चिंता का विषय है। वैसे झूठे मामलों में पुलिस एफ आर दे देती है और मामला सही होने पर चालान कर दिया जाता है।
संतोष चालके पुलिस अधीक्षक बाड़मेर

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